कल बालासाहेब ठाकरे के जन्मदिवस के अवसर पर उनके भतीजे राज ठाकरे ने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना का रंग रूप बदलते हुए उसे हिन्दुत्व केन्द्रित बनाया। राज ठाकरे ने एमएनएस के पुराने झंडे के स्थान पर अपने नए झंडे को न केवल भगवा रंग दिया, अपितु छत्रपति शिवाजी महाराज के चर्चित मुहर को भी पार्टी के प्रतीक के तौर पर अपनाया। परंतु जिस चीज़ ने सबसे ज़्यादा लोगों का ध्यान आकर्षित किया, वो था मंच पर स्वातंत्र्यवीर विनायक दामोदर ‘वीर’ सावरकर की उपस्थिति।
जिस तरह से राज ठाकरे द्वारा वीर सावरकर की फोटो को मंच पर सजाकर रखा गया था, उससे स्पष्ट हो गया कि महाराष्ट्र में हिन्दुत्व विचारधारा पर शिव सेना के एकाधिकार को चुनौती देने के लिए राज ठाकरे ने कमर पूरी तरह कस ली है। यह विचार उनके बयान से भी झलकता है, जहां उन्होने स्पष्ट कहा कि भगवा मेरे डीएनए में है।
राज ठाकरे के अनुसार, “यदि हिन्दुत्व पर कोई हमला होगा, तो मैं उसकी रक्षा में अपना सर्वस्व अर्पण कर दूँगा। हाँ, मैंने मोदी की आलोचना की है, पर जब वे सही थे, तो मैंने उनका समर्थन भी किया है”। यही नहीं, राज ठाकरे ने उद्धव को भी आड़े हाथों लेते हुए कहा, “मैं उन लोगों का पक्ष कभी नहीं लूँगा जो सत्ता में बने रहने के लिए अपने रंग बदल दे”।
हिंदुत्व के इन्हीं तीनों प्रतीकों को लेकर शिवसेना महाराष्ट्र में राजनीति करती रही है। शिवसेना का झंडा भगवा है और उस पर शेर का निशान है। शिवसेना ने शुरू से ही शिवाजी महाराज को अपने राजनीतिक आदर्श के तौर पर रखा है तो साथ में सावरकर के कट्टर हिंदुत्व को लेकर आगे बढ़ती रही है।
परंतु 2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों ने मानो शिवसेना का वास्तविक चेहरा उजागर कर दिया। शिव सेना ने भाजपा के साथ मिलकर विधानसभा का चुनाव लड़ा था, और उनके गठबंधन ने कुल मिलाकर 160 से ज़्यादा सीटों पर विजय प्राप्त की थी। परंतु सत्ता की लालसा में शिव सेना ने भाजपा के साथ विश्वासघात करते हुए काँग्रेस और एनसीपी के साथ गठबंधन सरकार बनाई।
शिवसेना ने गठबंधन क्या किया, मानो हिन्दुत्व की विचारधारा को बलि चढ़ाने पर ही उन्होने हस्ताक्षर कर दिया। सत्ता में बने रहने के लिए शिवसेना अपने उन्ही आदर्शों से विमुख हो गए, जिनके कारण शिवसेना पार्टी का अस्तित्व है। यह बात काँग्रेस भी भली भांति जानती है, और इसीलिए वे जानबूझकर शिवसेना को उकसाने के लिए उनके आराध्य, विनायक दामोदर सावरकर के विरुद्ध विष उगलती रहती है। शिवसेना सत्ता के लिए कितनी तत्पर थी, इस बात का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होने वर्षों से वीर सावरकर को भारत रत्न देने की मांग से भी मुंह मोड़ लिया था, ताकि उद्धव ठाकरे को सीएम बनाया जा सके।
पिछले ही वर्ष दिल्ली में एक रैली में राहुल गांधी ने हुंकार भरते हुए कहा था, “मैं राहुल गांधी हूँ, राहुल सावरकर नहीं जो माफी मांग लूँगा”। राहुल गांधी ने यह निशाना वीर सावरकर द्वारा दायर एमनेस्टी ऑर्डर के संबंध में किया था, जिसे आज भी काँग्रेस दया याचिका के नाम से प्रकाशित कर लोगों को भ्रमित करने में प्रयासरत है। परंतु बात वहीं पर नहीं रुकी। मध्य प्रदेश में काँग्रेस समर्थित काँग्रेस सेवा दल ने तो वीर सावरकर के बारे में एक आपत्तिजनक पत्रिका अपने सदस्यों में बंटवाते हुए यहाँ तक दावा किया कि वीर सावरकर और महात्मा गांधी को गोली मारने वाले नाथूराम गोडसे के बीच समलैंगिक संबंध थे।
परंतु शिव सेना ने विरोध के नाम पर जो किया, वो विरोध कम मज़ाक ज़्यादा लगता है। संजय राउत के तंज़ को छोड़ दें तो उद्धव ठाकरे समेत शिवसेना के किसी भी बड़े नेता ने वीर सावरकर के अपमान पर गठबंधन तोड़ना तो बहुत दूर की बात, उसका पुरजोर विरोध भी नहीं किया। परंतु महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के पुनरुत्थान हेतु जिस तरह से राज ठाकरे ने वीर सावरकर को सम्मान दिया है, उससे स्पष्ट होता है कि वे हिन्दुत्व पर उद्धव ठाकरे के विश्वासघाती कदमों का हिसाब अवश्य लेना चाहते हैं। जिस तरह से बालासाहेब ठाकरे के हिन्दुत्व विचारधारा को उद्धव ठाकरे की सत्ता लालसा ने नुकसान पहुंचाया है, उसकी क्षतिपूर्ति करने में राज ठाकरे कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।