‘इंदिरा जयसिंह ने इस तरह का सुझाव देने की हिम्मत भी कैसे की’,निर्भया की माँ

निर्भया

जहां एक ओर पूरा देश निर्भया के न्याय के लिए प्रतीक्षारत हैं, तो वहीं वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने नैतिकता की सभी सीमाएं लांघते हुए निर्भया की माँ को अभियुक्तों को माफ करने की सलाह दी। जयसिंह ने ट्वीट किया, “मैं आशा देवी के दर्द को समझ सकती हूँ, और मैं चाहती हूँ कि वे सोनिया गांधी के उदाहरण से कुछ सीखें, जिन्होनें नलिनी को माफ कर दिया था। हम मृत्युदंड के खिलाफ हैं”।

इंदिरा जयसिंह के ओछे बयान से पूरे देश में आक्रोश उमड़ आया था, और निर्भया के माता पिता ने भी उन्हें आड़े हाथों लिया। निर्भया की माँ आशा देवी ने कहा, “इंदिरा जयसिंह ने इस तरह का सुझाव देने की हिम्मत भी कैसे की। सुप्रीम कोर्ट में पिछले कई वर्षों में उनसे कई बार मिली हूं, पर एक बार भी उन्होंने मेरी भलाई के बारे में नहीं पूछा और आज वे दोषियों की पैरवी कर रही हैं। ऐसे लोग दुष्कर्मियों का समर्थन कर अपनी आजीविका चलाती है, इसीलिए रेप रुकते नहीं है। इनके जैसे लोगों के कारण ही दुष्कर्म की पीड़िताओं को न्याय नहीं मिल पाता है”।

इसके बाद निर्भया के पिता बद्रीनाथ सिंह ने भी इंदिरा जयसिंह को आड़े हाथों लेते हुए  कहा, “इंदिरा जयसिंह जैसे लोग ही दुष्कर्म के बढ़ते अपराधों के पीछे का प्रमुख कारण है। मैं आश्चर्यचकित हूँ कि वो कैसे एक औरत की पीड़ा पर इतना संवेदहीन हो सकती हैं”।

इससे शर्मनाक और क्या हो सकता है कि मानव अधिकार के नाम पर कुछ अधिवक्ता और बुद्धिजीवी निर्भया के दुष्कर्म जैसे जघन्य अपराधों के दोषी लोगों की फांसी माफ करने की मांग भी कर सकते हैं। निर्भया की माँ इस केस में न्याय के लिए 7 वर्षों से प्रतीक्षा कर रही हैं, पर अभी भी उन्हें न्याय से वंचित रखने में बुद्धिजीवियों का एक वर्ग कोई कसर नहीं छोड़ रहा है। अब यह लोग उन्हें अपनी बेटी के साथ बर्बरता करने वाले अपराधियों के लिए मृत्यु दंड की मांग करने के लिए शर्मिंदा महसूस करा रहे हैं।

निर्भया के साथ जो हुआ, उसने पूरे देश की आत्मा को झकझोर कर रख दिया था। आज भी अगर उस घटना का स्मरण मात्र से ही कई लोग सिहर उठते हैं। अब कल्पना कीजिये की निर्भया के माँ बाप पर क्या बीती होगी। आज भी उन्हें उस खौफनाक घटना की यादों के साथ जीना पड़ता है। ऐसे में निर्भया के हत्यारों को बचाने की मांग करना उनके माता पिता के लिए किसी अत्याचार से कम तो बिलकुल नहीं होगा।

मृत्युदंड को हटाना एक आदर्शवादी विचार है, पर यथार्थ में इसे लागू करना लगभग असंभव है, विशेषकर जब इस दंड को लागू करने के लिए सात वर्ष से भी ज़्यादा लग जाये। जब निर्भया जैसे केस को सात साल लग गए, तो सोचिए बाकी मामलों का क्या हाल होता होगा। हम एक ऐसे समाज में जी रहे हैं जहां न्याय मिलने में वर्षों लग जाते हैं और इंदिरा जयसिंह जैसे अपरिपक्व आदर्शवाद इस स्थिति को केवल बद से बदतर बनाएगा।

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