अमेरिका और ईरान के बीच बढ़ते तनाव के ख़त्म होने के बाद पूरी दुनिया ने राहत की सांस ली। इसी के साथ मेजर जनरल कासिम सुलेमानी की हत्या के बाद अमेरिका और ईरान के बीच बढ़े तनाव का प्रकरण समाप्त हो गया। बुधवार को एक प्रेस वार्ता में, राष्ट्रपति ट्रम्प का ईरान के प्रति रुख में नरमी नजर आई। उन्होंने कहा कि ईरान अब झुक गया है और उसने सुलह के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया है। इससे अब भविष्य में युद्ध की संभावना कम होती दिखाई दे रही है।
अब जबकि दोनों के बीच के तनाव और स्टैंड दोनों ही स्पष्ट हैं तो एक चीज इस दौरान भारत-पाक के बीच के तनाव की तरह समान नजर आई. मतलब ये कि पिछले वर्ष फरवरी में भारत द्वारा पकिस्ता के बालाकोट में की गयी स्ट्राइक के बाद जिस तरह के हालात बने थे तब भी युद्ध की संभावनाएं तेज थीं परन्तु पाकिस्तान ने घुटने टेक दिए थे। यदि घटनाक्रम पर हम विशेष ध्यान दें तोसच कहें तो यह समानता महज संयोग मात्र नहीं है।
भारत द्वारा किए गए एयरस्ट्राइक की भांति ही अमेरिका ने भी बग़दाद में हवाई हमले किए, जिसमें मेजर जनरल कासिम सुलेमानी मारे गए। ट्रम्प ने यह भी दावा किया कि मेजर जनरल सुलेमानी ने चार अमेरिकी दूतावासों पर हमले कराये थे, जिसके कारण हवाई हमले में वे मारे गए। इसी तरह भारत के विदेश मंत्रालय ने बताया था कि बालाकोट में किया गया हवाई हमला जैश ए मुहम्मद द्वारा संचालित मदरसों में पनप रहे भारत विरोधी तत्वों का अंत करने हेतु किया गया था। इसी कारण पहले पुलवामा में 44 से ज़्यादा CRPF के जवान मारे गए, और फिर एक एंकाउंटर में 1 मेजर सहित 5 सैन्य कर्मचारी मारे गए थे।
दोनों हमलों की प्रतिक्रिया का उद्देश्य और प्रक्रिया काफी समान है। ईरान ने अमेरिकी हमले के जवाब में अपने यहां स्थित अमेरिकी बेस पर हमला करवाया। इस हमले में ईरान ने इस बात पर ध्यान दिया कि किसी अमेरिकी की जान न चली जाये, क्योंकि वे जानते हैं कि US की सैन्य शक्ति के सामने वे एक दिन नहीं टिक सकते। इसीलिए मिसाइल प्रायोजित हमले रात में कराये गए थे। चूंकि यूएस का एक मजबूत एयर डिफेंस सिस्टम है, इसलिए यूएस के सैनिकों को नुकसान पहुंचाना कोई हंसी मज़ाक नहीं है।
ऐसे ही पाकिस्तान ने भारत के विरुद्द अपना शक्ति प्रदर्शन दिखाने हेतु हमारे हवाई सीमाओं को पार करते हुए हवाई हमले करने का प्रयास किया, पर वे पुंछ और राजौरी क्षेत्र में अपने तय किए गए निशानों में से एक भी भेद नहीं पाये। विस्फोटक बम होने के बावजूद पाकिस्तान 27 फरवरी को अपना लक्ष्य भेदने में असफल रहा था। हालांकि, पाकिस्तान सेना के प्रवक्ता आसिफ गफूर ये जरुर दावा कर रहे थे कि पाकिस्तान ने अपनी ताकत दिखाते हुए राजौरी में ब्रिगेड मुख्यालय के पास बम गिराया गया था।
पाकिस्तान भली भांति जानता था कि भारत से युद्ध करना मतलब अपने ही अंत को निमंत्रण देना होता, इसीलिए पाक ने भारत के विरुद्ध खानापूर्ति के लिए हमले कराये थे। यूएस और ईरान के बीच बढ़े तनाव की भांति पाकिस्तान भी भारत के सामने कहीं नहीं ठहरता। ऐसे में हमारे पड़ोसी देश के लिए यही उचित था कि वे भारत पर कोई घातक हमला न ही करे।
गौर करें तो ईरान और पाकिस्तान दोनों ने ही जानबूझकर तनाव को शांत किया। जहां ईरान के संबंध में ईरानी राजदूत ने भारत को मध्यस्थता के लिए आमंत्रित किया, तो वहीं पाकिस्तान के संबंध में विंग कमांडर अभिनंदन वर्थमन की अविलंब रिहाई ने भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव को कम किया।
चूंकि दोनों महाशक्तियों सैन्य क्षमता उनके प्रतिद्वंदीयों की तुलना में अद्वितीय थीं, इसलिए उन्हें आगे बढ़ने से कोई रोक भी नहीं सकता था। परंतु अमेरिका और भारत दोनों ने परिपक्वता दिखाते हुए शांतिपूर्ण और सुरक्षित विश्व व्यवस्था के पक्ष में तनाव कम करने का फैसला किया। दोनों मामलों में पूर्ववर्ती स्ट्राइक्स ने उनके रणनीतिक उद्देश्य को प्राप्त किया। दोनों ही मामलों में आगे तनाव बढ़ाने से कुछ हासिल नहीं होने वाला था। सच ही कहा है किसी ने, सत्य कल्पना से भी अधिक जटिल और विचित्र है।