चोर-चोर मौसेरे भाई होते हैं, यह अपने तो सुना ही होगा। इसका नजारा हमें कल देखने को मिला जब छतीसगढ़ की कांग्रेस सरकार ने NIA एक्ट को असंवैधानिक करार देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। अब इस कदम के लिए PFI जैसे कट्टरवादी संगठन ने उसकी पीठ थपथपाई है। दरअसल, छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार ने अनुच्छेद 131 के तहत सुप्रीम कोर्ट से NIA एक्ट को असंवैधानिक करार देने की याचिका की थी। इसके बाद उग्रवादी संगठन PFI यानि पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया ने NIA अधिनियम के खिलाफ उच्चतम न्यायालय के समक्ष छत्तीसगढ़ सरकार की याचिका का स्वागत किया। अपने ट्विटर हैंडल से ट्वीट करते हुए PFI ने लिखा, छत्तीसगढ़ सरकार का यह कदम स्वागत योग्य है।
https://twitter.com/PFIOfficial/status/1217688789394415618?s=20
यही नहीं इस संगठन ने दूसरे गैर-BJP शासित राज्यों को भी इस कनून का विरोध करने को कहा।
अब जब एक आतंकी संगठन किसी राजनीतिक पार्टी का समर्थन करे तो समझ लेना चाहिए कि दाल में जरूर काला है। इस तरह से किसी उग्रवादी संगठन जिसपर हिंसा और बम-ब्लास्ट का आरोप हो, उसका किसी विपक्षी पार्टी के समर्थन में उतरना दिखाता है कि उसे NIA एक्ट से कितनी परेशानी है और इससे दोनों की संलिप्तता का पता चलता है।
बता दें कि 19 दिसम्बर को उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में हुई हिंसा के ‘मास्टरमाइंड’ समेत दो लोगों को सोमवार को गिरफ्तार किया गया। ये दोनों ही PFI के सदस्य थे। असम से भी हिंसा भड़काने वालों में PFI के सदस्य गिरफ्तार हुए थे। जिस तरह से CAA विरोध के नाम पर सुनियोजित हिंसा हुई थी और कांग्रेस सहित विपक्षी पार्टियों के सुर एक जैसे थे उससे तो कई सवाल खड़े होते हैं कि क्या ये सब मिले हुए थे और क्या यह सब जानबूझकर किया जा रहा है? यह ज्ञात रहे कि ये वही PFI है जिसका जड़ आतंकी संगठन SIMI से आता है। SIMI ने ही कांग्रेस के शासन में कई बम-धमाके करवाए थे।
2014 में ही केरल सरकार ने प्रतिबंधित आतंकी संगठन स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) के साथ गहरे संबंध या PFI को स्वीकार कर लिया था। केरल उच्च न्यायालय के समक्ष दायर एक हलफनामे में, केरल सरकार ने कहा था कि, ‘PFI प्रतिबंधित संगठन स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) का ही एक और रूप के अलावा और कुछ नहीं है’।
एफिडेविट में यह भी कहा गया था कि सीमा के अधिकांश पूर्व सदस्य अब या तो पीएफआई के साथ जुड़े हैं या वर्तमान में पीएफआई में विभिन्न विभागों को संभालते हैं। राज्य के खुफिया प्रमुख के निर्देश पर दायर बयान में यह भी कहा गया है कि पीएफआई का उद्देश्य अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करना है, लेकिन यह संगठन वास्तव में आपराधिक गतिविधियों में शामिल रहता है। यह बयान पीएफआई के हिंसक और सांप्रदायिक रूप को दर्शाता है। राज्य सरकार ने उच्च न्यायालय को यह बताया था कि PFI 27 सांप्रदायिक हत्या के मामलों, हत्या के 86 प्रयासों और 106 सांप्रदायिक मामलों में शामिल रहा है।
NIA PFI के कई मामलों की जांच कर रही है। इसी डर के कारण यह संगठन सकते में है और NIA से छुटकारा पाना चाहती है। अब कांग्रेस द्वारा NIA को असंवैधानिक करार दिये जाने के लिए याचिका की कई तो PFI को अपना हित नजर आया। कांग्रेस भी इसी बात से डरती है कि कहीं NIA उनकी भी पोल न खोल दें।
NIA ने देश के अंदर होने वाले आतंकी हमलों से देश को सुरक्षित रखा है। इस एजेंसी ने नक्सलवाद से निपटने में भी एक अहम भूमिका निभाई है। देश की यह प्रमुख आतंकवाद-रोधी जांच एजेंसी नक्सल फंडिंग को खत्म करने की मोदी सरकार की रणनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
ऐसा लगता है कि छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार नक्सलियों और देश में हिंसा करने वालों को फिर से मदद प्रदान करने के लिए NIA एक्ट को हटाना चाहती है। और PFI जैसे संगठन का समर्थन इसी बात का सूचक है।