डावोस में जारी वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम में बोलते हुए कल अमेरिकी अरबपति ‘समाजसेवी’ जॉर्ज सोरोस ने अपने विचार रखे। इस दौरान उन्होंने पीएम मोदी पर इस लहजे में हमला बोला मानों वे काफी समय से पीएम मोदी के खिलाफ कुंठा से पीड़ित हों। उन्होंने कहा कि पीएम मोदी मुस्लिमों पर ज़ुल्म ढाह रहे हैं और वे देश को हिन्दू राष्ट्र बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं। जॉर्ज सोरोस ने पीएम मोदी के साथ ही ब्राज़ील के राष्ट्राध्यक्ष बोलसेनारो, रूस के राष्ट्रपति पुतिन और अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रम्प की भी आलोचना की। जॉर्ज सोरोस एक ऐसे व्यक्ति हैं जिनका शुरु से ही वामपंथी विचारधारा की ओर झुकाव रहा है।
वे वर्ष 2004 से ही हर अमेरिकी चुनाव में डेमोक्राट्स के लिए फंडिंग करते आए हैं। इसके अलावा दुनियाभर में कई गैर-सरकारी संगठनों के माध्यम से वे कई देशों के आंतरिक मामलों में दख्लंदाजी करते आए हैं। यहां तक कि वे भारत और फ्रांस सरकार के बीच हुई रफाल डील में भी अपने द्वारा फंड किए जाने वाले गैर-सरकारी संगठनों के जरिये टांग अड़ाने की कोशिश कर चुके हैं। ऐसे में जब भारत में देश-विरोधी NGOs पर मोदी सरकार द्वारा कड़ी कार्रवाई की जा रही है, तो उनकी इस कुंठा को भली-भांति समझा जा सकता है।
डावोस में बोलते हुए जॉर्ज सोरोस ने पीएम मोदी पर आरोप लगाते हुए कहा कि “राष्ट्रवाद फिर जोर मार रहा है। भारत के लिए सबसे बड़ा और भयावह झटका यह है कि लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई नरेंद्र मोदी सरकार एक हिंदू राष्ट्रवादी देश बना रही है। कश्मीर पर दंडात्मक कार्रवाई की जा रही है और लाखों मुसलमानों को उनकी नागरिकता से वंचित करने का खतरा पैदा किया जा रहा है”।
अब जब इस व्यक्ति ने पीएम मोदी के खिलाफ इस हद तक जहर उगला है, तो इसकी विश्वसनीयता को भी जान लेना ज़रूरी है। विचारधारा के मामले में सोरोस शुरू से ही वामपंथी रहे हैं। इसका अंदाज़ा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि वर्ष 2004 के बाद से अमेरिका में लगातार वे वामपंथी उम्मीदवारों को फंड करते आए हैं। वर्ष 2004 में राष्ट्रपति का चुनाव लड़ रहे जॉर्ज बुश के विरोधी ग्रुप्स को 2 करोड़ 35 लाख डॉलर दान करने से लेकर अक्टूबर 2013 में हिलेरी के समर्थन में कई मिलियन अमेरिकी डॉलर खर्च करने तक, इससे उनकी राजनीतिक विचारधारा को तो समझा ही जा सकता है। अब आते हैं उनके विवादित पृष्टभूमि पर। वर्ष 1993 में ‘द इंडिपेंडेंट’ को इंटरव्यू देते हुए सोरोस ने अपने आप को ‘भगवान का रूप’ बताया था। एक किताब में उन्होंने लिखा था “वे बचपन से ही अपने आप को भगवान बनाने की लालसा रखते आए हैं और वे जिस भी हद तक इस सपने को पूरा करने में सफल होते हैं, वे उतना प्रयास करते रहेंगे”।
