तमिल फिल्म उद्योग के सुपरस्टार रजनीकान्त से भला कौन परिचित नहीं होगा? तमिलनाडु में जनता ने उन्हे भगवान का दर्जा दिया हुआ है और वे जल्द ही राज्य की राजनीति में सक्रिय होते दिखाई देंगे। इसकी तैयारी उन्होने अभी से ही शुरू कर दी है, और प्रमाण के तौर पर उन्होने अलगाववादी लेखक पेरियार ईवी रामस्वामी का कच्चा चिट्ठा जनता के सामने खोलना शुरू कर दिया है। जब हाल ही में उनसे पूछा गया कि क्या वे अपने बयान पर उमड़ते विरोध के परिप्रेक्ष्य में क्षमा मांगने का विचार कर रहे हैं, तो उन्होने अपने बयान में कहा, “मैं क्षमा कदापि नहीं माँगूँगा!”
चेन्नई में 14 जनवरी को तुग़लक मैगज़ीन के 50 वीं वर्षगांठ पर आयोजित एक भव्य समारोह में रजनीकान्त प्रमुख अतिथि के तौर पर पधारे थे। उन्होने अपने भाषण के दौरान कहा, “1971 में सेलेम में पेरियार ने एक रैली निकाली थी, जिसमें उन्होने न केवल भगवान श्री रामचन्द्र और माता सीता के मूर्तियों के वस्त्र उतारे, अपितु उन्हें चप्पलों की माला भी पहनाई, परंतु किसी भी अहम अखबार ने उसे प्रकाशित नहीं किया”। इस बयान के कारण पेरियार के अंध समर्थकों में आक्रोश फैल गया और उन्होने रजनीकान्त के घर का घेराव करने की ठान ली। उन्होने रजनीकान्त से अविलंब पेरियार के विषय में क्षमा मांगने को कहा।
परंतु रजनीकान्त उन लोगों में नहीं आते, जो ऐसे किसी भी ऐरे गैरे नत्थू खैरे के सामने झुक जाये। उन्होने इस घटना के बारे में उस समय जितनी भी सीमित कवरेज हुई थी, उसकी प्रतियों के साथ सामने आकर स्पष्ट किया कि वे माफी नहीं मांगने वाले। उन्होने कहा, “1971 में क्या हुआ, उसपर मैंने क्या बोला, इस पर वाद विवाद चल रहा है। मैंने कुछ बढ़ा चढ़ाकर नहीं कर रहा है। लोग भले आपको भ्रमित करने का प्रयास करें, पर मैंने कुछ भी गलत नहीं कहा है। मैं इसके लिए तो माफी नहीं माँगूँगा। मेरे पास मैगज़ीन भी हैं, जिससे यह सिद्ध हो जाएगा कि मैं जो कुछ भी बोल रहा हूँ, वो सब सत्य है। मैं वही बोल रहा हूँ जो मैंने देखा”।
अब बता दें कि पेरियार वही व्यक्ति थे, जिसने दक्षिण भारत में dravidian politics विषैला बीज बोया था। ईवी रामस्वामी नाइकर, जिन्हें पेरियार के नाम से भी जाना जाता है, Aryan Invasion Theory जैसे बेतुके सिद्धान्त के कट्टर समर्थक थे और कट्टर ब्राह्मण विरोधी भी थे। उनके झूठ के पुलिंदों में एक कथा यह भी शामिल थी कि वे एक बार काशी गए थे तीर्थ यात्रा पर, जहां उन्हे सिर्फ इसलिए धर्मशाला में जगह नहीं मिली क्योंकि वे उच्च जाति के नहीं थे। परंतु यह कथा न केवल हास्यास्पद है, अपितु सफ़ेद झूठ भी, क्योंकि नाइकर समुदाय सदियों से उच्च जाति के रूप में जानी जाती है, और जिसे अंग्रेजों ने भी स्वीकारा था। ऐसे में ये सोचना भी एकदम illogical है कि पेरियार जैसे व्यक्ति के साथ काशी में जाति के आधार पर भेदभाव किया गया होगा।
पेरियार भले ही नास्तिक थे, परंतु उनका मानना था कि तमिल नाडु पर केवल द्राविड़ समुदाय के लोगों का शासन होना चाहिए। इससे ज़्यादा हास्यास्पद बात क्या हो सकती है कि जिस द्रविड़ सभ्यता की आड़ में वे अपने अलगाववादी विचारधारा को बढ़ावा देते थे, वो स्वयं हिन्दू संस्कृति का प्रचार प्रसार करती थी, और उनके सबसे प्रभावशाली राजा चोला या पाण्ड्या साम्राज्य से संबंध रखते थे, जो महादेव के सबसे निष्ठावान भक्तों में से एक माने जाते थे।
रजनीकान्त के बयान से पेरियार के अंध समर्थक भले ही चिढ़े हुए हों, परंतु उनकी गीदड़ भभकी से भयभीत न हो कर और अपने बयान पर डटे रहकर रजनीकान्त ने एक सराहनीय कदम उठाया है, जो तमिलनाडु के राजनीतिक भविष्य के लिए एक बेहद शुभ संकेत है।