ब्रेनवॉशिंग, गुंडई पर फ़िक्स्ड पेमेंट और चक्का जाम, जानिए शाहीन बाग के प्रदर्शनों का पूरा सच

शाहीन बाग

इस बार दिल्ली के स्कूलों और कॉलेजों के लिए थोड़ा छोटा विंटर ब्रेक था। पर लगता है ये बात शाहीन बाग में बैठे कुछ लड़कियों के लिए लागू नहीं होती। जिस तरह के विश्व स्तरीय स्कूलों के दावे सत्तासीन पार्टी AAP कर रही है, उसमें ये लड़कियां वापिस नहीं जा रही, उल्टा उनका उपयोग मोदी सरकार को नीचे दिखाने के लिए कुछ लोग अपना राजनीतिक हित साधने हेतु कर रहे हैं।

सीएए के विरोध को बल देने हेतु शाहीन बाग के आयोजकों ने एक अनोखा तरीका निकला। छोटी-छोटी बच्चियों और महिलाओं को शाहीन बाग में विरोध प्रदर्शन कराया जा रहा है। एक वीडियो में एक लड़की कह रही है, “हमें कपड़े नहीं पहनने दिये जाएंगे। हमें डिटेन्शन कैंप्स में दिन में केवल एक बार खाना दिया जाएगा”। इससे साफ पता चलता है कि छोटे-छोटे बच्चों को किस तरह विपक्षी पार्टियों के concentration camps वाली अफवाहों से भ्रमित कर शाहीन बाग के प्रदर्शनों के आयोजक से अपना काम निकलवा रहे हैं –

एक और वीडियो में दिखाया गया है कि कैसे यह लोग इन छोटी-छोटी बच्चियों से देशद्रोही के नारे भी लगवा रहे हैं। आज़ादी के नारे लगवाने ऐसे छोटे बच्चों के बस की बात नहीं है, और ये बात पूर्णतया स्पष्ट है कि इसके पीछे कोई बड़ा हाथ है। जो राजनीतिक गुट इस प्रदर्शन के पीछे हैं, वे नहीं चाहते कि किसी भी स्थिति में उनका एजेंडा फ्लॉप हो।

https://twitter.com/knowthenation/status/1218097304319614977?s=20

 

प्रदर्शनकारियों को इस बात से डराया जा रहा है कि सीएए लागू होते ही भारत में अल्पसंख्यकों के विरुद्ध सरकार बर्बर कार्रवाई करेगी। प्रोपगैंडा के अनुसार सीएए के लागू होने से मुसलमानों को अंधाधुंध मारा जाएगा, concentration camps का जाल बिछाया जाएगा, मुसलमानों से उनके नागरिकता अधिकार छीने जाएंगे। परंतु ये तो इस प्रदर्शन का सिर्फ एक पहलू है। शाहीन बाग में विरोध प्रदर्शन करने वालों का मकसद तो कुछ और ही है।

इन प्रदर्शनों के पीछे का उद्देश्य है मुसलमानों का विश्वास जीतना। यहाँ दावेदार कई हैं, और कोई भी पीछे नहीं रहना चाहता है। वैसे भी शाहीन बाग के विरोध प्रदर्शन दिल्ली विधानसभा चुनावों से ठीक पहले हो रहे हैं, जो इस प्रदर्शन को वोट बैंक की राजनीति में विश्वास करने वाले राजनीतिक दलों के लिए अहम बना देता है।

जहां तक सत्तासीन पार्टी की बात की जाये, तो आम आदमी पार्टी इन प्रदर्शनों को अपना अप्रत्यक्ष समर्थन दे रही है। कहने को AAP आम आदमी की पार्टी है, पर उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि इन प्रदर्शनों के कारण घंटों तक जाम लग रहा है, जिसके कारण कई लोग केजरीवाल सरकार का विरोध करने पर उतर आए हैं। पिछले महीने जामिया पर हुई ‘पुलिस कार्रवाई’ के विरोध में की गयी आगजनी को भड़काने में आम आदमी पार्टी के नेता अमानतुल्लाह खान का भी नाम सामने आया था। रोचक बात तो यह है कि जामिया नगर शाहीन बाग से ज़्यादा दूर भी नहीं है।

