सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को संकेत दिया कि सबरीमाला अय्यपा मंदिर और मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश से जुड़े मामले की अनुच्छेद 370 और नागरिकता संशोधन कानून के लिए डाली याचिका से पहले सुनवाई की जाएगी। मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, “सबरीमाला एक पुरानी समस्या है और यह पहले फैसला किया जाएगा। अन्य बेंचों के समक्ष लंबित सीएए और अनुच्छेद 370 के मुद्दे पर बाद में फैसला किया जाएगा।”
CJI का यह अवलोकन तब आया जब वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंग और राजीव धवन ने कोर्ट को यह कहा कि faith vs fundamental rights का मुद्दा CAA और जम्मू-कश्मीर के अनुच्छेद 370 से जुड़े याचिकाओं की सुनवाई की तारीखें आपस में टकरा सकती हैं। यह दोनों मामले, अलग-अलग बेंचों के समक्ष लंबित हैं जिससे इन दोनों मामलों से जुड़े अधिवक्ताओं को परेशानी हो सकती है।
बता दें कि CJI ने CAA की वैधता से जुड़ी कई याचिकाओं की सुनवाई की थी जिसके बाद केंद्र से सुनवाई की अगली तारीख 22 जनवरी तक अपना जवाब दाखिल करने को कहा था। वहीं न्यायमूर्ति एन वी रमना की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की पीठ ने अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू कश्मीर को मिलने वाले विशेष दर्जे को हटाने के केंद्र के फैसले की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 21 जनवरी को सुनवाई फिर से शुरू करने का फैसला किया था।
बता दें कि 14 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने सबरीमाला मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश को लेकर अपना फैसला सुनाया था। इस मामले को कोर्ट ने सात जजों की बड़ी पीठ को सौंप दिया है। बेंच ने कहा कि परंपराएं धर्म के सर्वमान्य नियमों के मुताबिक हों और आगे 7 जजों की बेंच इस बारे में अपना फैसला सुनाएगी। ऐसे में यह मामला अब सिर्फ हिंदुओं तक ही सीमित नहीं है। सुप्रीम कोर्ट अब इस मामले में मुस्लिम महिलाओं के मस्जिद में प्रवेश और पारसी महिला जो गैर पारसी से विवाह कर चुकी हैं उनके टावर ऑफ साइलेंस में प्रवेश को लेकर भी सुनवाई करेगी। हालांकि इसके बाद चीफ जस्टिस बोबडे का यह भी कहा था कि वर्ष 2018 में सभी आयु वर्ग की महिलाओं का सबरीमाला मंदिर में प्रवेश को लेकर जो फैसला दिया गया था, वह अंतिम फैसला नहीं है। उन्होंने कहा था कि ‘2018 का निर्णय ‘अंतिम शब्द’ नहीं है, क्योंकि यह मामला विचार करने के लिए सात सदस्यीय बेंच के पास भेजा गया है।’ इसके बाद चीफ जस्टिस बोबडे ने यह भी स्पष्ट कर दिया था है कि यह लोगों की भावनाओं से जुड़ा है और यह परंपरा हजारों वर्षों से चली आ रही है।
गौरतलब है कि 28 सितंबर 2018 को सीजेआई रंजन गोगोई की अगुवाई में जस्टिस आर फली नरीमन, जस्टिस एएम खानविल्कर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा की पीठ ने सभी उम्र की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की इजाज़त दी थी। उस समय न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा ने पूरी तरह से असहमति व्यक्त करते हुए कहा था कि आस्था के मामले न्यायालयों द्वारा निर्देशित नहीं किए जा सकते। अब सात जजों की सैवंधानिक पीठ इस पर क्या फैसला सुनाती है ये देखना दिलचस्प होगा।