‘कांग्रेस नहीं, मुस्लिम लीग कांग्रेस’ Maharashtra में तुष्टीकरण कर रही Cong की पात्रा ने धज्जियां उड़ा दी

संबित पात्रा

PC: Janamtv.com

कांग्रेस एक बार फिर से विवादों के घेरे में हैं, जब महाराष्ट्र में उनके नेता अशोक चव्हाण ने यह दावा किया कि वे शिवसेना से गठबंधन को इसलिए राज़ी हुए क्योंकि उनके मुसलमान भाइयों ने आवाहन दिया था कि उनके ‘सबसे बड़े दुश्मन’ [भाजपा] को सत्ता से बाहर रखा जाये। इसके बाद भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता ने इसके जवाब में कांग्रेस की बखिया उधेड़ कर रख दी।

दरअसल, पार्टी की एक बैठक में अशोक चव्हाण ने कहा था , “राज्य में हमारी गठबंधन की सरकार है। कांग्रेस ने इसलिए सरकार में शामिल होने का निर्णय लिया जिससे राज्य ने पिछले पांच सालों में जो खोया, वो फिर से न हो। हमारे मुसलमान भाइयों ने भी हमें कहा कि हम सरकार का हिस्सा बनें, ताकि किसी भी स्थिति में भाजपा सत्ता से बाहर रहे”।

इतना ही नहीं, अशोक चव्हाण ने यह भी दावा किया कि शिवसेना ने 2014 में भी उनसे गठबंधन करने की बात कही थी पर तब कांग्रेस ने मना कर दिया था। इस बयान पर विवाद खड़ा हो गया, और शिवसेना ने इस बयान का खंडन किया। परंतु भाजपा ने कांग्रेस के दोहरे मापदंडों की पोल खोलने में तनिक भी देरी नहीं की।

भाजपा द्वारा आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉ॰ संबित पात्रा ने पहले अकबरुद्दीन ओवैसी को उनके भड़काऊ बयानों के लिए आड़े हाथों लिया, फिर कांग्रेस को। उन्होंने कांग्रेस को अशोक चव्हाण के बयान के लिए खरी खोटी सुनाते हुए कहा, “अभी दो दिन पहले अशोक चव्हाण ने कहा था ‘हमने महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ इसलिए गठबंधन किया था क्योंकि हमारे मुसलमान भाइयों ने कहा था। उनके अनुसार भाजपा उनका प्रमुख शत्रु है,  इसलिए हमें शिव सेना के साथ सरकार बनानी चाहिए, ताकि भाजपा सत्ता से बाहर रहे’। एक पूर्व मुख्यमंत्री इस तरह का चाटुकारिता से भरा बयान दे रहा है’।

क्या उनका मानना है कि कांग्रेस केवल मुसलमानों के कहने पर सरकार बनाती है? क्या उन्हें हिंदुओं और बाकी समुदायों की कोई परवाह नहीं है? इस मसले पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के अध्यक्ष शरद पवार को देश से माफी मांगनी चाहिए। अब से भाजपा कांग्रेस को ‘मुस्लिम लीग कांग्रेस’ कहेगी।’सच कहें तो कांग्रेस पार्टी को अपना नाम इंडियन नेशनल कांग्रेस से बदलकर मुस्लिम लीग कांग्रेस रख लेना चाहिए। वे केवल मुसलमानों के हित की बात करती है और उन्हें भड़काने का प्रयास करती है”

यही नहीं इस दौरान संबित पात्रा ने CAA और NRC पर कांग्रेस पर हमला करते हुए कहा, ‘हम कांग्रेस से पूछना चाहते हैं कि CAA की आड़ को लेकर हिंदू को गाली क्यों दी जा रही है।’ CAA के विरोध में शाहीन बाग में छोटे बच्चों के मन में जहर भरने का आरोप लगाते हुए कहा संबित पात्रा ने ये भी कहा कि ‘छोटे-छोटे बच्चों के मन मे कट्टरता का पाठ पढ़ाया जा रहा है, ये कैसा विरोध है’।

