जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 हटाने, राज्य को दो हिस्सों में बांटने और उन दोनों राज्यों को केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा देने के बाद अब केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर में हिन्दू विरासत को पुनर्जीवित करने की दिशा में काम करने वाली है। बीते मंगलवार को कश्मीरी पंडितों से मुलाक़ात के दौरान गृहमंत्री अमित शाह ने उन्हें विश्वास दिलाया कि अब घाटी में हिन्दू मंदिरों का जीर्णोद्धार ही केंद्र सरकार की प्राथमिकता होगी।
अमित शाह ने कहा कि आतंकवादियों और उग्रवादियों ने जिन भी हिन्दू मंदिरों को नुकसान पहुंचाया है, उन्हें वापस पुराने रूप में लौटाया जाएगा। अगर केंद्र सरकार ऐसा करने में सफल हो जाती है, तो यह देश के हिन्दू श्रद्धालुओं के लिए किसी वरदान से कम नहीं होगा।
कभी घाटी में हिन्दू मंदिरों की भरमार हुआ करती थी, लेकिन आज हमें सिर्फ वैष्णो माता के मंदिर के बारे में ही पता है। पिछले वर्ष जब केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाया था, तो केंद्र सरकार ने कहा था कि वह अपने राज्य में क्षतिग्रस्त हुए मंदिरों का एक सर्वे कराएगी। तब गृह राज्यमंत्री रेड्डी ने कहा था, –
‘हमने कश्मीर घाटी में बंद पड़े स्कूलों की सर्वे के लिए एक कमेटी का गठन किया है और उन्हें दोबारा खोला जाएगा। पिछले कुछ सालों में करीब 50 हजार मंदिर बंद हुए हैं, जिनमें से कुछ नष्ट हो गए हैं और कुछ की मूर्तियां टूटी हुई हैं। हमने ऐसे मंदिरों के सर्वे का आदेश दिया है।’
बता दें कि धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले जम्मू-कश्मीर राज्य में सिर्फ वैष्णो माता का मंदिर ही नहीं बल्कि कई और प्रसिद्ध हिंदू मंदिर भी हैं। इनमें से कई तो 9वीं शताब्दी में निर्मित मंदिर हैं, जो अब खंडहर के रूप में ही शेष रह गए हैं लेकिन हिंदू श्रद्धालुओं की आस्था आज भी इन मंदिरों में उतनी ही है जितनी पहले हुआ करती थी।
जम्मू-कश्मीर के लिए राजतरंगिणी और नीलम पुराण नामक दो प्रामाणिक ग्रंथों में यह आख्यान मिलता है कि कश्मीर की घाटी में कभी बहुत बड़ी झील हुआ करती थी। इस कथा के अनुसार कश्यप ऋषि ने यहां से पानी निकाला और इसे मनोरम प्राकृतिक स्थल में बदल दिया। किंतु भूगर्भशास्त्रियों का कहना है कि भूगर्भीय परिवर्तनों के कारण खदियानयार, बारामुला में पहाड़ों के धंसने से झील का पानी बहकर निकल गया और इस तरह ‘पृथ्वी पर स्वर्ग’ कहलाने वाली कश्मीर की घाटी अस्तित्व में आई।
ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में सम्राट अशोक ने कश्मीर में बौद्ध धर्म का प्रसार किया। बाद में कनिष्क ने इसकी जड़ें और गहरी कीं। छठी शताब्दी के आरंभ में कश्मीर पर हूणों का अधिकार हो गया। यद्यपि सन् 530 में घाटी फिर स्वतंत्र हो गई लेकिन इसके तुरंत बाद इस पर उज्जैन साम्राज्य का नियंत्रण हो गया। विक्रमादित्य राजवंश के पतन के पश्चात कश्मीर पर स्थानीय शासक राज करने लगे। वहां हिन्दू और बौद्ध संस्कृतियों का मिश्रित रूप विकसित हुआ।
कश्मीर के हिन्दू राजाओं में ललितादित्य (697 से सन् 738) सबसे प्रसिद्ध राजा हुए, जिनका राज्य पूर्व में बंगाल तक, दक्षिण में कोंकण, उत्तर-पश्चिम में तुर्किस्तान, और उत्तर-पूर्व में तिब्बत तक फैला था। ललितादित्य ने अनेक भव्य भवनों व मंदिरों का निर्माण कराया तब जम्मू-कश्मीर राज्य अपने समृद्धि के चरम सीमा पर था। लेकिन फिर एक के बाद एक लगातार इस्लामिक आक्रमण ने जम्मू-कश्मीर में कट्टरवाद का जहर मिला दिया जिससे यह खूबसूरत राज्य आज भी उबर नहीं पाया है। इतिहास के मध्यकाल में भारत पर इस्लामिक अक्राताओं ने कई हमले किए और इसका सबसे पहला शिकार भारत के उत्तर-पश्चिमी राज्य ही हुए जिनमें से जम्मू-कश्मीर सबसे ऊपर था।
समय के साथ ये हमले बढ़ते गए और सनातन धर्म को खत्म करने के कई प्रयास किए गए। स्वतन्त्रता के बाद भी जम्मू-कश्मीर में लगातार हिंदू इस तरह के हमलों से जूझते रहे, यहां तक कि इस राज्य के अन्य धर्म के लोगों ने भी इसमें कोई कसर नहीं छोड़ी। तत्कालीन मुस्लिम सरकार ने जम्मू-कश्मीर को हिन्दू बहुल से इस्लाम में परिवर्तित करने का भरपूर प्रयास किया। इस्लाम के एकछत्र राज में हिंदू मंदिरों का बड़े स्तर पर विध्वंस हुआ। शासन पर पकड़ बनाए रखने के लिए शेख अब्दुल्ला ने कश्मीर में इस्लाम को बढ़ावा दिया और मंदिरों को विध्वंस करवाया।
इस बात की जानकारी राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड के पूर्व डीजी वेद मरवाह ने अपनी पुस्तक “इंडिया इन टरर्मोइल” में भी वर्णन किया है कि शेख अब्दुल्ला मुख्यमंत्री रहते हुए इस्लाम को शह देने के लिए लगभग हजारों मंदिरों को तोड़वाया था। इस कट्टरवादिता का ही परिणाम था कि वर्ष 1989 में कश्मीरी पंडितों पर असहनीय हमले हुए और घाटी से हिंदुओं का नामों निशान मिटाने की कोशिश की गयी थी।
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार पिछले दो दशकों के दौरान जम्मू-कश्मीर में लगभग 208 मंदिरों को तोड़ा गया। कश्मीरी पंडितों को घाटी से निकालने के बाद खाली घरों के बारे में सरकार ने बताया था कि श्रीनगर जिले में 1,234 घरों में से लगभग 75% खाक हो चुके हैं। अब उम्मीद है कि केंद्र सरकार इनका जल्द से जल्द जीर्णोद्धार कर सकती है, जिससे इतने दशकों से हिन्दू विरासत से विमुख रही कश्मीर घाटी में हमें दोबारा हिन्दू धर्म का प्रभाव देखने को मिल सकता है।