JNU में हुई हिंसा पर दिल्ली पुलिस कल प्रेस ब्रीफिंग कर रही थी। ब्रीफिंग के दौरान पुलिस ने अपनी जांच में पाये गए सबूतों के आधार पर यह बताया कि हिंसा में JNUSU की अध्यक्ष आईशी घोष सहित 9 लोग संदिग्ध पाए गये हैं और साथ में यह भी कहा कि अभी और आगे जांच हो रही है और आगे भी इसी तरह प्रेस ब्रीफिंग दी जाएगी। परंतु देश में मीडिया ट्रायल का इतिहास रहा है। इसी का नमूना दिखाते हुए पुलिस की इस प्रेस ब्रीफिंग के बाद इंडिया टुडे के जाने-माने पत्रकार राहुल कंवल के नेतृत्व में स्टिंग ऑपरेशन का वीडियो जारी किया। इस वीडियो में एक हमलावर छात्र को ABVP का बताया गया और कहा गया कि हिंसा के पीछे ABVP का ही हाथ था। हालांकि, उस छात्र का AVBP से कोई संबंध नहीं होने की खबरें भी आ चुकी हैं।
राहुल कंवल इसके बाद भी अपनी छाती पीटते रहे कि यह छात्र ABVP का है और कल रात तो इन्होंने दिल्ली पुलिस पर लांछन लगाते हुए यहाँ तक कह दिया कि, ‘हम पत्रकार के तौर पर अपना काम अच्छे से कर रहे हैं, दिल्ली पुलिस और दिल्ली पुलिस के कमिश्नर को अब तो अपना काम अच्छे से करना चाहिए।’
We did our job as journalists. @DelhiPolice Commissioner Mr Amulya Patnaik you should, at least now, do yours. Without fear or favour. Show some spine. Goodnight. See you all tomorrow. Jai Hind.
— Rahul Kanwal (@rahulkanwal) January 10, 2020
अब सवाल उठता है कि आखिर कौन हैं ये राहुल कंवल और क्यों इस तरह कि एकतरफा, स्वरचित और पक्षपाती रिपोर्ट कर रहे हैं? जो भी लोग News चैनल देखते हैं कि उन्होंने यह देखा होगा कि यह पत्रकार कभी इधर से बात करता है तो कभी उधर से यानि सही शब्दों में कहा जाए तो अपने आप को यह centrist मानता है। परंतु आप थोड़ी गहराई में जाएंगे तो आपको यह दीवार के उस पर ही नजर आएगा बिलकुल अपने सहयोगी राजदीप सरदेसाई की तरह, “I am not asking janta will ask” मोड में।
राहुल कंवल एक wanna be राजदीप सरदेसाई हैं जो पक्षपाती तो हैं लेकिन ऐसे दिखाएंगे कि वह कितने निष्पक्ष हैं। राजदीप के बारे में तो आप सभी जानते हैं कि वह कैसे कांग्रेस के चहेते पत्रकारों में से एक हैं।
राहुल कंवल उन पत्रकारों में से हैं जिन्होंने अपनी शुरुआत तो हिन्दी पत्रकारिता से की थी लेकिन आज इंग्लिश के सफल पत्रकार बन चुके हैं। Zee News से शुरुआत करने के बाद उन्होंने आज तक में काम किया और फिर इंडिया टुडे में कर रहे हैं, इंडिया टुडे ग्रुप का अँग्रेजी चैनल है। आज वह इंडिया टुडे ग्रुप के न्यूज़ डायरेक्टर हैं।
इंडिया टुडे के लिए वे अक्सर ही इंटरव्यू लेते दिख जाते हैं लेकिन उनका अमित शाह और स्मृति ईरानी के साथ का इंटरव्यू मजेदार रहता है। ये जब भी अपनी आदत अनुसार गलत सवाल कर पक्षपात होने की कोशिश करते हैं वैसे ही यह दोनों नेता अपने तथ्यों से उनके एजेंडे को धराशायी कर देते हैं।
कभी कभी यह भी देखा जाता है कि वे अपने आप को प्रखर राष्ट्रवादी की तरह दिखाते हैं। पिछले साल हुए बालाकोट स्ट्राइक पर उनकी रिपोर्टिंग से उनकी राष्ट्रवादी भावना को देखा जा सकता है। परंतु शुक्रवार को राहुल कंवल ने जिस तरीके से अपने एजेंडे के लिए 22 अक्टूबर की वीडियो चला कर यह साबित करने की कोशिश की कि 5 जनवरी को हुई हिंसा में ABVP का हाथ था, उससे उनकी वास्तविक पत्रकारिता की पोल खुल गयी। यही नहीं इससे राहुल कंवल की credibility राजदीप सरदेसाई के जैसी हो गयी और शायद अब उन पर कोई कभी भी भरोसा न करे।
ऐसा पहली बार नहीं था जब राहुल कंवल ने यह दिखाने कि कोशिश कि वही सही हैं और वो जो कह रहे हैं वो राजा हरिश्चंद्र का सत्य। वैसे पहली बार नहीं था, इससे पहले जब BHU में संस्कृत धर्मविज्ञान संकाय में मुस्लिम प्रोफेसर कि नियुक्ति पर को लेकर BHU के छात्र शांति पूर्वक विरोध प्रदर्शन कर रहे थे तब भी इन्होंने इसी तरह की एकतरफा रिपोर्टिंग की थी। उन्होंने अपने मीडिया ट्रायल में BHU छात्रों को ही दोषी ठहरा दिया था और एक छात्र की बात सुने बिना उसे डांट कर चुप करा दिया था।
Chakrapani Ojha is Research Scholar in BHU & @rahulkanwal you are saying him "कलंक" & "अभी अभी पैदा हुए हो चुप रहो तुम "
Is this the language of national media's journalist ??
I can't understand that why your mouth is shut against the JNU students#IsupportBHUStudents https://t.co/oTX7FCncpg
— Bhavesh Lodha (Modi Ka Parivar) (@bhav2406) November 21, 2019
शुक्रवार कि रिपोर्ट में कई झूठ स्पष्ट थे। एक तरफ India Today उसी स्टिंग वीडियो को बिना किसी तारीख के दिखा रहा था, तो वहीं आजतक में दिखाये जा रहे उसी स्टिंग विडियो में अक्टूबर की तारीख थी।
JNU में हुई हिंसा में वामपंथी गुट के हिंसा पर पर्दा डालने के लिए इस तरह से झूठी रिपोर्ट चलाना यह दिखाता है कि राहुल कंवल निष्पक्ष नहीं हैं। यह बात अब आम हो चुकी है कि किस प्रकार वामपंथी गुट इस विश्वविद्यालय उत्पात मचाये हुए हैं और छात्रों को पीट कर परीक्षा के लिए रजिस्ट्रेशन करने से भी रोक रहे हैं। यही नहीं प्रोफेसरों को “गद्दार” घोषित कर नक्सलियों की तरह उनके पोस्टर चिपकाए जा रहे हैं। ऐसे गुंडों को बचाने के लिए राहुल कंवल ने राजदीप सरदेसाई की तरह ही घटिया स्तर की पत्रकारिता की जिससे यह साबित होता है कि वह निष्पक्षता के नाम पर बस एजेंडा चलाते हैं।