अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने जाने-अनजाने आतंकवाद पर कांग्रेस के सुस्त रवैये को expose कर दिया

जब ट्रम्प ने कहा “नई दिल्ली में भी ईरान ने हमला कराया था”

ट्रम्प

अमेरिका ने 2020 के प्रारम्भ में ही ईरान के सबसे शक्तिशाली सैन्य कमांडरों में से एक मेजर जनरल कासिम सुलेमानी को मार गिराया। परंतु इनका असर केवल ईरान में ही नहीं, बल्कि मीलों दूर नई दिल्ली में भी महसूस किया जा सकता है। डोनाल्ड ट्रम्प ने जब अपने बयान में ईरान द्वारा नई दिल्ली पर हमले का ज़िक्र किया, तो उन्होने जाने अंजाने ही आतंकवाद पर पूर्ववर्ती काँग्रेस सरकार की निष्क्रियता की भी पोल खोल दी।

दरअसल कासिम सुलेमानी ईरान के इस्लामिक रेवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स या कूड्स में मेजर जनरल थे, जिन्हें हाल ही में इराक़ की राजधानी बगदाद में अमेरिका द्वारा शुक्रवार को की गयी एयरस्ट्राइक में मार गिराया गया। इस हमले के बाद की गयी एक प्रेस वार्ता में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने बताया कि कैसे सुलेमानी विश्व शांति के लिए खतरे के समान थे। डोनाल्ड ट्रम्प के अनुसार, “मेजर जनरल सुलेमानी ने उन्माद में बेकसूर लोगों की बलि चढ़ाई, और लंदन से लेकर नई दिल्ली तक कई आतंकवादी हमलों में उनका भी हाथ दिखाई दिया था”।

हालांकि ट्रम्प ने दिल्ली वाले हमले के बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं दी, परंतु जिस हमले की वे बात कर रहे थे, उसका इशारा स्पष्ट रूप से 2012 के उस आतंकी हमले की ओर जा रहा था, जब इजरायली सुरक्षा attache की पत्नी की गाड़ी को बम से उड़ाया गया था। इसके जैसा एक अन्य हमला उसी वर्ष जॉर्जिया में भी हुआ था, और इसके लिए इज़राइल ने ईरान के रेवोल्यूशनरी गार्ड्स पर हमला करवाने का आरोप लगाया था। कहा जाता है कि ईरान के कई परमाणु वैज्ञानिकों के मारे जाने के पीछे इज़राएल का हाथ था, जिसके प्रत्युत्तर में इज़राएल के राजनयिकों एवं नागरिकों पर दुनिया भर में आतंकी हमले किए गए।

दिल्ली पुलिस को भी आभास हुआ था कि इज़राएली राजनयिक पर हमले के पीछे ईरान का हाथ हो सकता है। एक भारतीय पत्रकार सैयद मोहम्मद अहमद कजमी को इसी सिलसिले में हिरासत में लिया गया था। परंतु किन्हीं कारणों से उसपर आगे मुकदमा नहीं चलाया गया, और बाद में उसे निजी मुचलके पर जमानत दे दी गयी। यह काफी अजीब बात है कि भारत में रह रहे इजरायली राजनयिकों पर जानलेवा हमला हुआ और उसपर सरकार ने कोई ठोस कार्रवाई भी नहीं की।

सबसे बड़ी बात तो यह है कि हमला यूपीए सरकार के इंटेलिजेंस की असफलता को बयान करती है, जिसका नेतृत्व तब राष्ट्रीय सुरक्षा सलहकार शिवशंकर मेनन के हाथों में हुआ करता था। ये हमला तब हुआ था जब भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा रसातल में थी, और कई दर्जन आतंकी हमले आए दिन भारत में लोगों को भयभीत करे जा रही थी, जिससे स्पष्ट पता था कि तत्कालीन सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति वास्तव में कितना प्रतिबद्ध थी।

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2012 की बमबारी यूपीए सरकार की कूटनीतिक कमजोरी को भी पूरी तरह उजागर करती है। Quds Force द्वारा किया गया हमला केवल इजरायली राजनयिकों पर जवाबी कार्रवाई ही नहीं थी, बल्कि यह भारत की संप्रभुता पर भी एक हमला था। कांग्रेस ने ईरान को अपने कुकृत्यों के लिए नहीं लताड़ा, अपितु इस घटना को छुपाने का भरसक प्रयास किया गया था। पर हम भूल रहे हैं कि ये वही काँग्रेस है, जिसने इसलिए पाकिस्तान पर 26/11 के बाद एयर स्ट्राइक्स करने के विकल्प को मना कर दिया, क्योंकि वह अपने वोट बैंक को आहत नहीं करना चाहती थी।

भारत-इजरायल संबंधों पर उस समय के राजनयिक और राजनीतिक निष्क्रियता के प्रतिकूल प्रभाव को भी ध्यान में रखना चाहिए। यूपीए सरकार ने इजरायल के राजनयिकों की सुरक्षा अवहेलना की थी। किसी भी देश्ग को राजनयिकों की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी होती है, और इज़राएली राजनयिकों पर हमला न केवल एक सुरक्षा चूक थी, बल्कि उन लोगों पर शिकंजा कसने में पूरी तरह से विफल रहने का भी वह एक उदाहरण था, जिन्होंने इजरायली रक्षा राजनयिक की पत्नी की कार पर बमबारी की थी।

जिस इज़राएल ने न केवल रक्षा के क्षेत्र में बल्कि जल प्रबंधन जैसे कई क्षेत्रों में भारत की हरसंभव सहायता की है, उसके राजनयिकों पर हमले पर कार्रवाई तो छोड़िए, तत्कालीन सरकार ने आह तक नहीं भरी। कांग्रेस कभी भी वोट बैंक की राजनीति से ऊपर नहीं उठ पायी और इज़राइल के साथ मजबूत संबंध बनाने से कतराती रही, जो वास्तव में भारत के लिए एक स्वाभाविक सहयोगी है। यही कारण है कि जब तक कांग्रेस सत्ता में रही, तब तक भारत-इजरायल संबंध वास्तव में कभी भी घनिष्ठ नहीं हो सके ।

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