बुधवार को जारी अपनी रिपोर्ट में भारत में लोकतन्त्र को कमजोर बताने के बाद अब ‘द इकोनॉमिस्ट’ ने अपनी साप्ताहिक मैगज़ीन में मोदी सरकार की नीतियों की कड़ी आलोचना की है। ‘द इकोनॉमिस्ट’ ने गुरुवार को “असहिष्णु भारत, कैसे मोदी विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र को बर्बाद कर रहे हैं?” शीर्षक के साथ अपने सबसे नवीनतम एडिशन को लॉन्च किया। इसके कवर पेज पर भारतीय जनता पार्टी के चुनाव चिह्न कमल को कंटीली तारों के बीच में दिखाया गया है। इस कवर पेज के जरिये यह संदेश देने की कोशिश की गयी है कि भाजपा देश में बँटवारे की राजनीति कर रही है और देश में लोकतन्त्र खतरे में है।
How India's prime minister and his party are endangering the world's biggest democracy. Our cover this week https://t.co/hEpK93Al11 pic.twitter.com/4GsdtTGnKe
— The Economist (@TheEconomist) January 23, 2020
द इकोनॉमिस्ट ने कहा है कि नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) एनडीए सरकार के दशकों से चल रहे भड़काऊ कार्यक्रमों में सबसे जुनूनी कदम है। लेख में कहा गया है कि सरकार की नीतियों ने भले ही मोदी को चुनाव में जीत दिलाने में मदद की हो, लेकिन अब यही नीतियां देश के लिए राजनीतिक जहर साबित हो रही हैं। मैगजीन ने चेतावनी के अंदाज में कहा है कि मोदी की नागरिकता संशोधन कानून जैसी पहल भारत में खूनी संघर्ष करा सकती हैं।
दुनियाभर में ‘द इकोनोमिस्ट’ जैसे अखबार बेशक भर-भर के भारत विरोधी एजेंडा क्यों न चला लें, लेकिन सच तो यह है कि भारत सरकार ने CAA को लागू कर देश के लोकतन्त्र को मजबूत करने का काम किया है। भाजपा ने वर्ष 2014 और वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले यह कहा था कि वे भारत में रह रहे हिन्दू शरणार्थियों को नागरिकता प्रदान करने का काम करेंगे। लोकसभा चुनावों में पीएम मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा के खाते में 303 सीटें आयीं और पार्टी की एकतरफा जीत हुई और केंद्र में दोबारा सरकार बनी। अब जब भाजपा ने CAA को लागू कर दिया है तो भाजपा ने एक तरह से अपने ही वादे को पूरा किया है। किसी भी लोकतन्त्र में ऐसे ही काम किया जाता है, तो भला ‘द इकोनॉमिस्ट’ को भारत से क्या समस्या हो सकती है?
इसका जवाब यह है कि ‘द इकोनॉमिस्ट’ को भारत से कोई समस्या है ही नहीं। ‘द इकोनॉमिस्ट’ समेत दुनिया के सभी वामपंथी मीडिया समूहों को पीएम मोदी और भारत में दक्षिणपंथी सरकारों से दिक्कत है। इसी इकोनोमिस्ट ने वर्ष 2010 में अपनी इसी पत्रिका के कवर पेज पर लिखा था “कैसे भारत विकास के मामले में चीन को पीछे छोड़ देगा”? वर्ष 2010 में देश की मनमोहन सिंह सरकार सत्ता में थी जिसे आज़ाद भारत की सबसे निकम्मी सरकारों में से एक की संज्ञा मिलती रहती है।
अब हम आपको बताते हैं कि मनमोहन सिंह सरकार के समय भारत के लोकतन्त्र की क्या हालत थी। भारत सरकार पॉलिसी पैरालाइसिस से जूझ रही थी, और भारत सरकार की खराब नीतियों की वजह से भारत की अर्थव्यवस्था वृद्धि दर में सुस्ती आ चुकी थी। इसके अलावा भारत में तब भ्रष्टाचार बहुत बड़ा मुद्दा था। भारत में महंगाई अपने चरम पर थी। देश की आंतरिक सुरक्षा भी बेहद कमजोर थी और आए दिन देश के किसी ना किसी शहर में आतंकी हमलों की खबर आती रहती थी। इन सबके कारण ही वर्ष 2014 में मोदी सरकार को देश के वोटर्स सत्ता में लेकर आए थे। लेकिन तब इकोनिमिस्ट को भारत के लोकतन्त्र में कोई खोट नज़र नहीं आया, बल्कि इसके उलट उन्होंने तब यह भविष्यवाणी कर दी कि भारत चीन को विकास के मामले में पीछे छोड़ देगा।
आज जब मोदी सरकार के नेतृत्व में भारत ने लगभग सभी मापदण्डों पर सुधार किया है, तो ‘द इकोनॉमिस्ट’ को भारत में लोकतन्त्र खतरे में नज़र आ रहा है। लोकतन्त्र खतरे में है क्योंकि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी है जिनके सामने इन मीडिया संगठनों के तमाम एजेंडे धराशायी हो जाते हैं। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले भी इन सभी मीडिया संगठनों ने मिलकर पीएम मोदी के खिलाफ सुनियोजित मुहिम चलाई थी, लेकिन देश के लगभग 600 मिलियन वोटर्स ने पीएम मोदी की सरकार पर ही अपना विश्वास जताया था। यही कारण है कि अब ये भारत-विरोधी गैंग एक बार फिर इकट्ठी होकर मोदी सरकार के खिलाफ एजेंडा चलाना शुरू कर चुकी है।