विपक्षी पार्टियों की एकता तो देखिये, कांग्रेस के साथ भी कांग्रेस के खिलाफ भी, बैठक में दिखाई पीठ

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PC: Livemint

कांग्रेस पार्टी की मुसीबतें तो मानो कम होने का नाम ही नहीं ले रही हैं। सोनिया गांधी के नेतृत्व में की जा रही सीएए विरोधी बैठक के जरिये पार्टी विपक्षी एकता को ज़ोर-शोर से प्रदर्शित करना चाहती थी। परंतु, विपक्षी एकता की धज्जियां उड़ाते हुए तृणमूल काँग्रेस, आम आदमी पार्टी, शिवसेना, बहुजन समाज पार्टी, यहाँ तक कि द्रविड़ मुन्नेत्र कज़्हगम यानि डीएमके ने भी इस मीट में हिस्सा लेने से मना कर दिया। एनसीपी को छोड़कर केवल आईयूएमएल, सीपीआई, आरजेडी, एआईयूडीएफ़, जैसी मामूली पार्टियां ही इस बैठक का हिस्सा बनी। 

सोनिया गांधी की अध्यक्षता में की गयी इस बैठक में एनसीपी के नेता शरद पवार, वामपंथी नेता सीताराम येचूरी, डी राजा के अलावा कांग्रेस से राहुल गांधी, गुलाम नबी आज़ाद, अहमद पटेल और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जैसे लोग उपस्थित थे। हैरानी तो तब हुई जब अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी ने भी इस बैठक से दूरी बना ली।  ऐसा लगता है कांग्रेस और सपा की दोस्ती में अब दरार और गहरी हो गयी है शायद इसकी वजह यूपी में प्रियंका गाँधी वाड्रा का बढ़ता राजनीतिक ड्रामा है।

यूं तो मायावती सीएए और एनआरसी की धुर विरोधी हैं, परंतु वे कांग्रेस पर इसलिए नाराज़ हैं क्योंकि ये पार्टी बसपा के विधायकों को अपनी पार्टी में ले रही है। राजस्थान में बसपा ही थी जिसने कांग्रेस को सरकार के लिए आवश्यक समर्थन दिया था। ट्वीट करते हुए मायावती ने कहा, जैसा कि विदित है कि राजस्थान कांग्रेसी सरकार को बीएसपी का बाहर से समर्थन दिये जाने पर भी, इन्होंने दूसरी बार वहाँ बीएसपी के विधायकों को तोड़कर उन्हें अपनी पार्टी में शामिल करा लिया है जो पूर्णतयाः विश्वासघाती है”। 

इसके अलावा मायावती ने ये भी कहा कि, ऐसे में कांग्रेस के नेतृत्व में आज विपक्ष की बुलाई गई बैठक में बीएसपी का शामिल होना, यह राजस्थान में पार्टी के लोगों का मनोबल गिराने वाला होगा। इसलिए बीएसपी इनकी इस बैठक में शामिल नहीं होगी। वैसे भी बीएसपी CAA/NRC आदि के विरोध में है। केन्द्र सरकार से पुनः अपील है कि वह इस विभाजनकारी व असंवैधानिक कानून को वापिस ले। साथ ही, JNU व अन्य शिक्षण संस्थानों में भी छात्रों का राजनीतिकरण करना यह अति-दुर्भाग्यपूर्ण है” – 

सीएए के विरुद्ध ममता बनर्जी सबसे मुखर विरोधी के रूप में सामने आई है। सीएए के विरोध के नाम पर सबसे ज़्यादा उत्पात तो उनके ही राज्य में मचाया गया है। ऐसे में ये अटपटा तो अवश्य लगेगा कि आखिर ममता बनर्जी ने इस मीट में हिस्सा क्यों नहीं लिया। परंतु ममता ने इसके पीछे काँग्रेस द्वारा प्रायोजित भारत बंद को प्रमुख कारण बताया। उन्होने कहा, “राज्य में जो हुआ, उसके बाद अब मैं यह बैठक नहीं अटेण्ड कर सकती हूँ। मैंने सीएए और एनआरसी के विरुद्ध सबसे पहले आंदोलन लॉंच किया, पर जो काँग्रेस और वामपंथी कर रहे हैं, वो विरोध नहीं अराजकता है”।  

इस बार भी आम आदमी पार्टी ने विक्टिम कार्ड खेलते हुए कहा कि उन्हें तो इस मीट के लिए आमंत्रित ही नहीं किया गया। आम आदमी पार्टी के संजय सिंह ने कहा, “हमें इस मीटिंग के बारे में कोई जानकारी नहीं है। तो ऐसे में कोई तुक नहीं बनता कि हम ऐसी मीटिंग अटेण्ड करे, जिसके बारे में कोई जानकारी नहीं हो”। सही भी है, आखिर दिल्ली में सत्ता जो बचानी है। 

शिवसेना का पल्टू स्वभाव यहाँ भी जारी रहा , और केजरीवाल के ऑड ईवन स्कीम की भांति शिवसेना ने इस मीटिंग में हिस्सा लेने से मना कर दिया। पर हद तो तब हो गयी जब डीएमके ने भी इस मीटिंग में हिस्सा लेने से मना कर दिया। दरअसल, काँग्रेस के राज्य अध्यक्ष ने डीएमके को गठबंधन धर्म नहीं निभाने के लिए खूब खरी खोटी सुनाई थी, जिससे चिढ़कर डीएमके ने मीटिंग में हिस्सा लेने से मना कर दिया। 

ये तो बिलकुल वैसा ही हुआ, जैसे लोकसभा चुनाव से पहले काँग्रेस के साथ हुआ था। राहुल गांधी को पीएम के तौर पर दिखाने पर आतुर काँग्रेस सरकार पीएम मोदी के विरुद्ध विपक्षी एकता दिखाना चाहती थी, पर मायावती और ममता बनर्जी के कुछ और ही प्लान थे। 

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