जब पीएम मोदी ने दो साल पहले ‘खेलो इंडिया स्कूल गेम्स’ की शुरुआत की थी, तो इस कदम को बड़े पैमाने पर भारतीय युवाओं को एथलेटिक्स और खेलों के प्रति प्रोत्साहित करने के एक ऐतिहासिक प्रयास के रूप में देखा गया था। यह युवाओं के बीच प्रतिस्पर्धा खेलों को बढ़ावा देने की कोशिश के रूप में उभरा।
अब इसके दो साल के अंदर-अंदर इस योजना का असर देश की स्पोर्ट्स इंडस्ट्री पर दिखना शुरू भी हो गया है। स्पोर्ट्स इंडस्ट्री के लिए यह किसी वरदान से कम साबित नहीं हुआ है।
भारत हमेशा से स्पोर्ट्स इंडस्ट्री के लिए एक शानदार बाजार रहा है। भारत में इंडियन फुटबॉल लीग, इंडियन प्रीमियर लीग और प्रीमियर बैडमिंटन लीग जैसे टूर्नामेंट्स होते आए हैं जिनमें बड़ी मात्रा में पैसे का इस्तेमाल होता है। इसकी वजह से इन खेलों का देश की स्पोर्ट्स इकॉनमी में बड़ा योगदान हो जाता है।
अब खेलो इंडिया की सफलता ने देश में स्पोर्ट्स इकॉनमी को काफी हद तक फायदा पहुंचाने का काम किया है। इंडस्ट्री को जो यह बूस्ट मिला है, वह देश की स्पोर्ट्स इकॉनमी के विकास के लिए बहुत जरूरी था।
बता दें कि राष्ट्रीय स्तर पर खेलो इंडिया के तहत हर साल लगभग एक हज़ार बच्चों को 8 सालों के लिए 5 लाख रुपए दिये जाते हैं। इसके माध्यम से भारत में सरकार युवा टैलेंट को उभारने की कोशिश कर रही है। इसकी वजह से देश में लगातार स्पोर्ट्स से जुड़े सामानों, उपकरणों और सुविधाओं की मांग बढ़ रही है, जिसके कारण देश की स्पोर्ट्स इकॉनमी को बड़ा फायदा पहुंचा है।
गौरतलब है कि सरकार ने विभिन्न खेल अकादमियों के लिए 156.83 करोड़ रुपये के फंड को रिलीज़ किया है, जो सीधे तौर पर भारत में खेल अर्थव्यवस्था को फायदा पहुंचाएगा। और अच्छी बात यह है कि राष्ट्रीय स्तर पर इसका असर दिखना भी शुरू हो गया है।
उदाहरण के लिए, भारत की ‘स्पोर्ट सिटी’ जालंधर का उदाहरण ही ले लीजिये। पिछले साल, पंजाब के इस शहर ने खेल के सामानों के प्रॉडक्शन में 25 प्रतिशत की वृद्धि देखी। इससे एक साल पहले तक यह वृद्धि दर सिर्फ 10 प्रतिशत ही था। यानि आप समझ सकते हैं कि खेलो इंडिया से स्पोर्ट्स इंडस्ट्री को किस हद तक बूस्ट मिला है।
स्पोर्ट्स गुड्स मैन्युफैक्चरिंग एंड एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन (SGMEA) के चेयरमैन अजय महाजन ने इस वृद्धि का श्रेय ‘खेलो इंडिया’ की पहल को दिया है। उन्होंने कहा, “कार्बन फाइबर रैकेट, कार्बन फाइबर हॉकी स्टिक, क्रिकेट सुरक्षा उपकरण और मुक्केबाजी उपकरण के निर्माण विकास दर में बहुत सुधार हुआ है। स्कूलों में खेलों के प्रति बढ़ते रुझान और खेलो इंडिया की वजह से स्पोर्ट्स इंडस्ट्री को बड़ा फायदा हुआ है”।
