महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के पुनरुत्थान के साथ साथ राज ठाकरे ने शिव सेना द्वारा हिन्दुत्व पर एकाधिकार के विचारधारा को चुनौती दी है। इसके प्रमाण के तौर राज ठाकरे ने एनआरसी पर अपना पक्ष रखते हुए कहा कि ‘पाकिस्तान और बांग्लादेश से घुसपैठियों को बाहर फेंक देना चाहिए’। अब सामना के संपादकीय विभाग में प्रकाशित एक लेख में स्पष्ट पता चलता है कि उन्हें राज ठाकरे का वर्तमान बयान कितना चुभा है।
राज ठाकरे के हिन्दुत्व पर बदले तेवर से तिलमिलाई शिवसेना का दर्द उकेरते हुए सामना में लिखा गया, “मराठी विचारधारा को जीवंत रखने के लिए राज ठाकरे ने एक पार्टी का निर्माण किया था, पर अब वे हिन्दुत्व की ओर मुड़ गये हैं। इस बात की बहुत कम आशा है कि उन्हे अब भी कुछ हाथ लगेगा। जब Raj Thackeray ने अपने भाषण में बोला था मेरे हिन्दू भाइयों और बहनों, वो भाजपा की मांग पर उन्होने कहा था। एमएनएस को तब भी कुछ नहीं मिला था और अब भी कुछ नहीं मिलेगा”।
अब बता दें कि 23 जनवरी को एमएनएस के महा अधिवेशन में राज ठाकरे ने उद्धव की तरह ही अपने पुत्र अमित ठाकरे को पार्टी में भर्ती कराया। उन्होने पार्टी के ध्वज का रंग बदलते हुए उसे पूर्णतया भगवा करा दिया। मंच पर उन्होने डॉ॰ अंबेडकर, सावित्रीबाई फूले, प्रभोधंकर ठाकरे की तस्वीरों के साथ हिन्दुत्व के प्रखर समर्थक और स्वतन्त्रता सेनानी वीर सावरकर की तस्वीर को भी उचित मान और सम्मान दिया। इसके साथ साथ ही छत्रपति शिवाजी महाराज की एक प्रभावशाली मूर्ति भी मंच पर विद्यमान थी।
2006 में राज ठाकरे ने जब महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना की स्थापना की थी, तो उनका मुख्य उद्देश्य था मराठी मानुष की विचारधारा पर शिवसेना से ज़्यादा उग्र नीति रखना। परंतु जिस तरह से उद्धव ठाकरे ने अपने मूल आदर्शों के साथ समझौता करते हुए एनसीपी और काँग्रेस के साथ गठबंधन सरकार बनाई, Raj Thackeray अब शिवसेना के हिन्दुत्व विचारधारा पर एकाधिकार को तोड़ने के लिए आगे आए हैं।
अपने दिवंगत चाचा एवं शिवसेना के संस्थापक बालासाहेब ठाकरे से राजनीति की दीक्षा लेने वाले राज समझ गए थे कि हिन्दुत्व और मराठी मानुष विचारधारा के लिए अब कोई प्रबल दावेदार नहीं है, और राज ठाकरे से बेहतर इस विरासत को कौन संभालता?
2014 के चुनावों में राज ठाकरे ने पीएम मोदी को समर्थन दिया था। परंतु 2019 के चुनाव आते आते वे उनकी आलोचना करने लगे। परंतु हिन्दुत्व जैसे मूल मुद्दों पर उन्होने कभी भी पीएम मोदी या भाजपा का विरोध नहीं किया। अपने सम्पूर्ण राजनीतिक करियर में Raj Thackeray ने चुनाव हिन्दुत्व के बलबूते लड़े और अपनी विचारधारा से कोई समझौता नहीं किया।
सच कहें तो व्यक्तित्व, राजनीतिक वक्तव्य, और अन्य राजनीतिक दृष्टिकोण से वे बाल ठाकरे के वास्तविक उत्तराधिकारी थे। वे उन्ही के शैली में भाषण देते हैं, उन्ही के शैली में नारे लगाते हैं, और तो और, उनमें जनता को आकर्षित करने की क्षमता भी है।
उधर उद्धव ठाकरे में ऐसी कोई भी खूबी नहीं है, जिसके कारण उन्हे एक लोकप्रिय नेता समझा जा सके। इसीलिए वे पवार परिवार के निजी नौकर की तरह पेश आते हैं, और सबसे ज़्यादा सीटें गठबंधन में होने के बावजूद उद्धव का व्यवहार काफी शर्मनाक है। वे केवल नाम के सीएम है, असली सत्ता तो उनके साथी दलों के पास है। इस बात का अंदेशा इसी बात से हो सकता है कि मंत्रिमंडल में सभी अहम पद एनसीपी के पास गए।
यदि वे सूझबूझ से चले, तो राज ठाकरे की पार्टी शिवसेना को पीछे छोड़ सकती है, क्योंकि दोनों का वोटर बेस एक ही है। वहीं भाजपा को महाराष्ट्र में एक ऐसा साथी मिल सकता है, जो वैचारिक रूप से समान विचार रखता है। यदि दोनों पार्टी ने हाथ मिला लिया, तो शिवसेना आने वाले दिनों में हाशिये पर पहुँच जाएगी।