एंटी-CAA उपद्रवियों ने दिल्ली में एक पुलिस वाले को मार डाला, और liberals इसका दोष कपिल मिश्रा पर मढ़ रहे हैं

सोमवार को सीएए विरोधी हिंसा ने सभी सीमाएं लांघ दी, जब जाफराबाद, मौजपुर और पूर्वोत्तर दिल्ली के अन्य इलाकों में दंगाइयों ने खूब उत्पात मचाया। कई जगह तो इलाकों को मैदान ए जंग में परिवर्तित करते हुए दंगाई दिल्ली पुलिस और आम नागरिकों के खिलाफ हिंसा करने से भी बाज़ नहीं आये। इस स्थिति ने एक भयानक मोड़ तब लिया जब दिल्ली पुलिस के एक हेड कॉन्स्टेबल, रतन लाल को दंगाइयों के पत्थरों के कारण अपनी जान से हाथ धोना पड़ा, और डीसीपी अमित शर्मा भी दंगाइयों के उपद्रव के कारण घायल हो गए।

सीएए विरोध के नाम पर जिस तरह से दंगाइयों को हिंसा फैलाने के लिए भड़काया जा रहा है, और दिल्ली को जंग के मैदान में परिवर्तित किया जा रहा है, उससे साफ है कि अपना राजनीतिक हित साधने के लिए कुछ लोग निर्दोषों की बलि चढ़ाने तक को तैयार हैं। परंतु कुछ निहायती बेशर्म लोग इसमें भी प्रोपगैंडा चलाना चाहते हैं और यही कारण है कि वे सारा दोष भाजपा नेता कपिल मिश्रा पर डाल रहे हैं।

कपिल मिश्रा को बलि का बकरा बनाने की शुरुआत बरखा दत्त से बेहतर कौन करता? बरखा ट्वीट करती हैं, “दिल्ली पुलिस का हैड कांस्टेबल रतन लाल हिंसक प्रदर्शनों के कारण मारा जाता है। ये काफी दर्दनाक है। परंतु ये कपिल मिश्रा के अल्टिमेटम के ठीक एक दिन बाद हुआ, जब उन्होंने कहा कि सभी प्रदर्शनों को हटाओ वरना….. जो भी जिम्मेदार है उसे तुरंत गिरफ्तार करो”।

वहीं, जावेद अख्तर भी इसमें कहां पीछे रहते उन्होंने कहा, ‘दिल्ली में हिंसा का स्तर बढ़ता ही जा रहा है। सभी कपिल मिश्रा धीरे-धीरे सामने आ रहे हैं। एक माहौल बनाया जा रहा है, जिसमें औसत दिल्लीवासियों को यह समझाया जा रहा है कि यह सब सीएए के विरोध प्रदर्शन के कारण हो रहा है और कुछ ही दिनों बाद दिल्ली पुलिस अपने ‘आखिरी समाधान’ पर पहुंचेगी।’

घर फूँक कर तमाशा देखना शायद इसी को कहते हैं। यहाँ पर दोषी कौन है, ये सभी को पता है, फिर भी दोष उस व्यक्ति पर डालना चाहते हैं, जिसकी दंगा भड़काने में कोई भूमिका नहीं है। अब सवाल तो उठता ही है कि क्या अराजकता को रोकने की अपील करना और सड़कें खाली कराना दंगे भड़काने का आवाहन है?

असल में सीएए विरोधी दंगाइयो ने रविवार से ही मोर्चा संभाल लिया था। उद्देश्य स्पष्ट था – डोनाल्ड ट्रम्प की भारत यात्रा में खलल डालना और अंतर्राष्ट्रीय मीडिया का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करना। विश्वास नहीं होता, तो इन ट्वीट्स को एक बार ध्यान से देखिये

https://twitter.com/TrulyMonica/status/1231466146773159941

https://twitter.com/Soumyadipta/status/1231438839941672960

 

शाहीन बाग को दिल्ली में दोहराने के उद्देश्य से सीएए विरोधी दंगाइयों ने जाफराबाद में रोड नंबर 66को ब्लॉक कर दिया था और मौजपुर में कपिल मिश्रा द्वारा निकाली गयी सीएए समर्थक रैली पर पत्थर भी बरसाए थे। इसमें कोई संदेह नहीं है कि दंगाइयों में अधिकांश लोग सीएए विरोधी दंगाई और इस्लामी कट्टरपंथी थे। इसके बाद भी सीएए समर्थक गुट को इन सभी कामों के लिए दोषी बनाया जा रहा है, जो न सिर्फ अतार्किक है, बल्कि इनके कुत्सित मानसिकता पर भी प्रकाश डालता है।

