जेएनयू में 3 जनवरी को हुई हिंसा और सर्वर रूम में तोड़-फोड़ की परते धीरे-धीरे खुल रही है। यूनिवर्सिटी के सर्वर रूम को नुकसान पहुंचाने पर वीसी जगदीश कुमार ने स्पष्ट कहा है कि सर्वर रूम पर हमला सुनियोजित तरीके से किया गया। छात्रों ने जानबूझ कर यह तोड़-फोड़ की ताकि सीसीटीवी फुटेज को बर्बाद किया जा सके। उन्होंने बताया कि सिस्टम को रिस्टोर करने में हमें 3 दिन लगे।
बुधवार को इंडिया टुडे ग्रुप के न्यूज डायरेक्टर राहुल कंवल के साथ बातचीत में वाइस चांसलर ने कहा कि चीफ प्रॉक्टर और दिल्ली पुलिस पूरे मामले की जांच कर रही है। उन्होंने बताया की, “हमारे सभी ऑपरेशन इन सर्वर पर ही आधारित हैं। चाहे वो डिग्री हो, रजिस्ट्रेशन हो या कोई भी सहायता। डेटा सेंटर पर हमले से जेएनयू यूनिवर्सिटी का कामकाज पूरी तरह से ठप हो गया था। उन्होंने बताया कि मास्क में छात्रों के एक समूह ने 3 जनवरी को डेटा सेंटर के कार्यालय में जबरन प्रवेश किया। उन्होंने बिजली काट दी जिससे छात्रों का ऑनलाइन पंजीकरण ना हो पाये।”
दिलचस्प बात यह है कि उन्होंने 3 जनवरी और 5 जनवरी को हुई हिंसा के बीच लिंक की बात कही है। उन्होंने इंडिया टुडे से कहा, “5 और 3 तारीख को जो हुआ, इसके बीच कुछ तो कनेक्शन है।” आगे उन्होंने कहा कि हो सकता है कि डेटा सेंटर पर हमले में शामिल छात्रों ने जानबूझकर इसे नुकसान पहुंचाया है।
कुलपति ने स्पष्ट कहा कि, “5 तारीख को जो भी हिंसा हुई उस दौरान हमारा डेटा सेंटर बंद पड़ा था, और हमारे कई सीसीटीवी कैमरे हिंसा को रिकॉर्ड नहीं कर पाये।”
उन्होंने आगे कहा कि नकाबपोश लोग यूनिवर्सिटी के छात्र ही थे। हम हमलावरों पर कोई धारणा नहीं बनाना चाहते हैं। फिलहाल दिल्ली पुलिस और जेएनयू की एक कमेटी मामले की जांच कर रही है।
जगदीश कुमार ने जो भी कहा है वह बहुत प्रशंसनीय है और रविवार को जेएनयू हिंसा से पहले की परिस्थितियों के अनुरूप पूरी तरह से फिट बैठता है। 3 जनवरी को जो हुआ वह सभी को पता है, यहां तक कि वामपंथी मीडिया चैनलों ने भी 3 जनवरी की घटना को ज्यादा महत्व नहीं दिया। 3 जनवरी को डेटा सेंटर पर हमला और 5 जनवरी को हमले के दौरान क्षतिग्रस्त सीसीटीवी संयोग नहीं हो सकता ये स्पष्ट तौर पर सुनयोजित घटना की ओर इशारा करता है।
उन्होंने बताया कि रविवार को वो भी कैंपस में थे, उन्होंने देखा कि तकरीबन 100-120 की संख्या में छात्र आये थे, ऐसे में सिक्योरिटी गार्ड ने उन्हें रोकने की बहुत कोशिश की। उस दिन कम से कम 20 सिक्योरिटी गार्ड को पीटा गया। हम हालात को संभालने की कोशिश कर रहे थे।
जेएनयू हिंसा के दौरान पुलिस के समय से न पहुंचने पर कुलपति ने बताया कि पुलिस को कैंपस में बुलाने में समय लगता है। पहले लिखित इजाजत रजिस्ट्रार को जाती है फिर उसे आगे भेजा जाता है। इसी पूरी प्रक्रिया में पुलिस को बुलाने में देर हुई थी। 5 जनवरी को हुई हिंसा में जब पुलिस आई तब स्थितियां संभल सकी।
उन्होंने कहा कि ‘मैं एक चीज स्पष्ट करना चाहता हूं कि कैंपस में पुलिस को बुलाने की एक पूरी प्रक्रिया है। जेएनयू के अपने सुरक्षाकर्मी भी हैं लेकिन लॉ एंड ऑर्डर हालात बिगड़ने पर ही पुलिस को बुलाया जाता है। इस घटना में भी पहले सिक्योरिटी गार्ड को भेजा कि वो स्थिति को संभाले’।
वास्तव में, यह शुरू से ही स्पष्ट था कि वामपंथियों ने रविवार को जेएनयू में हिंसा किया था। अब जेएनयू के कुलपति ने अब जो खुलासा किया है, उसके साथ यह साबित होता है है कि लगातार हुए हिंसा में स्पष्ट लिंक है। यह वास्तव में जेएनयू के अंदर वामपंथी लॉबी थी, जिसने रविवार हिंसा किया जिसके दौरान नकाबपोश उपद्रवियों के एक समूह ने केंद्रीय विश्वविद्यालय में दंगा किया था।