अपने भाषण में संबित पात्रा ने कांग्रेस को हर तरह से घेरा और मुस्लिम पार्टी लीग नाम रखने तक की बात कही परन्तु अब सवाल ये उठता है कि क्या वास्तव में कांग्रेस मुस्लिमों के हित के बारे में सोचती है, जैसा कि वो दावा करती है? क्या ये पार्टी वास्तव में मुस्लिम लीग कांग्रेस का टैग डिज़र्व करती है, जैसा कि संबित पात्रा ने कहा है? यदि गौर करें तो हाँ यह सत्य है कांग्रेस पार्टी के लिए ये टैग उचित होगा। परंतु अगर इस बात की तह में जायें , तो पता चलता है कि यह कांग्रेस जैसी सेक्यूलर पार्टी ही है, जो मुसलमानों के हित की बातें तो बहुत करती है, परंतु मुसलमानों के हित के लिए वास्तव में कुछ नहीं करती।

सीएए और एनआरसी के विरोध में जिस तरह से सेक्यूलर पार्टी मुसलमानों को भड़का रही है, जो किसी से छुपा नहीं है। शाहीन बाग के विरोध प्रदर्शन में जिस तरह से कांग्रेस, आम आदमी पार्टी  जैसे राजनीतिक दल प्रदर्शनकारियों को भड़का रहे हैं, वो भी सर्वविदित है। परंतु वास्तविकता की बात की जाये, तो कांग्रेस के लिए मुसलमान उतने ही मायने रखते हैं, जितना कि हिन्दू और बाकी समुदाय। सत्ता प्राप्त करने के बाद तो ये पार्टी मुसलमानों को पानी भी नहीं पूछती।

इस बात का एक प्रमाण लोक सभा चुनावों में भी दिखा, जहां सत्ता प्राप्ति के लिए कांग्रेस अपने ही मुस्लिम वोट बैंक को लात मारती दिखाई दी। हिन्दुओं को लुभाने के लिए हिंदुत्व का कार्ड तो खेल ही रही थी लेकिन दूसरी तरफ कांग्रेस नेता शकील अहमद को उनकी परंपरागत घरेलू सीट मधुबनी से टिकट न देकर उन्हें निर्दलीय चुनाव लड़ने के लिए विवश किया था। यही नहीं पिछले साल दिसम्बर माह में दिल्ली से कांग्रेस के चार पूर्व विधायक शोएब इक़बाल, मतीन अहमद, हसन अहमद और आसिफ़ मोहम्मद ख़ान ने पार्टी के हाई कमान राहुल गांधी से दिल्ली की कम से कम एक लोकसभा सीट पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारने की बात कही थी, जिसे राहुल गांधी ने ठुकरा दिया। कांग्रेस ने सातों सीटों से उम्मीदवारों की जो लिस्ट जारी की उनमें एक भी मुसलमान नहीं है। एक सिख हैं अरविंदर सिंह लवली, बाक़ी छह हिंदू उम्मीदवार हैं”।

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कांग्रेस मुसलमानों की कितनी हितैषी रही है, इस बात का प्रमाण आपको शाह बानो के केस से भी मिल सकता है। 1986 में जब सुप्रीम कोर्ट ने शाह बानो को तलाक के पश्चात उनका मेहनताना दिलाने में सहायता की, तो मौलवियों को खुश करने के लिए तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने उसी निर्णय को निष्क्रिय करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। यही नहीं चाहे साक्षरता दर हो, रोजगार हो या मुस्लिम समुदाय से जुड़े कुछ गंभीर मुद्दे कभी कांग्रेस पार्टी ने वोट के लिए उनका इस्तेमाल करने के बाद उनके विकास के लिए कदम नहीं उठाये। ऐसे में यदि स्वतन्त्रता के लगभग 73 वर्ष बाद भी मुसलमानों की हालत जस की तस है, तो उसके लिए कौन दोषी है?

संबित पात्रा ने निस्संदेह कांग्रेस पार्टी की कलई खोलने में कोई कसर नहीं छोड़ी है, लेकिन जिस तरह से कांग्रेस मुसलमानों का exploitation कर उन्हे ज़रूरत न पड़ने पर चाय में पड़ी मक्खी की भांति निकाल फेंकती है, उसे भी जनता के समक्ष उजागर किया है।

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