जब बात किसी यूनिवर्सिटी में हिंसा की हो तो JNU का नाम सबसे ऊपर आता है। पिछले रविवार को हुई हिंसा के बाद यह विश्वविद्यालय चर्चा के केंद्र में बना हुआ है। अभी तक तो JNU के वामपंथी गुट छिप कर हमले करने और सामने से वाद-विवाद की बात करते थे, लेकिन अब यह गुट खुलेआम बस्तर के नक्सलियों की तरह पोस्टर चिपका कर धमकी देने पर उतर गया है।
दरअसल आज यानि शुक्रवार को JNU कैंपस में कुछ पोस्टर चिपके मिले और उसमें 4 लोगों की फोटो छपी थी। पोस्टर पर लिखा था “Traitor of JNU,Architect of Violence”फोटो के नीचे सभी लोगों का नाम भी लिखा था। ये सभी JNU के प्रोफेसर ही थे। पोस्टर में नीचे यह भी लिखा था“Nothing will be forgotten, Nothing will be forgiven. यानि कुछ भूला नहीं जाएगा और कोई माफ भी नहीं किया जाएगा”।
https://twitter.com/Abhina_Prakash/status/1215529557173755904?s=19
इन सभी प्रोफेसरों ने JNU में पल रहे वामपंथी गुट के अति-हिंसात्मक विचारों के सामने झुकने से इंकार कर दिया था और जो सही है उसके लिए खड़े रहे थे। इस वजह से इन्हें JNU में traitor यानि गद्दार घोषित कर खुली धमकी दी गयी थी, जैसे नक्सली अपने इलाके के गाँवों में किसी मुखबिर को जान से मार देने और उसकी मदद करने वालों को भी लटका देने की धमकी देते हैं।
इन पोस्टरों में जेएनयू के पूर्व छात्र, और दिल्ली विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर, अभिनव प्रकाश की भी तस्वीर थी। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए अभिनव प्रकाश ने ट्वीट भी किया।
https://twitter.com/Abhina_Prakash/status/1215531580338257920?s=19
उस पोस्टर में अभिनव प्रकाश पर “RSS ट्रोल होने और साबरमती हॉस्टल के अंदर नकाबपोश गुंडों को भगाने में मदद करने के लिए वीडियो बनाने” का आरोप लगाया गया था।
बाकी इस पोस्टर के हिट लिस्ट में तीन प्रोफेसर JNU के ही थे और वे थे तपन बिहारी, प्रकाश चंद्र साहू और धनंजय सिंह। इन सभी ने वामपंथी गुट के खिलाफ अपनी आवाज को उठाया और अभिनव प्रकाश ने तो JNUSU के खिलाफ खुल कर बोला है। शायद इसलिए उनका भी नाम नक्सलियों की इस हिटलिस्ट में था।
बता दें कि घने जंगलों में नक्सली अपनी सत्ता चलाते हैं और अगर कोई उनके खिलाफ जाने की कोशिश करता है तो उसे जान से मार दिया जाता है। अगर कोई भाग जाता है तो उसके खिलाफ उनके कंगारू कोर्ट के द्वारा वारंट जारी कर दिया जाता है, साथ ही उसे मदद देने वालों के खिलाफ भी। यह जानना जरूरी है कि नक्सलवाद से प्रभावित राज्यों में गांववालों के बीच भय पैदा करने के लिए खूंखार नक्सली अपनी कंगारू अदालतों में उन नागरिकों को मौत की सजा देते हैं, जो उनके प्रभाव वाले क्षेत्रों में उनकी विचारधारा को नहीं मानते या उन्हें पुलिस का मुखबिर बताते हुए सजा देते हैं। ऐसी अदालतों को कंगारू कोर्ट कहा जाता है। वे भी अपने खिलाफ जाने वालों के लिए पोस्टर ही जारी कर गांव-गांव चस्पा देते हैं।
दिल्ली के JNU में भी उसी विचारधारा का बोल-बाला है, उसी का नमूना हमें इस पोस्टर से भी मिलता है कि जो भी उनकी विचार धारा से विपरीत जाएगा, उसे भी उसी तरह सज़ा दी जाएगी जैसे नक्सली अपने जंगल में देते हैं।
देश की राजधानी दिल्ली में इस तरह के दिल दहला देने वाले पोस्टर्स में सिर्फ प्रोफेसर नहीं हैं बल्कि छात्र भी हैं। छात्रों को तो पोस्टर्स में ‘Pariahs’ घोषित किया कर दिया गया है जिसका अर्थ होता हैं ‘सबसे नीची जाति का’। लोहित छात्रावास के निवासियों द्वारा प्रकाशित पोस्टर में विकास कुमार गौतम, मीनाक्षी खन्नाल और एम. कृष्णराव जैसे छात्रों का फोटो सामने आया है। उस पोस्टर में यह लिखा था कि, ‘ये गुंडे सीधे हमारे जेएनयू में हुए हमलों में शामिल थे। हमें खेद है और शर्म आती है कि ये लोग हमारे छात्रावास का हिस्सा थे।”
जेएनयू की स्थिति अब इस हद तक बिगड़ चुकी है कि JNUSU और उनके हिंसक विचार के खिलाफ जाने वालों को खुलेआम धमकी दी जा रही है। सरकार अब इन अर्बन नक्सलियों के साथ नर्म रुख अपनाने का जोखिम नहीं उठा सकती है। अगर ऐसा होता है तो वह दिन दूर नहीं जब बस्तर जिले के खूंखार नक्सलियों के जैसे ही देश की राजधानी में स्थित इस यूनिवर्सिटी में भी खुलेआम कंगारू कोर्ट चलेगा।