कुछ दिनों पहले मनसे यानि महाराष्ट्र नव निर्माण सेना के सुप्रीमो राज ठाकरे ने महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा नेता देवेन्द्र फडणवीस से मुलाक़ात की थी। इस कारण राजनीतिक गलियारों में कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। यह भी कयास लगाया जा रहा है कि MNS भाजपा के साथ गठबंधन कर सकती है और अपनी विचारधारा को ‘मराठी मानुष’ से ‘हिन्दुत्व’ की ओर एक नया आयाम दे सकती है।
रिपोर्ट्स के अनुसार राज ठाकरे 23 जनवरी को पार्टी conclave यानि MNS महाअधिवेशन के दौरान नई घोषणा कर सकते हैं। बता दें कि इसी दिन बाल ठाकरे का जन्मदिन भी है। यह उम्मीद लगाई जा रही है कि इस दिन राज ठाकरे अपनी पार्टी के कोर यानि मुख्य एजेंडे में हिन्दुत्व को जोड़ सकते हैं।
महाअधिवेशन के लिए जारी किए गए एक पोस्टर में मराठी मानुष के बाद हिन्दुत्व का ही रंग नजर आ रहा था। पूरा पोस्टर भगवे रंग से रंगा था और लिखा था “महाराष्ट्र धर्म के बारे में सोचो, हिन्दू स्वराज्य का निर्धारण करो।”
बता दें कि मनसे शिवसेना के कांग्रेस के साथ जाने के कारण खाली हुई जगह को भरने की कोशिश कर रही है। मुख्यमंत्री सीट के चक्कर में उद्धव ठाकरे ने एनसीपी-कांग्रेस के साथ गठबंधन करने के लिए ‘मराठी मानुष’ और हिंदुत्व दोनों से समझौता कर लिया। उनके इस फैसले के कारण शिवसेना के जमीनी स्तर के कार्यकर्ता भी भड़के हुए हैं। बाल साहब ठाकरे ने जिस एक मुद्दे यानि हिन्दुत्व को केंद्र में रख कर शिवसेना का गठन किया था और BJP से भी गठबंधन किया था, अब उद्धव उन मुद्दो को छोड़ चुके हैं।
शिवसेना ने राम मंदिर के मुद्दे पर सुस्ती दिखाई तो वहीं, कश्मीर में इंटरनेट प्रतिबंध और कई अन्य महत्वपूर्ण वैचारिक मुद्दों पर भी केंद्र की आलोचना की। शिवसेना का रुख अब इस प्रकार बदल चुका है कि उद्धव ठाकरे जेएनयू के छात्रों पर हमले की तुलना 26/11 के साथ करने लगे हैं, जो केवल षड्यंत्र रचने वाले कम्युनिस्ट ही करते हैं।
इससे महाराष्ट्र की राजनीति में हिन्दुत्व को अपनाने और बाल ठाकरे की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए मनसे और राज ठाकरे को अच्छा मौका मिला है जिसे वे पूरी तरह से भुनाने की जुगत में लग गए हैं। राज ठाकरे ने बाल ठाकरे की छत्रछाया में ही राजनीति का ककहरा सीखा है और उनकी विरासत को आगे बढ़ाने के लिए वे ही सबसे सक्षम उम्मीदवार हैं।
वर्ष 2014 में पार्टी ने पीएम मोदी का भी समर्थन किया था। हालांकि, वर्ष 2019 में राज ठाकरे ने भाजपा की आलोचना की थी। परंतु उन्होंने हिन्दुत्व की राजनीति की आलोचना कभी नहीं की।
मनसे की पार्टी अधिवेशन 23 जनवरी को होने वाली है और इस तिथि का अपने आप में एक बड़ा महत्व है। 23 जनवरी को ही बाल साहब ठाकरे का जन्मदिन है, जिनकी विरासत को वो आगे बढ़ाने की घोषणा कर सकते हैं। राज ठाकरे ने हमेशा अपने आप को बाल साहब के बाद हिंदुत्व आइकन के उत्तराधिकारी के रूप में देखा है, और इसलिए, जब बाल साहब ठाकरे ने उद्धव ठाकरे को अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी बनाया तब राज ठाकरे ने शिवसेना छोड़ मनसे बनाने का निर्णय लिया।
अगर देखा जाए तो राज ठाकरे ही महाराष्ट्र में बाल साहब के असली उत्तराधिकारी हैं। चाहे वे व्यक्तित्व की बात हो या भाषण देने की कला या फिर विचारों का खुलापन, राज ठाकरे ही बाल साहब के राजनीतिक उत्तराधिकारी के रूप में दिखते हैं। वह उसी स्टाइल में भाषण देते हैं, वही नारे लगाते हैं, और जन समूह को आकर्षित करने की क्षमता रखते हैं।
अगर उनकी रणनीति को ध्यान से देखा जाए तो राज ठाकरे को निश्चित रूप से फायदा होगा, क्योंकि शिवसेना और मनसे, दोनों ही पार्टियों का मतदाता आधार एक ही है। दूसरी ओर, भाजपा को महाराष्ट्र में एक और साथी मिलेगा, जिससे वैचारिक समानता रहेगी। अब माना जा रहा है कि भाजपा के साथ आकर MNS न सिर्फ पुनर्जीवित होगी बल्कि भाजपा को शिवसेना का एक सही विकल्प मिल जाएगा, और MNS भी राज्य की राजनीति में बड़ी भूमिका निभा सकेगी।