मेरा नाम डॉ॰ खान है और मुझे यूपी नहीं जाना – कफील खान यूपी पुलिस से डरे हुए हैं और महाराष्ट्र में ही रहना चाहते हैं

डॉ खान, इतना डर किस बात का?

कफील खान

हाल ही में गोरखपुर की त्रासदी के कथित हीरो डॉ॰ कफील खान को यूपी की स्पेशल टास्क फोर्स ने मुंबई से हिरासत में लिया था। कफील खान पर दिसंबर 2019 में नागरिकता संशोधन एक्ट के खिलाफ अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में एक भड़काऊ भाषण देने का आरोप लगा था। परंतु डॉ॰ कफील खान ने पेशी के दौरान स्पष्ट कह दिया कि वे उत्तर प्रदेश नहीं जाना चाहते हैं।

कोर्ट में पेशी से पहले पत्रकारों से बातचीत करते हुए डॉ॰ कफील खान ने कहा, “मुझे गोरखपुर त्रासदी में क्लीन चिट मिल गयी थी। अब वे मुझे फिर से फंसाना चाहते हैं। मैं महाराष्ट्र सरकार से आवेदन करता हूं कि वे मुझे यहाँ रहने दे। मुझे उत्तर प्रदेश पुलिस पर बिलकुल भी विश्वास नहीं है”। हालांकि, मुंबई के बांद्रा कोर्ट ने कफील की एक न सुनी और उसे यूपी के एसटीएफ़ को सौंप दिया।

परंतु डॉ॰ कफील खान यूपी जाने से इतने भयभीत क्यों है? आखिर ऐसी क्या बात है, जो कफील खान यूपी पुलिस के हाथों नहीं सौंपे जाना चाहते? इसके लिए हमें 2017 की गोरखपुर त्रासदी पर प्रकाश डालना होगा, जिसके कारण डॉ॰ कफील खान पहली बार सुर्खियों में आए थे।

2017 में गोरखपुर में जापानी बुखार के कारण बीआरडी मेडिकल कॉलेज में एक साथ 60 से ज़्यादा बच्चों की एक ही हफ्ते में मृत्यु हो गयी थी। जैसे ही सामने आया कि ऑक्सीजन के पर्याप्त सिलिंडर न होने के कारण ये त्रासदी हुई है, मीडिया ने आसमान सिर पर उठाते हुए योगी सरकार को निशाने पर लेना शुरू कर दिया था, और उनके इस्तीफे की मांग शुरू हुई थी। उस समय योगी सरकार को सत्ता संभाले हुए महज 5 महीने ही हुए थे, और बतौर सांसद वे पहले से ही जापानी बुखार को गोरखपुर और उत्तर प्रदेश के अन्य शहरों से मिटाने के लिए प्रयासरत थे।

इसी बीच मीडिया को मानो डॉ॰ कफील खान में एक नया मसीहा मिल गया था। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार डॉ॰ कफील खान ने अपने खर्चे पर कुछ अतिरिक्त ऑक्सीजन सिलेंडर की व्यवस्था कराई और बच्चों को मरने से बचाया था। डॉ॰ कफील खान बीआरडी कॉलेज के इंसेफेलाइटिस विभाग के मुख्य नोडल अधिकारी थे। वे कॉलेज के परचेस कमिटी (खरीददारी समिति) के सदस्य भी रह चुके थे, अर्थात क्या सामान खरीदना है, क्या ख़रीदा जाना है, क्या ख़त्म हो रहा है, क्या आवश्यकता है, सब कुछ इनकी जिम्मेदारी और निगरानी में रहता था। ऐसे में ये प्रश्न उठना स्वाभाविक था कि क्या कफील को ऑक्सिजन की कमी के बारे में मालूम नहीं था?

जैसे-जैसे जांच पड़ताल में तथ्य सामने आए, डॉ॰ कफील खान के मसीहा वाली छवि की धज्जियां उड़ने में ज़्यादा समय नहीं लगा। डॉ॰ कफील खान बीआरडी मेडिकल कॉलेज से ज़्यादा अपने निजी प्रैक्टिस पर ध्यान देते थे। कुछ सूत्रों के अनुसार वे सरकारी फण्ड्स से मिलने वाले ऑक्सीजन सिलेंडर में से कुछ सिलिंडर अपने निजी क्लीनिक में भी स्थानांतरित कराते थे। स्पष्ट है निजी अस्पताल चलाने के चक्कर में उन्होंने अपने सरकारी अस्पताल वाले पेशे में लापरवाही बरती।  इसके अलावा जिस तरह से कफील खान ने घटना के कुछ ही देर बाद एक के बाद कई विपक्षी राजनेताओं को ट्वीट किए, उससे स्पष्ट होता है कि ये डॉक्टर जो भी हो पर, गोरखपुर में नन्हें बच्चों के मसीहा तो बिलकुल नहीं थे बल्कि यहाँ कुछ और ही खिचड़ी पक रही थी।

