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350 साल पहले, इसी दिन वीर Tanaji ने अपने जीवन का बलिदान दिया था, अजय देवगन ने उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि दी है

तान्हाजी की बड़ी सफलता सूबेदार तानाजी मालुसरे के बलिदान को सबसे सच्ची श्रद्धांजलि है

Animesh Pandey द्वारा Animesh Pandey
4 February 2020
in चलचित्र
तानाजी मालुसरे
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नरवीर सूबेदार तानाजी मालुसरे

4 फरवरी 1670, ‘एक और मुग़लों की आँधी, दूसरी ओर मुट्ठी भर मराठा’, सूबेदार तानाजी मालुसरे के नेतृत्व में मराठा मावले [योद्धा] कोंढाणा दुर्ग को पुनः प्राप्त करने के लिए निकले थे। तब उनका सामना हुआ था दुर्ग के राजपूत किलेदार उदयभान राठौड़ से, जिसके पास लगभग 2500 मुग़ल सिपाही थे, जिनमें 500 राजपूत भी थे।

यह युद्ध किसी धर्मयुद्ध से कम नहीं था, क्योंकि कोंढाणा दुर्ग पर मुग़लों के नियंत्रण का अर्थ था दक्षिण भारत पर उनके नियंत्रण को सशक्त करना। तानाजी मालुसरे भले ही वीरगति को प्राप्त हुए थे, पर उन्होंने न केवल कोंढाणा दुर्ग को पुनः प्राप्त किया, अपितु मुग़ल साम्राज्य की जड़ों पर घातक प्रहार किया था।

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आज, 350 वर्ष बाद, उनके बलिदान को मानो भारत ने सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित की है। नरवीर सूबेदार तानाजी मालुसरे और उनके बलिदान पर आधारित फिल्म ‘तान्हाजी – द अनसंग वॉरियर’ भारत के दर्शकों का दिल जीतने में पूरी तरह सफल रही है। ओम राउत द्वारा निर्देशित यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर धूम मचा रही है, और अब तक घरेलू बॉक्स ऑफिस पर 251 करोड़ रुपये से ज़्यादा कमा चुकी है और विश्व भर के कलेक्शन को मिलाकर लगभग 331 करोड़ रुपये कमा चुकी है। फिल्म अब आधिकारिक रूप से घरेलू और वैश्विक बॉक्स ऑफिस, दोनों के लिहाज से ब्लॉकबस्टर बन चुकी है।

ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि सूबेदार तानाजी मालुसरे के लिए इस फिल्म का ब्लॉकबस्टर होना उनके शौर्य के लिए सबसे बड़ी श्रद्धांजलि है। जिस योद्धा के शौर्य को वामपंथी इतिहासकारों ने पूरे भारत से छुपाने के भरसक प्रयास किए थे, उसे अजय देवगन और ओम राउत जैसे लोगों ने मिलकर एक बार फिर जीवंत किया है। क्या बच्चे, क्या बूढ़े, सभी की ज़ुबान पर आज तान्हाजी की ही गूंज है।

तानाजी मालुसरे, छत्रपति शिवाजी महाराज के सबसे विश्वसनीय सेनापति थे

बता दें कि नरवीर सूबेदार तानाजी मालुसरे मराठा साम्राज्य के जनक छत्रपति शिवाजी महाराज के सबसे विश्वसनीय सेनापति थे, जिन्होंने उनके साथ कई अहम अभियानों में कंधे से कंधा मिलाकर भाग लिया था। अपने बेटे रायबा के विवाह की तैयारियां करते हुए तान्हाजी को राजदरबार से बुलावा आया, जहां उन्होंने राजमाता जीजाबाई ने कोंढाणा दुर्ग को पुनः प्राप्त करने का दायित्व सौंपा। एक परम मित्र होने के नाते छत्रपति शिवाजी तानाजी के निजी जीवन में हस्तक्षेप नहीं करना चाहते थे, परंतु तानाजी ने तय कर लिया था – पहले ‘शादी’ कोंढाणा की, फिर मेरे रायबा की।

4 फरवरी 1670 को 800 मराठा मावलों के साथ तानाजी मालुसरे कोंढाणा दुर्ग को पुनः प्राप्त करने निकल पड़े। 300 मावलों के साथ उन्होंने दुर्ग के पश्चिमी छोर से चढ़ाई प्रारम्भ की, जहां उनके और दुर्ग के बीच एक दुर्गम पहाड़ी थी। परंतु अनेक चुनौतियों से पार पाते हुए तानाजी और उनके मावले दुर्ग में तैनात सैनिकों पर वज्र के समान टूट पड़े।

