आखिर क्यों दिल्ली एयरपोर्ट पर शंख की प्रतिमूर्ति सही है, और क्यों इसके आलोचक कोरी बकवास कर रहे हैं !

दिल्ली

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पिछले दिनों दिल्ली के इन्दिरा गांधी एयरपोर्ट पर एक शंख का प्रतिरूप स्थापित किया गया था। यह एक घूमते हुए चबूतरे पर स्थित है और साथ में शंख भी मद्धम गति से एक केंद्र पर घूम रहा है। सोशल मीडिया पर इस शंख के प्रतिरूप को खूब सराहना मिल रही है।

शंख का भारत के सनातन धर्म में एक बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान रहा है। एक तरह से यह किसी भी कार्य के शुरू होने और उसके समापन का प्रतीक है तो वहीं दूसरी तरफ़, कई रिसर्च में यह सामने आ चुका है कि शंख ध्वनि का प्रभाव चिकित्सीय रूप से भी सकारात्मक होता है।

भारतीय धर्मशास्त्रों और ग्रन्थों में शंख का विशिष्ट एवं महत्त्वपूर्ण स्थान है। यह माना जाता है कि शंख की उत्पती समुद्र मंथन के दौरान हुई था। समुद्र-मंथन से प्राप्त हुए 14 रत्नों में से छठवां रत्न शंख था। अन्य 13 रत्नों की भांति शंख में भी अलग प्रकार के और अद्भुत गुण मौजूद थे। विष्णु पुराण के अनुसार माता लक्ष्मी समुद्रराज की पुत्री हैं तथा शंख उनका सहोदर भाई है। अत: यह भी मान्यता है कि जहां शंख है, वहीं लक्ष्मी का वास होता है।

हमारे देश में शंख बजाना एक धार्मिक अनुष्ठान के रूप में भी देखा जाता है। हमारे यहां सभी सांस्कृतिक परंपरा यानि पूजा आरती, कथा, धार्मिक अनुष्टानों, हवन, यज्ञ आदि के आरंभ व अंत में भी शंख-ध्वनि का विधान रहा है।

मंदिरों में नियमित रूप से और बहुत से घरों में पूजापाठ, धार्मिक अनुष्ठान, व्रत, कथा, जन्मोत्सव आदि अवसरों पर शंख बजाना शुभ माना जाता है। कहा जाता है कि शंख बजाने से घर के बाहर की आसुरी शक्तियां घर के भीतर प्रवेश नहीं कर पाती है।

पारद शिवलिंग, पार्थिव शिवलिंग एवं मंदिरों में शिवलिंगों पर रुद्राभिषेक करते समय शंख-ध्वनि की जाती है।

यही नहीं महाभारत में प्रत्येक दिन युद्ध का आरंभ और युद्ध की समाप्ती आदि मौकों पर शंख-ध्वनि करने का उल्लेख है। महाभारत काल में सभी योद्धाओं ने युद्ध घोष के लिए अलग-अलग शंख बजाए थे। म हाभारत युद्ध के समय भगवान श्रीकृष्ण ने पांचजन्य शंख को बजा कर युद्ध का जयघोष किया था। इसी युद्ध में अर्जुन ने देवदत्त नाम का शंख बजाया था। वहीं युधिष्ठिर के पास अनंत विजय नाम का शंख था, जिसे उन्होंने रण भूमि में बजाया था। गीता के प्रथम अध्याय के श्लोक 15-19 में इसका वर्णन मिलता है

 

पांचजन्यं हृषीकेशो देवदत्तं धनञ्जय।

पौण्ड्रं दध्मौ महाशंखं भीमकर्मा वृकोदर।।

अनन्तविजयं राजा कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिर।

नकुल सहदेवश्च सुघोषमणिपुष्पकौ।।

काश्यश्च परमेष्वास शिखण्डी च महारथ।

धृष्टद्युम्नो विराटश्च सात्यकिश्चापराजिताः।।

द्रुपदो द्रौपदेयाश्च सर्वश पृथिवीपते।

सौभद्रश्च महाबाहुः शंखान्दध्मुः पृथक्पृथक्।।

अर्थात् इस श्लोक के अनुसार श्रीकृष्ण भगवान ने पांचजन्य नामक, अर्जुन ने देवदत्त और भीमसेन ने पौंड्र शंख बजाया। कुंती-पुत्र राजा युधिष्ठिर ने अनंतविजय शंख, नकुल ने सुघोष एवं सहदेव ने मणिपुष्पक नामक शंख का नाद किया। इसके अलावा काशीराज, शिखंडी, धृष्टद्युम्न, राजा विराट, सात्यकि, राजा द्रुपद, द्रौपदी के पाँचों पुत्रों और अभिमन्यु आदि सभी ने अलग-अलग शंखों का नाद किया।

वैसे भी दिल्ली का क्षेत्र महाभारत में पांडवों की राजधानी इंद्रप्रस्थ के नाम से जाना जाता था और पांडवों के सखा श्रीकृष्ण को अपना पांचजन्य प्रिय था। इसलिए अपनी संस्कृति के एक महत्वपूर्ण प्रतीक को किसी ऐसे एयरपोर्ट पर लगाना जहां से सबसे अधिक विदेशी भारत आते हैं, यह एक अच्छा कदम है।

वैज्ञानिकों का मानना है कि शंख की आवाज से वातावरण में मौजूद कई तरह के जीवाणुओं-कीटाणुओं का नाश हो जाता है। कई टेस्ट से इस तरह के नतीजे मिले हैं।

वैसे भी भारत में लगभग 80 प्रतिशत से अधिक हिन्दू निवास करते हैं इसलिए यह आवश्यक है कि हम अपनी संस्कृति से जुड़े रहे। दिल्ली एयरपोर्ट पर शंख के प्रतिरूप को देख कर वहां से गुजरने वाले सभी भारतीय और विदेशी के मन में शंख के महत्व को जानने की उत्कंठा जागृत होगी और फिर उन्हें इन रत्न के बारे में और इसके भारतीय संस्कृति में महत्व के बारे में ज्ञान होगा। भारत सरकार को चाहिए कि दिल्ली एयरपोर्ट की तरह देश के सभी एयरपोर्ट पर इसी तरह के भारतीय संस्कृति से जुड़े विशेषताओं का किसी न किसी रूप में प्रदर्शन करे। इससे लोगों के मन में एक नए प्रकार का उत्साह जागेगा और अपनी संस्कृति की ओर मुड़कर देखने का मौका मिलेगा।

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