इतना ही नहीं, बीआरडी मेडिकल त्रासदी मामले में गिरफ्तार डॉक्टर राजीव मिश्रा भी डॉक्टर कफील के साथ षड्यंत्र में शामिल थे जो अब सलाखों के पीछे हैं। इसके बाद जो बात सामने आई वो ये थी जिस सिलिंडर को कफील खान के अपने खर्च पर अन्य नरसिंह होम से लाने की बात कही जा रही थी वास्तव में वो डॉक्टर कफील के ही क्लिनिक से लाये गये थे। ये सभी खुलासे यूपी पुलिस की तत्परता के कारण ही सामने आ पाए थे।

वहीं जब ये सच सामने आया तो मीडिया के झूठ का भी खुलासा हो गया जो बिना पूरी तह तक जाए ही किसी को भी हीरो बना देती है। सच बाहर आने के बाद गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में संदिग्ध परिस्थितियों में मरीज बच्चों की मौत के मामले में अभियुक्त डॉ कफील खान को गिरफ्तार कर लिया गया था।

2018 में रिहा होने के बाद डॉ॰ कफील खान ने अपना असली रंग दिखाते हुए भाजपा के विरोध के नाम पर भारत के विरुद्ध विष उगलना शुरू कर दिया था। इसी संबंध में कफील ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का दिसंबर 2019 में दौरा किया था, जहां 600 से ज़्यादा उपद्रवियों को संबोधित करते हुए जनाब भड़काऊ भाषण दे रहे थे। अब यूपी पुलिस कैसे ऐसे नफरत फैलाने वाले आरोपी को खुला छोड़ सकती थी ? फलस्वरूप अलीगढ़ में कफील खान के विरुद्ध आईपीसी की धारा 153 A के अंतर्गत एफ़आईआर दर्ज की गयी और उत्तर प्रदेश पुलिस की स्पेशल टास्क फोर्स यानी एसटीएफ की टीम ने  जल्द ही कफील को गिरफ्तार भी कर लिया। योगी सरकार के नेतृत्व में कोई भी आरोपी बच नहीं सकता उसे अपने जुर्मों का हिसाब देना ही पड़ता है ऐसे में कफील खान में डर लाजमी है।

कफील शायद एक और कारण से डर रहे हैं, क्योंकि उसे भी पता है कि यूपी पुलिस किस तरह से अपराधियों की खातिरदारी करती है। जब से योगी आदित्यनाथ ने सत्ता संभाली है, यूपी पुलिस को मानो एक नया जीवन मिल गया था, और कानून व्यवस्था के जिस क्षेत्र में उत्तर प्रदेश हमेशा मात खाती थी, उसमें उत्तर प्रदेश भयानक स्तर पर सुधार हुआ है। सीएए के विरोध के नाम पर हिंसा की आग जब दिल्ली और बंगाल से होते हुए उत्तर प्रदेश पहुंची, तो उपद्रवियों को लगा कि यहाँ भी उन्हें कोई हाथ नहीं लगा पाएगा। पर यहाँ तो योगी सरकार के नेतृत्व में यूपी पुलिस मानो उनकी प्रतीक्षा में बैठी हुई थी।

जैसे ही योगी सरकार ने यूपी पुलिस को खुलेआम छूट दी। इसके बाद तो जैसे पुलिस में जान ही आ गई। यूपी पुलिस ने दंगाईयों को मुंहतोड़ जवाब दिया और 2 दिन में ही हिंसा करने वालों की कमर तोड़ डाली। इतना ही नहीं, प्रशासन ने यह भी ऐलान कर दिया कि जो भी उपद्रव करता पकड़ा जाएगा, उसके निजी संपत्ति से सार्वजनिक संपत्ति को हुए नुकसान की भरपाई भी की जाएगी। अब चूंकि डॉ॰ कफील खान ने अलीगढ़ में उपद्रवियों को भड़काने में एक अहम किरदार निभाया है, इसलिए कफील को अच्छी तरह पता है कि पुलिस उनके साथ वैसा ही व्यवहार करेगी, जैसा उन्होंने सहारनपुर में उपद्रव फैलाने के लिए भीम आर्मी के प्रमुख चन्द्रशेखर रावण के साथ किया था। मतलब इनकी खातिरदारी की पूरी तैयारी है, ऐसे में डरना लाजमी है।

 

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