सांसद आदर्श ग्राम योजना की असफलता बिहार चुनाव में BJP को भारी पड़ने वाली है

सांसद आदर्श ग्राम योजना

वर्ष 2014 में सत्ता में आने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने कई जन-लाभकारी योजनाओं का शुभारंभ किया था। ऐसी ही योजनाओं में नाम शामिल था सांसद आदर्श ग्राम योजना का। 11 अक्टूबर 2014 को शुरू की गई इस योजना के तहत देश के सभी सांसदों को एक साल के लिए एक गांव को गोद लेकर वहां विकास कार्य करना था,  जिससे गांव में बुनियादी सुविधाओं के साथ ही खेती, पशुपालन, कुटीर उद्योग, रोजगार आदि पर भी जोर दिया जा सकता था। हालांकि, इस योजना के शुरू होने के पांच साल के बाद अब यह स्कीम असफल होती नज़र आ रही है। चरण दर चरण इस योजना के तहत ग्रामों को गोद लेने वाले सांसदों की संख्या घटती रही। अब दुर्दशा यह हो गयी है कि चौथे चरण के आते-आते लगभग दो –तिहाई सांसदों ने किसी भी गांव को अपनाकर उसे विकसित करने के लक्ष्य से मुंह मोड़ लिया है।

अब आपको आंकड़ों के बारे में बताते हैं। सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत पहले चरण में लोकसभा और राज्यसभा के सांसद मिलाकर कुल 790 सांसदों में से 703 सांसदों ने गावों को गोद लिया था। परन्तु समय गुजरने के साथ-साथ सांसदों की दिलचस्पी इस योजना से जाती रही। दूसरे चरण में 497 सांसदों ने ही गांव को गोद लिया। वहीं तीसरे चरण में यह संख्या आधी रह गई, सिर्फ 301 सांसद ही थे जिन्होंने गावों को विकसित करने के लिए गोद लिया। हर चरण के साथ इस योजना में दिलचस्पी लेने वाले सांसदों की संख्या और सीमित हो गई। चौथे चरण में सिर्फ 252 सांसदों ने ही गांव को गोद लिया। मतलब ये कि पांच साल में 451 सांसदों ने इस योजना से मुंह मोड़ लिया।

लेकिन ऐसा भी नहीं है कि जिन गांवों को सांसदों द्वारा गोद लिया गया था, उनकी काया-पलट कर दी गयी हो। सांसदों द्वारा गोद लिए गए गांवों में भी महज़ 56 प्रतिशत काम ही पूरा हो पाया है। जुलाई 2019 तक, गोद लिए कुल गांवों में से केवल 1,297 गांवों ने ही डेटा पहुंचाया, जिसके मुताबिक इन गांवों में 68,407 परियोजनाओं में से सिर्फ 38,021 परियोजना ही पूरी हो सकी हैं। हिमाचल प्रदेश, बिहार, अरुणाचल प्रदेश, असम और ओड़ीशा जैसे राज्य इस स्कीम को लागू करने में सबसे फिसड्डी साबित हुए हैं और इन्हीं राज्यों में सबसे ज़्यादा ग्रामीण क्षेत्र भी हैं।

सबसे बुरी बात तो यह है कि एक दो को छोड़कर भाजपा के बाकि सभी सांसदों ने भी सांसद आदर्श ग्राम योजना को लेकर अपना निराशाजनक रुख अपना रखा है। इसका ऐसे राज्यों में भाजपा के चुनावी प्रदर्शन पर बुरा असर पड़ सकता है, जहां ग्रामीण आबादी ज़्यादा रहती है। बिहार, हिमाचल प्रदेश जैसे राज्य ऐसे राज्यों के सबसे उत्तम उदाहरण हैं। बिहार में तो लगभग 90 प्रतिशत जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में ही रहती है। हालांकि, बिहार में सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत शुरू हुई 4817 परियोजनाओं में से केवल 1614 परियोजनाएं ही पूरी हो पायी हैं। बिहार जैसे ग्रामीण बहुल राज्य में इस योजना की दुर्दशा से आने वाले चुनावों में भाजपा को सबसे बड़ा नुकसान पहुंच सकता है।

विपक्ष से तो इस योजना को लेकर किसी सकारात्मक रुख की अपेक्षा नहीं की जा सकती, लेकिन कम से कम भाजपा के सांसदों को तो इसके प्रति कार्यशील रुख अपनाना चाहिए था। बिहार में NDA के 31 सांसद हैं और भाजपा के इनमें से 22 सांसद हैं। यानि अगर बिहार में भाजपा के सांसद इस योजना को गंभीरता से लेते, तो आज यह दिन ना देखना पड़ता।

बिहार में अब लोग भाजपा से यह प्रश्न जरूर पूछेंगे कि उनके सांसदों ने बिहार के ग्रामों को विकसित करने के लिए आखिर किया ही क्या है? ये सवाल ऐसे समय में भाजपा को और ज़्यादा परेशान कर सकते हैं जब भाजपा नीतीश कुमार से अलग होकर बिहार में अकेले ही चुनाव लड़ने का फैसला ले। ये सांसद समझते हैं कि पीएम मोदी की लोकप्रियता के रथ पर सवार होकर ये चुनावी संग्राम को आसानी से जीत सकते हैं, लेकिन लोगों का विश्वास जीतने के लिए इन सांसदों को अपने स्तर पर भी अपनी बेहतर छवि बनाने की आवश्यकता है। अब तक इन सांसदों द्वारा ना जाने कितने ही गांवों को विकसित किया जा सकता था, कितने ही लोगों की ज़िंदगियों को उन्नत बनाया जा सकता था, लेकिन सांसदों के आलस-भरे स्वभाव ने ऐसा नहीं होने दिया। अब समय आ गया है कि नयी सरकार में चुने गए सांसद इस योजना की गंभीरता को समझे और इस योजना को सफल करने की दिशा में ज़रूरी कदम उठाए।

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