जालंधर स्थित ‘सॉकर इंटरनेशनल प्राइवेट लिमिटेड’ के प्रबंध निदेशक विकास गुप्ता ने कहा, “स्टेडियम जैसे खेलों के बुनियादी ढांचे में बड़ा निवेश हो रहा है। इसके साथ ही स्कूल बड़े खरीदार बन गए हैं, क्योंकि अब बच्चों को खेलों में भाग लेना है। इन सब के कारण कारोबार में 5-10% की बढ़ोतरी हुई है।” यह स्पष्ट है कि खेल में स्कूल जाने वाले बच्चों की बढ़ती भागीदारी जालंधर की खेल अर्थव्यवस्था में अचानक और अविश्वसनीय वृद्धि का सबसे बड़ा कारण है। यहीं पर खेलो इंडिया की सफलता की पहली तस्वीर सामने आई।
जालंधर ही नहीं, यहाँ तक कि भारत में sports equipment production के अन्य बड़े केन्द्रों में से एक मेरठ में भी उद्योगपति खेलो इंडिया पहल से काफी हद तक लाभान्वित हुए हैं। यह माना जाता है कि मेरठ और जालंधर मिलकर कुल sports equipment production का 75 से 80 प्रतिशत तक उत्पादन करते हैं।
नेल्को स्पोर्ट के निदेशक अम्बर आनंद के अनुसार, पिछले कुछ वर्षों में मेरठ ने बड़े ब्राण्ड्स का उदय देखा है। ये ब्रांड एथलेटिक्स और ट्रैक एंड फील्ड गियर, टेबल टेनिस और आला फिटनेस उपकरण जैसे कई खेलों वैश्विक स्तर पर प्रभाव बढ़ा रहे हैं।
खेल उद्योग की वृद्धि में हालिया तेजी की एक विशेष बात यह भी है कि अब स्पोर्ट्स इंडस्ट्री सिर्फ क्रिकेट तक ही सीमित नहीं रह गयी है। मेरठ में इस कारण स्पोर्ट्स इकॉनमी को सबसे बड़ा बूस्ट मिला है।
उत्तर प्रदेश में स्पोर्ट्स मैन्युफैक्चरिंग हब पारंपरिक रूप से उच्च गुणवत्ता वाले क्रिकेट गियर के उत्पादन के लिए ही जाना जाता है। लेकिन यह जानना दिलचस्प है कि वर्ष 2018 में एशियाई खेलों के दौरान मेरठ ने स्वप्न बर्मन (हेप्टाथलॉन), तजिंदरपाल सिंह तोर (शॉट पुट) और नीरज चोपड़ा (भाला फेंक) जैसे बड़े खिलाड़ियों को भी अपने गोल्ड मेडल जीतने के लिए शॉट पुट और भाला की सप्लाई की थी।
ऑल इंडिया स्पोर्ट्स गुड्स मैन्युफैक्चरर्स फेडरेशन के अध्यक्ष पुनीत मोहन शर्मा ने भी मेरठ में क्रिकेट के सामानों के निर्माण पर जोर दिया पर साथ ही कहा, “एथलीट ट्रेनिंग के लिए जिम उपकरण और weights निर्माण से जुड़ी कंपनियाँ भी अब मेरठ में विकास कर रही हैं जो कि वैश्विक स्तर पर अपनी छाप छोड़ने में सक्षम है। इससे स्पोर्ट्स बाज़ार का दायरा बढ़ता जा रहा है। आखिरकार, क्रिकेट तो केवल 125 देशों तक ही सीमित है। ”
एडवाइज़री फर्म ‘देजान शिरा एंड एसोसिएट्स’ (Dezan Shira & Associates) की एक जून 2018 की इंडिया ब्रीफिंग रिपोर्ट ने खुलासा किया था कि स्पोर्ट्स इंडस्ट्री क्रिकेट के खेल से परे भी कई तरह के खेलों की ओर बढ़ रही है। इसका सीधा सकारात्मक असर खलों में लोगों की भागीदारी, दर्शकों पर भी पड़ रहा है।
खुद पीएम मोदी भी पहले कह चुके हैं कि इस योजना का मकसद दुनियाभर में केवल भारत को पदक दिलाने तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि इसका मकसद देश में स्पोर्ट्स इकॉनमी को विकसित करने पर भी है। इस क्षेत्र में भी लाखों लोगों को रोजगार मिलता है। साफ है कि देश की स्पोर्ट्स इकॉनमी को उबारने के लिए जो कदम भारत सरकार ने आज से दो साल पहले उठाया था, उसके असर अब दिखाना शुरू हो गए हैं।