“मैं सहमत नहीं लेकिन..”CAA पर बोलते हुए आरिफ़ मोहम्मद खान की चेतावनी ने केरल विधानसभा को भौचक्का कर दिया

आरिफ मोहम्मद खान

CAA के पारित होने के बाद कई राज्य इसके विरोध में आ गए थे। केरल भी उनमें से एक था। अब जब केरल के विधानसभा का नया सत्र शुरू हुआ तब इसी विषय पर हँगामा देखने को मिला। केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने केरल विधानसभा में अपने पहले अभिभाषण में नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के खिलाफ प्रस्ताव के जिक्र वाला पैराग्राफ पढ़ने से इनकार कर दिया था, लेकिन फिर इसे ‘डिस्क्लेमर’ के साथ पढ़ा।

बता दें कि केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान शुरू से ही यह स्पष्ट कर चुके कि CAA किसी प्रकार से असंवैधानिक नहीं है। परंतु फिर भी केरल की LDF सरकार ने केरल गवर्नर से अपनी सरकार की पॉलिसी पढ़वाया।

जब राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान सदन में पहुंचे तो उनके खिलाफ नारेबाजी शुरू हो गई और प्लेकार्ड्स भी दिखाए गए। उनके खिलाफ जमकर नारेबाजी हुई और उन्हें बोलने से भी रोका गया। हालात को नियंत्रण में रखने के लिए राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान को सदन में मार्शल बुलाने पड़े। बाद में मार्शल ने रास्ता बनाकर राज्यपाल को सुरक्षित चेयर तक पहुंचाया। इसके बाद यूडीएफ विधायकों ने सदन से वॉक आउट कर दिया और विधानसभा के बाहर धरने पर बैठ गए।

 

राज्यपाल ने मार्शल की मौजूदगी में ही बजट से पहले विधानसभा में पिनराई विजयन सरकार की नीतियों पर भाषण दिया। इस भाषण के एक पैराग्राफ में CAA का भी जिक्र किया गया था जो CAA विरोध था। इस पर राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने कहा, ‘हालांकि मैं इसे नहीं पढ़ना चाहता था, लेकिन सीएम की गुजारिश पर मैं ये CAA पर लिखा पैराग्राफ पढ़ रहा हूं, लेकिन मैं इससे इत्तेफाक नहीं रखता, क्योंकि खुद गृहमंत्री अमित शाह ने साफ किया है कि CAA से देश में रह रहे किसी भी नागरिक को कोई खतरा नहीं है।’

इस बयान से राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने स्पष्ट बता दिया है कि केरल की LDF सरकार गवर्नर के संवैधानिक पद  का कितना भी मज़ाक उड़ा ले लेकिन एक्सपोज खुद को ही करेगी। प्रस्ताव पढ़ते समय ‘डिस्क्लेमर’ के साथ यह बताना कि “जो मैं पढ़ने जा रहा हूँ वह मेरे विचार नहीं है” एक बड़ी बात है। आरिफ मोहम्मद खान ने अपने व्यंग से केरल सरकार की धज्जियां उड़ा कर रख दी।

गौरतलब है कि केरल सरकार नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ प्रस्‍ताव पास कर चुकी है। इसके बाद राज्‍य सरकार सुप्रीम कोर्ट गई थी। इसकी जानकारी राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान को नहीं दी गई थी। इस पर राज्‍यपाल ने नाराजगी जाहिर की थी।

हालांकि, जनता द्वारा चुनी हुई सरकार का फैसला ही सर्वमान्य होता है  लेकिन उसका मतलब यह नहीं होता है कि सरकार के MLA राज्यपाल के साथ बसलूकी करे और सदन में जाने से उन्हें रोके। किसी राज्यपाल के साथ सरकार के मतभेद हो सकते हैं लेकिन राज्यपाल के संवैधानिक पद की गरिमा होती है और उसे बनाए रखना सरकार का कर्तव्य होता है। केरल की सरकार कितने भी प्रस्‍ताव पारित कर ले लेकिन वह संविधान में लिखित केंद्र सरकार कि शक्तियों के आगे CAA को मानने के लिए बाध्य है।

बता दें कि संविधान के अनुसार नागरिकता एक केंद्रीय विषय है और इस पर कानून बनाने से लेकर लागू करने का अधिकार सिर्फ केंद्र सरकार के पास है। संघ सूची (Union List) भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची में वर्णित कुछ विषयों की सूची है जिसमें दिये गये विषयों पर केवल केन्द्र सरकार कानून बना सकती है। इस सूची में नागरिकता 17वें स्थान पर आता है। इसके साथ ही संविधान के अनुच्छेद 11 से नागरिकता अधिनियम में संशोधन के लिए संसद के पास विशेष अधिकार है। इसलिए जो भी राज्य इसका विरोध कर रहे हैं, वे इस बिल को लागू करने के लिए बाध्य हैं।

केरल के गवर्नर ने अपने भाषण के साथ सरकार को यह संकेत दे दिया कि वह किसी के हाथ की कठपुतली नहीं है जिन्हें कुछ भी पढ़ने को दिया जाएगा और वह पढ़ देंगे।

Exit mobile version