कोटा के जेके लोन अस्पताल में बच्चों की मौत का आंकड़ा बढ़कर 110 पहुंच गया है, लेकिन ऐसा लग रहा है कि राजस्थान की राज्य सरकार अभी भी सोयी हुई है। बच्चों की मौत का मुख्य कारण हाइपोथर्मिया बताया गया है। इसके अलावा अस्पताल के लगभग हर तरह के उपकरण और व्यवस्था में खामियां बताई गई हैं।लेकिन एक तरफ राज्य इस त्रासदी से जूझ रहा है, तो वहीं राजस्थान कांग्रेस के अंदर आंतरिक कलह की सुगबुगाहट भी आने लगी है। राजस्थान कांग्रेस में पहले से ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच सबकुछ ठीक नहीं चल रहा था। अब फिर से सचिन पायलट से एक ऐसा बयान दिया है, जो स्पष्ट रूप से मुख्यमंत्री के बयान से ठीक उल्टा है और अपनी ही सरकार पर हमले के रूप में देखा जा सकता है।
उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट ने अपनी ही सरकार पर निशाना साधा और स्वीकार किया है, कि कोई ना कोई खामी तो रही होगी। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि जिम्मेदारी तय होनी चाहिए। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा पुरानी सरकार की तुलना में कम बच्चों की मौत के तर्क को अस्वीकार करते हुए उन्होंने कहा कि “हमें सरकार में आए 13 महीने हो चुके हैं। पुरानी सरकारों को दोष देने से काम नहीं चलेगा। सरकार का रुख संतोषजनक नहीं है।“
Rajasthan Deputy Chief Minister Sachin Pilot on #KotaChildDeaths: I think our response to this could have been more compassionate and sensitive. After being in power for 13 months I think it serves no purpose to blame the previous Govt's misdeeds. Accountability should be fixed. pic.twitter.com/kpD9uxMfUy
— ANI (@ANI) January 4, 2020
सचिन पायलट ने कहा कि “13 महीने सरकार में रहने के बाद भी अब अव्यवस्थाओं या कमियों के लिए पूर्व की सरकार पर निशाना साधने से कोई हल नहीं निकलेगा। क्योंकि, अगर उन्होंने अपना काम ठीक तरह से किया होता, तो जनता उन्हें सत्ता से बाहर नहीं करती। हमें जनता ने चुना है, हमें जिम्मेदारी का सामना करना पड़ेगा, जनता की हमसे अपेक्षाएं हैं”।
सचिन पायलट का यह बयान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के उस अशोभनीय वक्तव्य से ठीक उल्टा है, जब उन्होंने कहा था कि “प्रदेश के हर अस्पताल में हर रोज 3-4 बच्चों की मौतें होती हैं। यह कोई नई बात नहीं है”। उन्होंने यह भी दावा किया कि इस साल पिछले 6 सालों के मुकाबले सबसे कम मौतें हुई हैं। उन्होंने कहा, ‘एक भी बच्चे की मौत दुर्भाग्यपूर्ण है, लेकिन मौतें 1400 भी हुई हैं, 1500 भी हुई हैं। इस साल तकरीबन 900 मौतें हुई हैं।’
सचिन पायलट संवेदनशील और अधिक मानवीय दिखे हैं। गहलोत का विरोध करते हुए उन्होंने सवाल किया कि, क्या हमें इतने बच्चों की मौत की जिम्मेदारी नहीं लेनी चाहिए? यदि बच्चों की इस तरीके से लगातार मौतें हो रही हैं, तो सरकार के लिए यह कहना सही नहीं है कि पहले अधिक मौतें हुईं। जब उपमुख्यमंत्री से अशोक गहलोत की उस अमानवीय और गैर जिम्मेदाराना बयान के बारे में पूछा गया, तो पायलट ने कहा,” मैं जो भी कह रहा हूं, पूरी जिम्मेदारी के साथ कह रहा हूं। ”
कोटा में हो रहे इस शर्मनाक घटना के बाद कांग्रेस और अशोक गहलोत सरकार की असंवेदनशील व्यवहार के कारण इस पार्टी को जमकर लताड़ लगाई जा रही है।बीजेपी पहले ही उनके इस्तीफे की मांग कर चुकी है। यहां तक कि बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का इस्तीफा मांगा है।
ऐसे समय में जब इस त्रासदी पर कांग्रेस को कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा, तब गहलोत ने अपनी असंवेदनशील टिप्पणियों से खुद के लिए और भी मुश्किल स्थिति पैदा कर दी है। वहीं उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट इस मौके पर अपनी पैर जमाने की कोशिश करते दिख रहे हैं। उनकी व्यावहारिक टिप्पणी और अपनी सरकार पर निशाना लगाने की वजह ने उन्हें मुख्यमंत्री की तुलना में जनता के प्रति अधिक संवेदनशील बना दिया है। इससे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के लिए और भी बड़ी मुसीबत हो सकती है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि अपने असंवेदनशील बयान के बाद वह राज्य में काफी अलोकप्रिय हो गए हैं।
सचिन पायलट के इस बेहद संतुलित बयान और अपनी सरकार पर सवाल खड़े करने के कारण गहलोत और उनके बीच की राजनीतिक लड़ाई और गहरा सकती है। इससे पहले भी गहलोत और पायलट के बीच कई टकराव हो चुके है। वर्ष 2018 के राजस्थान विधानसभा चुनावों के बाद कांग्रेस को सोनिया के ओल्ड गार्ड्स में से एक अशोक गहलोत पर अधिक भरोसा करना पड़ा और युवा नेता सचिन पायलट को मुख्यमंत्री पद से दरकिनार कर उपमुख्यमंत्री बनाया गया।
उसके बाद दोनों पक्षों में आपसी कलह बार-बार सामने आया है। पहले, लोकसभा चुनावों के दौरान राजस्थान में कांग्रेस की शर्मनाक हार और अब कोटा त्रासदी ने अशोक गहलोत को मुश्किल स्थिति में डाल दिया है। इस स्थिति में सचिन पायलट द्वारा गहलोत के विपरीत लिए गए रुख से यही सिद्ध होता है कि सचिन पायलट अपनी गुडविल बना कर राज्य की सीएम की कुर्सी पर पैनी नजर गड़ाए हुए, जो उन्हें विधानसभा चुनावों में जीत के बाद नहीं मिली थी। पायलट यह जानते है कि अशोक गहलोत अभी दलदल में फंसे हुए हैं, और इसलिए वे गहलोत पर अधिक दबाव डालने की कोशिश कर रहे हैं।