मावलों की चपलता के कारण उनके भाई सूर्याजी मालुसरे और उनके साथ 500 अन्य मावलों को दुर्ग के मुख्य दरवाजे से प्रवेश करने में कोई कठिनाई नहीं झेलनी पड़ी। इसी बीच तानाजी मालुसरे और उदयभान राठौड़ में एक भयंकर खडग युद्ध प्रारम्भ हुआ, जिसमें तानाजी की ढाल टूट गयी। परंतु तानाजी ने उदयभान को परास्त कर ही दम लिया, और अंत में अपने घावों के कारण उन्हें अपने प्राणों का बलिदान देना पड़ा। जब छत्रपति शिवाजी महाराज कोंढाणा पहुंचे, और उन्हें तानाजी की मृत्यु का समाचार मिला, तो महाराज के रूँधे हुए गले से सिर्फ इतना ही निकला, “गढ़ आला पण सिंह गेला” [दुर्ग तो मिल गया पर मेरा शेर चला गया] तानाजी की स्मृति में दुर्ग का नाम सिंहगढ़ रखा गया।

जिस तरह से तानाजी मालुसरे में इस युद्ध को दर्शाया गया, उससे दर्शक न केवल अभिभूत हुए, अपितु तान्हाजी की मृत्यु पर कई दर्शकों के आँखों से अश्रुधारा भी बही। हमारी फिल्म इंडस्ट्री पर अक्सर ये आरोप लगाया जाता रहा है कि उन्होंने इतिहास के साथ न्याय नहीं किया। परंतु तान्हाजी उन फिल्मों में से नहीं है, जो सस्ती लोकप्रियता के लिए भारतीय संस्कृति और मूल इतिहास के साथ समझौता करे।

अजय देवगन ने तान्हाजी को सच्ची श्रद्धांजलि दी है

यह बात अजय देवगन के कई साक्षात्कारों से भी सिद्ध हुई कि तानाजी मालुसरे में वे मूल इतिहास के साथ न्याय करने के लिए कितने प्रतिबद्ध थे। राजीव मसन्द को दिये एक इंटरव्यू में उन्होने कहा, “कुछ लोग इसलिए आक्रोश जता रहे हैं कि तानाजी की जाति नहीं बताई गयी। मैं पूछना चाहता हूं कि तानाजी तो देश के लिए लड़े थे, उनकी जाति कैसे मायने रखती है?” अजय देवगन का इशारा उन विरोध प्रदर्शनों की ओर था, जहां अखिल भारतीय कोली समाज ने दिल्ली हाई कोर्ट में तानाजी के विरुद्ध इसलिए केस फाइल किया, क्योंकि तानाजी मालुसरे की जाति को फिल्म के ट्रेलर में नहीं दिखाया गया।

इतना ही नहीं, अजय देवगन ने भारत के वास्तविक इतिहास के पुनरुत्थान के लिए तानाजी के माध्यम से छोटा, पर बहुमूल्य योगदान दिया है। अजय देवगन उन चंद कलाकारों में शामिल हैं, जो कम से कम अपनी फिल्मों में सस्ती लोकप्रियता के लिए भारतीय संस्कृति या सनातन धर्म का अपमान तो नहीं करते। तानाजी के प्रचार के लिए बहुचर्चित कॉमिक पुस्तक प्रकाशक अमर चित्र कथा को अपना प्रोमोशनल पार्टनर  चुना था और उन्होने ट्वीट किया, “इतिहास अपने आप को दोहराए या नहीं, पर हमारे बच्चों के लिए ताणाजी जैसे शूरवीर योद्धाओं का साहस एवं शौर्य एक बेजोड़ उदाहरण होगा। मुझे बड़ी खुशी होती है ये घोषणा करके कि अमर  चित्र कथा का एक विशेष संकलन निकलने वाला है, जिसमें ताणाजी शामिल होंगे।‘’

परंतु ठहरिए, अजय देवगन का काम अभी खत्म नहीं हुआ है। उन्होने स्पष्ट बताया है कि तान्हाजी तो मात्र प्रारम्भ है, वे ऐसे अन्य योद्धाओं की वीर गाथाओं को अपने ‘अनसंग वॉरियर्स’ के माध्यम से सामने लाएँगे। इसके लिए उन्होंने अपने अगले प्रोजेक्ट के तौर पर वीर सुहेलदेव को चुना है, जिन्होने सोमनाथ मंदिर को छिन्न भिन्न करने वाले सुल्तान महमूद के भांजे गाजी सैयद सलार मसूद को बहराइच के युद्ध में परास्त कर न सिर्फ उसके भारत में साम्राज्य स्थापित करने के इरादों को परास्त किया, अपितु किसी भी विदेशी आक्रांता को लगभग 140 वर्ष तक भारत से दूर रखा।

इसके बाद अजय देवगन राष्‍ट्रीय फुटबॉल टीम (Football Team) को बुलंदियों तक पहुंचाने वाले कोच सैयद अब्‍दुल रहीम को ‘मैदान’ के जरिये पर्दे पर लाएँगे, और साथ ही साथ अखंड भारत के आधुनिक रचयिता एवं मौर्य साम्राज्य के संस्थापक, आचार्य चाणक्य को भी पर्दे पर नीरज पाण्डेय द्वारा निर्देशित ‘चाणक्य’ के माध्यम से सामने लाएँगे। सच कहें तो आज सूबेदार तानाजी मालुसरे जहां भी होंगे, वे भारत में अपने लिए इस सम्मान को देखकर काफी प्रसन्न होंगे और ओम राऊत और अजय देवगन जैसे लोगों को हृदय से धन्यवाद दे रहे होंगे।

Tags: अजय देवगन
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