‘मानो दो दोस्तों में झगड़ा हो गया हो,’ कश्मीरी पंडितों के जनसंहार की विधु विनोद चोपड़ा ने की घटिया व्याख्या

विधु विनोद चोपड़ा

PC: Jansatta

फ़िल्मकार विधु विनोद चोपड़ा एक बार फिर विवादों के घेरे में आए हैं। अपनी फिल्म ‘शिकारा’ के प्रोमोशन के लिए वे इंडिया टुडे के स्टूडियो पहुंचे थे, जहां उन्होंने न केवल कश्मीरी पंडितों के नरसंहार का उपहास उड़ाया, अपितु उसे ‘दोस्तों के बीच हुए झगड़े’ की संज्ञा भी दे डाली।

दरअसल, स्टूडियो में पत्रकारों से बातचीत के दौरान विधु विनोद चोपड़ा ने कहा, “देखिये, इस फिल्म के निर्माण में मैंने दो साल कश्मीर में भी बिताए हैं, और आधे से ज़्यादा क्रू मुस्लिम हैं। वे जानते थे कि ये फिल्म किस बारे में है, इसीलिए ये फिल्म कश्मीर के मुसलमानों के कारण ही संभव हो पायी है। ये वो कश्मीर है जो हम जानते हैं, और यही वो कश्मीर है जहां हम वापिस जाएंगे और अपनी ज़िंदगी जियेंगे। एक दिन यह कश्मीर वापिस आयेगा”। बता दें कि शिकारा मूवी 1990 के दशक में कश्मीरी पंडितों के पर हुए असंख्य अत्याचार और उनके पलायन पर आधारित फिल्म है।

विधु विनोद चोपड़ा यहीं नहीं रुके। उन्होंने यहाँ तक कह दिया कि, “यह फिल्म हीलिंग के बारे में है, ये फिल्म साथ आने के बारे में है। यह फिल्म इस धारणा के बारे में है कि 30 साल से ज़्यादा हो चुके हैं, चलो माफ करें और आगे बढ़ें। यह कुछ ऐसा है कि जब दो दोस्तों के बीच एक छोटा झगड़ा होता है, और 30 साल बाद वे कहें कि छोड़ो इसे, एक दूसरे से माफी माँगकर गले मिलो”।

क्या यहाँ मज़ाक चल रहा है? वर्ष 1989 में टीका लाल टपलू की हत्या के साथ शुरू हुए देश के सबसे दर्दनाक मानव त्रासदियों में से एक दो दोस्तों में चल रहा एक छोटा सा झगड़ा कैसे हो सकता है?  और कैसे कश्मीरी पंडितों के साथ जो हुआ, उसे माफ करके आगे बढ़ें? विधु विनोद चोपड़ा ने प्रमोशन के दौरान अपने मुख से जो ये सुविचार प्रकट किए हैं, उससे उन्हें तालियाँ कम गालियां ज़्यादा पड़ेंगी।

19 जनवरी 1990 की उस मनहूस रात से कश्मीर में वो खूनी तांडव शुरू हुआ, जिसकी कल्पना किसी ने भी नहीं की होगी। लाखों कश्मीरी पंडितों को रातों रात उनके अपने घरों को छोड़ने का फरमान जारी हुआ। जिन्होंने इस फरमान को मानने से मना किया, उन्हें बर्बर तरीके से मौत के घाट उतारा गया। जाने कितने कश्मीरी पंडितों को जीवित जलाया गया था, कितनी माताओं और बहनों की आबरू लूटी गयी थी। ये सब दो दोस्तों में एक छोटा झगड़ा तो कदापि नहीं हो सकता।

फिर क्या था, ‘शिकारा’ को बॉयकॉट करने की डिमांड सोशल मीडिया पर ज़ोर पकड़ने लगी। डॉ॰ श्रद्धा नामक ट्विटर यूजर ने पोस्ट किया, “शाहीन बाग के प्रदर्शनों में हिन्दू विरोधी प्लाकार्ड केवल इतिहास को दोहरा रहे हैं। शर्म आती है विधु विनोद चोपड़ा पर, जिसने कश्मीरी हिन्दू के सुनियोजित नरसंहार, उनकी बर्बरता से की गयी हत्या को दो मित्रों के बीच एक छोटे झगड़े की संज्ञा दी। समय आ गया है कि शिकारा को बॉयकॉट करें –

https://twitter.com/drshraddha16/status/1219436334462300160?s=20

ऐसे ही एक अन्य ट्विटर यूजर अन भद्रलोक बंगाली ने ट्वीट कर लिखा, “तो विधु विनोद चोपड़ा के अनुसार कश्मीरी पंडितों का नरसंहार एक छोटी सी दोस्ताना लड़ाई थी। उल्टी आ जाये इस explanation को सुनकर” –

इससे ज़्यादा शर्मनाक बात क्या हो सकती है कि स्वयं विधु विनोद चोपड़ा की माँ इसी त्रासदी की शिकार हुई थीं। 1989 में रिलीज़ हुई परिंदा के रिलीज़ के बाद उनकी माँ शांति देवी श्रीनगर में अपने घर वापिस नहीं जा पायी थीं। शिकारा फिल्म की पटकथा स्वयं एक कश्मीरी पंडित एवं चर्चित लेखक, राहुल पंडिता ने लिखी है। इसके बाद भी यदि विधु विनोद चोपड़ा कश्मीरी पंडितों के साथ हुए नरसंहार का ऐसा उपहास उड़ा सकते हैं, तो फिर भगवान ही जाने उन्होंने ‘शिकारा’ में कश्मीरी पंडितों के साथ कितना न्याय किया भी होगा। अब विधु विनोद चोपड़ा की इन बातों को सुनकर अगर किसी के मन में इस फिल्म को बहिष्कार करने का विचार आता है तो वो गलत नहीं होगा।

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