अब वे अपने इस सपने को पूरा करने के लिए अलग-अलग देशों में NGOs का सहारा ले रहे हैं। उनके ऊपर बिजनेस इनसाइडर में एक लेख लिखा गया था जिसमें लिखा था “पिछले दो दशकों से वे एक ऐसे व्यक्ति की तरह बर्ताव कर रहे हैं को दुनिया की अर्थव्यवस्था और राजनीति को कंट्रोल करता हो”। जॉर्ज सोरोस द्वारा नियंत्रित संस्था Open Society Institute भी बहुत विवादित है और फ्रांस में रफाल डील के खिलाफ याचिका दायर करने वाले NGO की इसी संस्था ने फंडिंग की थी। इसके अलावा Open Society Institute भारत में देशद्रोह क़ानूनों के खिलाफ भी मुहिम चलाता रहा है। बता दें कि Open Society Institute भारत में Socio-Legal Information Centre नामक संगठन के जरिये देशद्रोह के कानून के खिलाफ अभियान चलाता रहा है। इससे यह स्पष्ट होता है कि ये अरबपति अलग-अलग देशों में NGO के जरिये ही अपना एजेंडा चलाता है। हंगरी की सरकार ने जॉर्ज सोरोस के एजेंडे को रोकने के लिए ही अपने यहां NGO में विदेशी फंडिंग के नियमों को सख्त किया था। इसके अलावा इस संस्था को रूस से भी निकाला जा चुका है।
भारत में भी मोदी सरकार आने के बाद देश हित के खिलाफ काम करने वाले NGO की विदेशी फंडिंग रोकने के लिए कई कदम उठाए गए हैं जिसके कारण अब उन्होंने सार्वजनिक मंच पर मोदी सरकार पर हमला बोलना शुरू कर दिया है। हाल ही में मोदी सरकार ने गैर-सरकारी संगठनों को विदेशों से मिलने वाले पैसे को ‘चंदा’ न मानकर ‘निवेश’ के तौर पर मान्यता देने का फैसला किया था। यानि विदेशी फंड पर FCRA के नियमों के साथ-साथ कंपनीज़ एक्ट और इनकम टैक्स के ज़्यादा कड़े नियम लागू होंगे और एनजीओ को विदेशों से मिलने वाले पैसे का सारा डिटेल संबन्धित एजेंसियों को देना पड़ेगा। वर्ष 2014 में मोदी सरकार ने आते ही ऐसे प्रोपेगैंडावादी गैर-सरकारी संगठनों पर कार्रवाई करना शुरू कर दिया। वर्ष 2016 में मोदी सरकार ने FCRA कानून के तहत लगभग 20 हज़ार गैर-सरकारी संगठनों के विदेशी चंदा प्राप्त करने पर पूरी तरह रोक लगा दी थी। सरकार FCRA अधिनियम का इस्तेमाल उन संगठनों के खिलाफ कर रही है जो विदेशी वित्तीय सहयोग का प्रयोग भारत विरोधी गतिविधियों में करती हैं। हाल ही में मोदी सरकार ने 1800 NGOs को FCRA के नियमों के उल्लंघन के तहत बंद भी किया था।
अब अगर अमेरिका के अरबपति भी डावोस में बैठकर भारत के पीएम पर हमला बोलने पर मजबूर हुए हैं, तो आप समझ सकते हैं कि पीएम मोदी ने इनके एजेंडे को किस हद तक धराशायी कर दिया है। अब चूंकि ऐसे लोगों के एजेंडे पर पानी फिरने लगा है, तो इन्हें भारत में लोकतन्त्र खतरे में नज़र आने लगा है। सच तो यह है कि जॉर्ज सोरोस जैसे व्यक्ति की अपनी कोई विश्वसनीयता नहीं बची है। जो व्यक्ति आतंकियों की पैरवी करने वाले वकीलों को फंड करता हो, उसकी विश्वसनीयता का अंदाज़ा आप भली-भांति लगा सकते हैं। ऐसे व्यक्ति के पास न तो दुनिया के सबसे बड़े लोकतन्त्र पर हमला बोलने का कोई अधिकार है और ना ही उनके आरोपों को गंभीरता से लिया जाना चाहिए।