भारत के शिक्षा पद्धति से हमेशा खिलवाड़ किया गया है। पहले इस्लामी आक्रमणकारियों द्वारा फिर अंग्रेज़ो और उसके बाद कांग्रेस की सरकार ने भारत के लोगों को मूल भारत से ही अलग कर दिया। जब वर्ष 2014 में नरेंद्र मोदी की सरकार बनी तो ऐसा लगा कि कुछ परिवर्तन होगा और शिक्षा के क्षेत्र में सुधार किया जाएगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अभी तक किसी भी प्रकार का बड़ा रिफॉर्म नहीं देखने को मिला। HRD मंत्रालय ने भी किसी प्रकार की रुचि नहीं दिखाई।
हाल में हुई कई यूनिवर्सिटियों में हिंसा ने भी HRD मंत्रालय पर सवाल खड़ा कर दिया है। इन हिंसा में JNU में हुई हिंसा सबसे ऊपर रही है। हालांकि, JNU वर्ष 2016 से ही लाइमलाइट में है और वहाँ का वामपंथी छात्र संगठन लोगों की नजर में आने के लिए देश विरोधी नारा भी लगा चुका है। उसके बाद इसी तरह से संस्थान जैसे जामिया मिलिया, जाधवपुर और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय JNU की राह पर चल पड़े। इन यूनिवर्सिटियों में दूसरे छात्रों के साथ हिंसा और बदतमीजी बढ़ती गयी।
जब इन यूनिवर्सिटियों में अराजकता बढ़ी, तब देश के HRD मिनिस्टर से यह उम्मीद की जाती है कि वह कुछ कड़े निर्णय लेकर इन अराजक तत्वो से निपटे। परंतु देश में जब से यूनिवर्सिटियों में हिंसा बढ़ी तब हमारे देश के HRD मिनिस्टर ने किसी प्रकार का कड़ा निर्णय नहीं लिया।
केरल और पश्चिम बंगाल में जो भी छात्र वामपंथियों की बात नहीं मानता उस पर लगातार जानलेवा हमले होते रहे है लेकिन फिर भी हमारे मंत्री मुकदर्शक बने रहे।
वहीं जब AVBP के एक कार्यक्रम में बाबुल सुप्रियो को शिरकत करने के लिए जाधवपुर विश्वविद्यालय में आमंत्रित किया था तब उनपर भी हमला कर दिया गया था। इस तरह की गुंडागर्दी के अपराधियों के खिलाफ क्या कार्रवाई की जाती है और अगर नहीं की जाती तो क्यों नहीं की जाती?
अक्सर किसी शांत व्यक्ति को अक्षम मान लिया जाता है इसलिए यह जरूरी है कि व्यक्ति समय-समय पर कड़े रुख अपनाता रहे जिसे सभी उसे गंभीरता से ले।
हमारे देश में तो कई लोगों को यह पता भी नहीं होगा कि हमरे देश का HRD मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक हैं। बता दें कि हरिद्वार से सांसद रमेश पोखरियाल निशंक को वर्ष 2019 के चुनावों के बाद पीएम मोदी द्वारा शिक्षा मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया था।
तब कई लोगों ने उस समय पीएम मोदी के इस फैसले पर संदेह प्रकट किया था। आज वह सभी आशंका सही साबित होती दिख रही है क्योंकि इतनी हिंसा होने के बाद भी पोखरियाल का कहीं अता-पता नहीं है जब उनकी सबसे अधिक जरूरत है।
गायब कहने का यह अर्थ नहीं है कि उन्होंने इस मुद्दे और मौजूदा स्थिति पर बात नहीं की है, बल्कि यह अर्थ है कि वह इस पोर्टफोलियो को संभालने के लिए सही व्यक्ति नहीं हैं जिसे भारत का छात्र समुदाय चाहता हो। आज देश का एक युवा अपने देश के प्रति जागृत हो रहा है और अपने समृद्ध जड़ो से जुड़ना चाहता है, वह यह चाहता है कि HRD मंत्री देश के विकृत इतिहास और हिन-भावना से भरे किताबों को बदलने के लिए निर्णय ले। वे छात्र राजनीति की बकवास में कोई दिलचस्पी नहीं रखते हैं और अपने यूनिवर्सिटियों को ऊपर ले जाना चाहते है। वही दूसरी तरफ अराजक तत्व भी है जो वामपंथी गिरोह का हिस्सा है और छात्र राजनीति के नाम पर हिंसा कर अपना वर्चस्व कायम करना चाहते हैं। इन्हें रोकने के लिए ही HRD मंत्री को कुछ निर्णय लेने होंगे ताकि पढ़ने वाला छात्र समूह अपनी और अपने देश की आकांक्षाओं को पूरा कर सके।