यही नहीं, सीलमपुर में हिंसक भीड़ के नेतृत्व करने के आरोपी अब्दुल रहमान को आम आदमी पार्टी ने सीलमपुर से टिकट थमाई है। वोट बैंक की राजनीति में अरविंद केजरीवाल ने नैतिकता और न्याय को ताक पर रखते हुए ऐसे दंगाइयों को बढ़ावा देने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।

अब ऐसे में भला काँग्रेस कैसे पीछे रहती, आखिर वोट बैंक का सवाल जो ठहरा। शाहीन बाग में अपने पार्टी के लिए समर्थन जुटाने हेतु मणि शंकर अय्यर का ‘कातिल’ वाला तंज़ यूं ही नहीं किया गया था। इसी भांति शाहीन बाग में विरोधियों को बढ़ावा देने के लिए शशि थरूर, संदीप दीक्षित, सुभाष चोपड़ा जैसे वरिष्ठ काँग्रेस नेता शाहीन बाग गये थे। इनका इरादा स्पष्ट था – भारत की छवि को धूमिल करना, और अपना राजनीतिक हित साधना। रिपब्लिक के ट्वीट के अनुसार के आयोजक ने तो इस बात को स्वीकारा भी कि इन प्रदर्शनों का प्रमुख उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय मीडिया का समर्थन प्राप्त करना है –

https://twitter.com/republic/status/1218831396837326849?s=20

इस बात की पुष्टि इसी चीज़ से होती है कि जब कुछ दिन पहले शाहीन बाग में प्रदर्शनकारियों के एक गुट ने अपना प्रदर्शन बंद करने का निर्णय किया। परंतु अभी प्रदर्शन बंद नहीं हुए हैं, क्योंकि ये कुछ राजनीतिक तत्वों के हितों के विरुद्ध जाता है। वे इन प्रदर्शनों को वैसे ही बनाए रखना चाहते हैं, ठीक वैसे ही जैसे चीन के विरुद्ध हाँग काँग के विरोध प्रदर्शनों ने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा था।

जिस तरह मीडिया ने इन प्रदर्शनों के प्रति हमदर्दी दिखाई है, उससे साफ पता चलता है कि किस तरह का पीआर कैम्पेन इन प्रदर्शनों के पीछे व्याप्त है। शाहीन बाग के प्रदर्शनों को नैतिक करार देने के लिए मीडिया एड़ी चोटी का ज़ोर लगा रही है, जबकि वास्तविकता तो यही है कि ये प्रदर्शन नैतिकता का उपहास उड़ा रहे हैं, जिसे सोशल मीडिया पर कई यूजर्स ने आड़े हाथों भी लिया।

 

https://twitter.com/atulahuja_/status/1218791368971042817

 

शाहीन बाग के विरोध प्रदर्शनों को सीएए के विरुद्ध भारतीयों के विद्रोह के तौर पर प्रदर्शित किया जा रहा है, परंतु सच तो यह है कि देश में सांप्रदायिक वैमनस्य को भड़काने हेतु इन प्रदर्शनों को मीडिया जानबूझकर इतनी लाईमलाइट दे रही है। अपने प्रदर्शनों को उचित ठहराने के लिए इन प्रदर्शनकारियों ने कश्मीरी पंडितों के समर्थन में कुछ मिनट के मौन का ढोंग भी किया था, परंतु जब कश्मीरी पंडितों के एक समूह ने उनका ढोंग उजागर किया, तो जिस तरह से प्रदर्शनकारियों और कश्मीरी पंडितों में हिंसक झड़प हुई, उससे इनकी वास्तविक नीयत का अंदाज़ा कोई भी लगा सकता है –

https://twitter.com/RC_Shukl/status/1219093811089068032?s=20

शाहीन बाग के विरोध प्रदर्शन गुंडागर्दी, संप्रदायिकरण और indoctrination का बेजोड़ उदाहरण है। इसे भले ही लोग कितना भी सीएए के विरुद्ध शांतिपूर्ण प्रदर्शन के रूप में दिखाने का प्रयास करे, पर सच तो यही है कि यह एक सुनियोजित षड्यंत्र है, जिसका मुख्य उद्देश्य सिर्फ सत्ता प्राप्ति के लिए किसी भी सीमा को लांघ जाना है।

 

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