जहां तक कपिल मिश्रा की बात आती है, तो ये सोचना भी हास्यास्पद होगा कि उनके बयान दिल्ली के एक पूरे क्षेत्र में दंगे कराने के लिए पर्याप्त हैं। वे इतने भी लोकप्रिय नेता नहीं है, और दिल्ली विधानसभा चुनाव में भी उन्हें हार मिली थी। कपिल मिश्रा के बयान शायद अपरिपक्व हो सकते हैं, पर भड़काऊ नहीं, और वे वारिस पठान जितने भड़काऊ तो बिलकुल नहीं है, जो कहता है, “अब वक्त आ चुका है, हमें बताया गया है कि हमारी माँओं और बहनों को मोर्चे पर भेजा गया है। आपको हमारी शेरनियों के मोर्चा संभालने से ही पसीने छूटने लगे। सोचो तब क्या होगा जब हम एक होंगे। हम 15 करोड़ हो सकते हैं, पर 100 करोड़ पर भारी हैं, याद रखना”।

ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा की वारिस पठान के बयानों ने दिल्ली में दंगे भड़काए, और कुछ हद तक तो इसमें शर्जील इमाम के भड़काऊ बयानों का भी हाथ रहा है, जिससे अंतर्राष्ट्रीय मीडिया का त ध्यान इनकी ओर आकर्षित हो सके।

वास्तव में 15 दिसंबर के बाद से दिल्ली में हिंसा भड़काने का काम तो सीएए विरोधी लॉबी ने किया है, जिसमें मुख्य रूप से  AAP विधायकों- अमानतुल्ला खान और अब्दुल रहमान जैसे कट्टरपंथी शामिल है। अमानतुल्ला खान या अब्दुल रहमान के बयान कपिल मिश्रा से न केवल अधिक उत्तेजक हैं, बल्कि दिल्ली चुनाव भी जीत चुके हैं। क्या उनपर दंगों को भड़काने के लिए कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए?

यदि गैर जिम्मेदाराना बयान दंगाइयों को उकसाने का मापदंड है, तो इस हिसाब दिल्ली के मंत्री मनीष सिसोदिया भी दिसंबर में जामिया नगर हिंसा के बाद दिल्ली पुलिस को बदनाम करने के लिए दोषी है। दिल्ली पुलिस के विरुद्ध फर्जी खबरें फैलाकर दंगे भड़काने में इस व्यक्ति का भी बराबर का हाथ रहा है।

न केवल राष्ट्रीय राजधानी में, बल्कि देश भर में, विरोधी सीएए दंगाइयों ने हिंसा को बढ़ावा देने का एक कॉमन कनैक्शन रहा है। गुवाहाटी से लखनऊ तक, सीएए पर हिंसा का हर एक कार्य दंगाइयों-पीएफआई के गठबंधन से जुड़ा है।

हाल ही में हुई हिंसा में भी इस्लामिक कट्टरपंथ की स्पष्ट भूमिका सामने आई है। दिल्ली पुलिस के जवानों पर आठ राउंड फायर करने वाले व्यक्ति का नाम मुहम्मद शाहरुख निकला। इससे कपिल मिश्रा द्वारा दंगा भड़काए जाने के अफवाहों पर भी विराम लगता है। यहाँ दोषी की पहचान उजागर हो चुकी है, और एक बार फिर पीएफ़आई जैसे आतंकी संगठन के हाथ दिल्ली पुलिस और निर्दोष दिल्लीवासियों के खून से रंगी हुई है –

https://twitter.com/ippatel/status/1231969615540031490

मौजपुर से संबंधित वीडियो में साफ दिख रहा है कि दंगाइयों की मंशा क्या है। सीएए का शांतिपूर्ण विरोध तो  कुछ नही बल्कि इन दंगाइयों का वास्तविक उद्देश्य केवल और केवल हिंदुओं को डराना और दंगे भड़काना है। एक आदमी वीडियो में चिल्लाते हुए सुना गया, ‘हिन्दू की गाड़ियां जला दी, हिन्दू की दुकानें जला रहे हैं –

वामपंथियों के समूह ने इस मामले को दबाने और दिल्ली पुलिस के हैड कांस्टेबल की हत्या पर देश को भ्रमित करने का एक नाकाम प्रयास किया है। वे सारा दोष कपिल मिश्रा पर मढ़ना चाहते थे, ताकि मुहम्मद शाहरुख और बाकी दंगाइयों पर आंच न आए। पर मुहम्मद शाहरुख हिरासत में लिया जा चुका है, और अब अमित शाह ने भी मामले की कमान अपने हाथ में ले ली है। ऐसे में अब सीएए विरोधी गिरोह की खैर नहीं।

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