रविवार देर शाम कर्नाटक के पूर्व राज्यपाल 94 वर्षीय त्रिलोकी नाथ चतुर्वेदी का निधन हो गया। अब ये टीएन चतुर्वेदी थे कौन? ये वही टीएन चतुर्वेदी हैं जिन्होंने नियंत्रक व महालेखा परीक्षक (CAG) के तौर पर बोफोर्स तोप खरीद घोटाले को उजागर किया था। उनकी रिपोर्ट के कारण ही राजीव गांधी की सरकार 1980 के दशक में गिर गयी थी।
करीब 1 महीने से बीमार चलने के कारण उनका इलाज चल रहा था। रविवार देर रात उन्हें सांस लेने में अधिक तकलीफ होने पर करीब 9 बजे कैलाश अस्पताल में अंतिम सांस ली। उनका अंतिम संस्कार ब्रिटेन से उनके बेटे के लौटने के बाद मंगलवार को किया जाएगा। तब तक उनका पार्थिव शरीर कैलाश अस्पताल में ही रखा जायेगा।
बता दें कि 10 जनवरी, 1928 को जन्मे चतुर्वेदी 1984 से 1990 तक कैग के तौर पर नियुक्त रहे। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में शिक्षा प्राप्त की थी जहां उन्होंने M.A. L.LB की डिग्री ली। इसके बाद टीएन चतुर्वेदी 1950 में भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) में शामिल हुए, और उन्हें राजस्थान कैडर आवंटित किया गया। दो दशक पहले सेवानिवृत्त होने से पहले उन्होंने केंद्रीय गृह सचिव सहित सरकार में कई पदों पर कार्य किया था।
हालांकि, चतुर्वेदी 1980 के दशक के अंत में नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) के रूप में अपने कार्यकाल के लिए जाने जाते थे। इस दौरान उन्होंने बोफोर्स तोप खरीद की जांच की और इसमें की गई घोटालेबाजी को अपनी रिपोर्ट में शामिल किया। इसी रिपोर्ट को हाथ में लेकर वीपी सिंह ने तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी पर घोटाले का आरोप लगाया था। इस रिपोर्ट की वजह से ही राजीव गांधी को चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था और वीपी सिंह के नेतृत्व में गैर-कांग्रेसी दलों ने सरकार बनाई थी। अपनी रिपोर्ट में उन्होंने कहा था “संविधान के तहत किसी संस्था की विश्वसनीयता उसके स्वतंत्र निर्णय को आत्मसमर्पण करने पर निर्भर नहीं करती है।”
परिमल ब्रह्मा ने अपनी पुस्तक “On the Corridors of Power: the Theatre of the Absurd” में यह बताया है टीएन चतुर्वेदी के इस ऑडिट रिपोर्ट के बारे में बताया है कि किस तरह से कई घोटालों की रिपोर्ट पब्लिक नहीं हुई लेकिन टीएन चतुर्वेदी के मीडिया से अच्छे संबंध के कारण बोफोर्स के घोटालों का पर्दाफाश हुआ।
यही नहीं The Promise of India: How Prime Ministers Nehru to Modi Shaped the Nation नामक किताब में जैमिनी भगवती ने भी इस scandal का खुलासा करते हुए बताया है।
भारत सरकार ने 1991 में उन्हें पदम विभूषण से अलंकृत किया था। सेवानिवृत्ति के बाद चतुर्वेदी ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली थी। वर्ष 1992 से 1998 तक पार्टी के राज्यसभा सांसद बने। उन्हें 21 अगस्त, 2002 को कर्नाटक का राज्यपाल नियुक्त किया गया था। 23 जून, 2004 को उन्हें केरल के राज्यपाल का अतिरिक्त दायित्व भी दिया गया। कर्नाटक के राज्यपाल के रूप में चतुर्वेदी सत्ता और विपक्ष, दोनों के ही बीच बेहद लोकप्रिय रहे। वह 21 अगस्त, 2007 को राज्यपाल के पद से सेवामुक्त हुए। हालांकि, उनके भाजपा में शामिल होने से कांग्रेस हमेशा से उन पर हमले करती आई है। जब कांग्रेस के 2009 से 2014 के कार्यकाल के दौरान तत्कालीन CAG विनोद राय ने कांग्रेस को 2G सहित कोयला घोटालों में दोषी करार दिया था तब दिग्विजय सिंह से कहा था कि ‘वर्तमान प्रकरण(विनोद राय) टी.एन. बोफोर्स घोटाले के दौरान टीएन चतुर्वेदी की याद दिलाता है’। उन्होंने आगे कहा था “बोफोर्स तोपों के अधिग्रहण पर रिपोर्ट लिखने वाले चतुर्वेदी भाजपा में शामिल हो गए और सांसद बन गए और बाद में राज्यपाल बने। यही वह इतिहास है जिसे हम देख रहे हैं।”
इसके बाद 2013 में बिजनेस स्टैंडर्ड को दिए एक साक्षात्कार में टीएन चतुर्वेदी ने कैग जैसे संवैधानिक पद पर रहने के बाद चतुर्वेदी ने भाजपा में शामिल होने के अपने फैसले को स्पष्ट संवैधानिक बताया था। उन्होंने कहा था, “यह जवाहरलाल नेहरू के समय से चल रहा है…। इसके अलावा, संविधान कहीं भी यह नहीं कहता है कि मैं किसी राजनीतिक पार्टी की सदस्यता स्वीकार नहीं कर सकता। मुझे ऐसा करने का अधिकार है। अगर मैंने गलत किया है, तो किसी को यह बताना होगा कि मैंने संविधान का उल्लंघन कैसे किया”।
टीएन चतुर्वेदी अपने समय के सबसे दृढ़ अफसरों में एक थे और सिविल सेवाओं में जाने वाले विद्यार्थियों के लिए एक प्रेरणा भी। उनके निधन से देश ने एक अनमोल रत्न खोया है। भगवान उनकी आत्मा को शांति दें।