जेएनयू हिंसा पर, पोखरियाल ने कहा था, “मैंने पहले भी यह कहा है कि इन स्वायत्त संस्थानों को ‘राजनीतिक‘ अडा बनने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। इस तरह के हमले में शामिल लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई शुरू की जाएगी। ” परंतु यह याद रखना चाहिए कि इस तरह के बयान दिये जाते है ताकि किसी को यह न लगे कि उनकी नजर इस तरह की घटनाओं पर नहीं है। उनके इस बयान से जमीनी स्तर पर कोई बदलाव नहीं हुआ है। अगर होता तो जेएनयू में दोबारा हिंसा नहीं होती। हम अकेले रमेश पोखरियाल निशंक को दोष नहीं दे सकते, उनके पूर्ववर्ती को भी उसी के लिए जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए।
अगर ऐसे नहीं होता तो आप ही बताए कि किसी देश के केंद्रीय विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों को परेशान करने के लिए छात्र द्वारा हमला किया गया होगा? किस केंद्रीय विश्वविद्यालय में अपने ही कुलपति को बंधक बनाया गया होगा?
ऐसा भारत में हुआ है और वामपंथी जमात की गढ़ मानी जाने वाली यूनिवर्सिटीज़ में हुआ है। जेएनयू जैसे विश्वविद्यालयों में, स्टाफ हो या छात्र शिक्षक हो या कुलपति जो भी वामपंथी विचारधारा को नकारने से इंकार करते हैं, वास्तव में उसके साथ ऐसा ही होता है। हालांकि, जब स्मृति ईरानी ने HRD मंत्रालय संभाला था तब जरूर इन सभी वामपंथियों को सबक सिखाया था। 2016 में टुकड़े टुकड़े गैंग द्वारा लगाए गए भारत विरोधी नारों के बाद उनके उस भाषण हो कौन भूल सकता है। उनके रहते कोई भी आसानी से उन तक पहुंच सकता था और अपनी समस्या बता सकता था। उन्हें हटाना मोदी सरकार द्वारा लिए गए गलत फैसलों में से एक कहा जा सकता है।
देश जब से स्वतंत्र हुआ है तब से ही शिक्षा कभी सुर्खियों में नहीं रही है, जबकि इसे होना चाहिए था।पीएम मोदी के आते ही सभी छात्रों और शिक्षकों उन सभी में भारी बदलाव की उम्मीद थी लेकिन यूनिवर्सिटी केे कैंपस में इस तरह की हिंसा नई बात है। जेएनयू, जाधवपुर या जामिया मिल्लिया ही क्यों न हो छात्रों ने इस हद तक हंगामा खड़ा कर दिया कि संस्थान एक युद्ध क्षेत्र में तब्दील हो गया था। इस समय सख्त कार्रवाई की जरूरत थी ऐसे में सिर्फ ‘कार्रवाई’ की बयानबाजी से काम नहीं चलने वाला। पोखरियाल के इस रुख से यही पता चलता है कि वह विरोध के स्वर से घबरा रहे हैं। परंतु नरेंद्र मोदी की छवि हमेशा से एक निर्णायक नेता के रूप में रही है जो कभी भी सही निर्णय लेने से नहीं घबराते। पोखरियाल को अब समझना होगा कि बिना एक्शन के अब काम नहीं चलने वाला है और सभी उनसे सवाल करने लगे है और अगर वह कड़े निर्णय नहीं लेते हैं तो उन्हें हटाने की मांग भी की जा सकती है।