हाल ही में जेएनयू एक बार फिर सुर्खियों में आया, जब विद्यार्थियों के पंजीकरण के विरोध में वामपंथी उपद्रवियों ने संस्थान में अराजकता फैलाने की कोशिश की। इस पर उपद्रवियों और अन्य विद्यार्थियों में हिंसक झड़प हुई, जिसमें काफी लोगों को चोटें आई। अब गृह मंत्री अमित शाह ने इसपर रिपोर्ट मांगी है इसके साथ ही जेएनयू के प्रतिनिधियों को भी मिलने का समन भेजा है।
अब जेएनयू में हिंसा हुई और कांग्रेसी समर्थित विपक्ष अपनी घटिया राजनीति न करे, ऐसा हो सकता है क्या? प्रियंका गांधी वाड्रा समेत कई लोग राजनीतिक रोटियाँ सेंकने के लिए तुरंत घटनास्थल पहुंच गए। ऐसे में स्थिति को बिगड़ता देख गृह मंत्री अमित शाह ने तुरंत दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर अनिल बैजल से मुलाक़ात की, और उनके द्वारा यह संदेश भिजवाया कि जिसे समस्या हो, वो तुरंत उनसे मिल सकता है, और जो वाकई जेएनयू का हितैषी है, वो उनसे अवश्य मिल सकता है।
दरअसल, रविवार को हुई घटना पर तुरंत कार्रवाई करते हुए अमित शाह ने दिल्ली पुलिस के वर्तमान कमिश्नर अमूल्य पटनायक से बातचीत मामले में तुरंत कार्रवाई का निर्देश दिया था। गृह मंत्रालय के अधिकारी के अनुसार, जेएनयू के रजिस्ट्रार, प्रॉक्टर वीसी ने दिल्ली के उपराज्यपाल से भेंट की है और उन्हें स्थिति से अवगत कराया है। वहीं दिल्ली पुलिस के अधिकारी ने कहा कि दंगा करने और सम्पति को नुकसान पहुंचाने के संबंध में अज्ञात लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है। इसके अलावा गृह मंत्री ने दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल से बात की है और उनसे जेएनयू के प्रतिनिधियों को बुलाकर बातचीत करने के लिए कहा है।
भारतीय जनता पार्टी ने भी घटना की निंदा करते हुए कहा है, “यह अराजकता की ताकतों द्वारा एक हताश प्रयास है। जो छात्रों को चारे के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं और अपनी गंदी राजनीतिक के लिए अशांति पैदा कर रहे हैं। विश्वविद्यालयों को सीखने और शिक्षा का स्थान बने रहने चाहिए”।
सच कहें तो वामपंथियों ने घटना पर हाय तौबा मचाकर अपनी ही शामत बुलाई है, क्योंकि जब भी अमित शाह ने मामला अपने हाथ में लिया है, उन्होंने न सिर्फ समस्या का रामबाण इलाज निकाला है, अपितु वामपंथियों की पोल भी बड़े प्रेम से सबके सामने उजागर की है।
पिछले वर्ष जब चावडी बाज़ार में एक आपसी झड़प को सांप्रदायिक रंग देते हुए कुछ असामाजिक तत्वों ने एक वर्षों पुराने मंदिर में तोड़फोड़ की, तो अमित शाह ने तुरंत मामला हाथ में लेते हुए कार्रवाई के आदेश भी दिये, और जल्द ही इस घटना के राजनीतिक संबंध को उजागर करने के साथ साथ उन्होने अभियुक्तों की त्वरित गिरफ्तारी भी सुनिश्चित कराई। ये अमित शाह ही हैं, जिन्होंने जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 के विशेषाधिकार संबंधी प्रावधान भी हटवाए, और जम्मू एवं कश्मीर को अराजकता की आग में झुलसने भी नहीं दिया।
इतना ही नहीं, जब फीस में बढ़ोत्तरी को लेकर जेएनयू के वामपंथी उपद्रवियों ने कैम्पस को जंग के मैदान में परिवर्तित कर दिया, तो अमित शाह ने तुरंत मामला हाथ में लेते हुए एचआरडी मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक से बातचीत की उनसे जेएनयू पर पूरी रिपोर्ट मांगी। अमित शाह ने जेएनयू में शांति बहाल करने के लिए मानव संसाधन मंत्रालय द्वारा उठाए गए कदमों पर भी चर्चा की। इसके बाद अमित शाह ने जेएनयू विवाद का समाधान खोजने और विरोध प्रदर्शन खत्म करने के लिए केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री रमेश पोखरियाल को निर्देश दिया।
जब जेएनयू में वामपंथियों के उपद्रव के जवाब में हिंसक झड़प हुई, तो लिबरल्स ने तुरंत इसे एक सुनहरे अवसर के तौर पर लेते हुए अमित शाह को घेरने का प्रयास किया। परंतु पहले बरखा दत्त ने ‘पीड़ितों’ के लिए न्याय मांगते मांगते काँग्रेस की कथित भूमिका को अनजाने में ही उजागर कर दिया, और अब वामपंथियों ने हाय तौबा कर मामला अमित शाह के हाथ में दिया है। इसे ही कहते हैं अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारना।