शिवसेना का मुखपत्र ‘सामना’ अब शिवसेना विरोधी बन चुका है, संजय राउत तगड़ी चालाकी दिखा रहा है

सामना

संजय राउत, जिन्हें महाराष्ट्र में कांग्रेस-भाजपा और शिवसेना के गठबंधन का सूत्रधार माना जा रहा था, वे तभी से ही अपनी पार्टी शिवसेना से चिढ़े हुए हैं, जब से उन्हें यह पता चला है कि उनके भाई सुनील राउत को कैबिनेट में कोई जगह नहीं दी गयी है। उसी के बाद से वे समय-समय पर अपनी ही पार्टी के खिलाफ बोलते आए हैं। संजय राउत पार्टी के नेता होने के साथ-साथ पार्टी के मुखपत्र सामना के एडिटर ही चीफ भी हैं। कुछ दिनों से सामना भी शिवसेना की आलोचना करने वाले कुछ लेख छाप रहा है। ऐसे में सवाल यह है कि क्या अब संजय राउत अपनी ही पार्टी में फूट डालने के लिए अब सामना के एडिटर इन चीफ के पद का दुरुपयोग कर रहे हैं?

अभी कुछ दिनों पहले ही सामना ने एक लेख लिखा था जिसमें लिखा था कि शिवसेना हाल ही में जुड़े सदस्यों को ज़्यादा तरजीह दे रही है, जबकि पुराने सदस्यों को नकारा जा रहा है। इस बात की पूरी उम्मीद है कि शिवसेना पर खीज निकालने वाला यह लेख संजय राउत के इशारों पर ही लिखा गया होगा। ऐसा हो भी क्यों ना, संजय राउत पार्टी से नाराज़ जो चल रहे हैं।

दरअसल, संजय के भाई सुनील राउत का मंत्री बनना लगभग तय माना जा रहा था, लेकिन जब शिवसेना के कोटे के मंत्रियों की अंतिम लिस्ट आई तो उनका नाम गायब था। हालांकि, शिवसेना के नेता किसी भी तरह के तनाव से इनकार कर रहे हैं, परंतु स्थिति सामान्य तो कहीं से भी नहीं लगती। संजय राउत चाहते थे कि उद्धव ठाकरे को सत्ता दिलाने के बदले उन्हें भी सरकार में भागीदारी मिले। परंतु जिस तरह से उद्धव ठाकरे ने उन्हें दरकिनार किया है, उसकी टीस कहीं न कहीं अब संजय राउत के मन में अभी भी विद्यमान है। यही कारण है कि अब वे सामना के जरिये अपनी ही पार्टी में फूट डालने की कोशिश कर रहे हैं।

एक लेख में सामना ने यह स्वीकार किया था कि कैबिनेट में पदों को लेकर गठबंधन में तनाव पैदा हो रहा है। लेख में लिखा था “कैबिनेट में पदों का बंटवारा देरी से हुआ, लेकिन हुआ। जिन लोगों को सूची में जगह नहीं मिली, वे निराश जरूर हुए लेकिन ऐसे लोगों की लिस्ट बहुत लंबी थी जो कैबिनेट में जगह पाना चाहते थे”। देखा जा सकता है कि कैसे इस लेख में संजय राउत के दर्द को बयां किया गया है।

लेकिन जब मीडिया में यह खबर चली कि संजय राउत पार्टी से नाराज़ चल रहे हैं और उनके भाई को कैबिनेट पद ना मिलने की वजह से यह नाराजगी है, तो उन्होंने साफ किया कि वे और उनके भाई तो संगठन के लिए काम करते हैं, निजी हितों के लिए नहीं।

सरकार में कोई हिस्सेदारी ना मिलने से संजय राउत की हालत वही हो गयी थी, जहां न माया मिली न राम। उन्होंने सत्ता की लालसा में भाजपा और महाराष्ट्र से न केवल विश्वासघात किया, अपितु कभी जिस कांग्रेस और एनसीपी को वे जी भर कर कोस रहे थे, उसी के साथ उन्होंने उद्धव ठाकरे को गठबंधन के लिए राजी करवाया। हालांकि, इतनी मशक्कत करने के बाद भी वे अपने भाई के लिए एक पद तक संरक्षित नहीं करवा पाये। यही कारण है कि अब उनकी कुंठा सामने के लेखों के जरिये निकल कर बाहर आ रही है।

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