दिल्ली विधानसभा चुनाव के परिणाम आ चुके हैं और BJP को इस बार फिर से हार का मुंह देखा पड़ा है। हालांकि BJP की सीट और वोट शेयरिंग में मामूली बढ़त देखने को मिली परंतु परिणाम उस तरह नहीं आए जिस तरह से अमित शाह ने चुनाव प्रचार के अंतिम चरण में मेहनत की थी। आम आदमी पार्टी के सामने तो BJP दिल्ली ने सरेंडर ही कर दिया था लेकिन अंतिम समय में अमित शाह ने खूब ज़ोर लगाई लेकिन लोकप्रियता को वोट में नहीं बदल सके। इसका एक प्रमुख कारण था दिल्ली BJP के अंदर ही कॉरपोरेटर के बीच अंदरूनी लड़ाई।
चुनाव से कुछ दिनों पहले ही दिल्ली के लोकल पार्षद लेवेल पर गुटबाजी की खबर आई थी जिसे हिंदुस्तान टाइम्स ने रिपोर्ट भी किया था। मामला इतना बढ़ गया था कि अमित शाह को बीच में आना पड़ा और यह कहना पड़ा कि जो भी घोषित उम्मीदवार के लिए प्रचार नहीं करेगा उस पर एक्शन लिया जाएगा।
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार कुछ कॉरपोरेटर अपने फायदे के लिए घोषित उम्मीदवार के पक्ष में कैम्पेन नहीं कर रहे हैं। इस रिपोर्ट के अनुसार अमित शाह ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि पार्टी अंदरूनी कलह से नहीं जीत सकती और जीतने ले लिए सभी को मिलकर AAP के खिलाफ लड़ना होगा।
यह पहला चुनाव नहीं है जब BJP पार्टी के अंदरूनी लड़ाई के कारण हारी हो। इससे पहले झारखंड में भी यही देखने को मिला था। झारखंड में तो पार्टी के 2 बड़े नेता एक दूसरे के खिलाफ खड़े हो गए थे। सरयू राय और तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास के बीच हुए इस घमासान से BJP को हार का मुंह देखना पड़ा था। आखिर में सरयू राय ने रघुवर दस के खिलाफ जमशेदपुर पूर्व से चुनाव लड़ा और तत्कालीन मुख्यमंत्री को हराया।
BJP का शीर्ष नेतृत्व तो पूरी तरह से एकजुट है लेकिन निचले स्तर खास कर शहरी क्षेत्रों में पार्टी के कार्यकर्ता एक दूसरे से ही लड़ते रहते हैं।
विधान सभा चुनावों के दौरान शहरी क्षेत्रों में यह देखा गया है कि कॉरपोरेटर, वार्ड मेम्बर और मेयर खुद ही टिकट पाना चाहते हैं और अगर उन्हें टिकट नहीं मिलता है तो वे घोषित उम्मीदवार के खिलाफ प्रचार करते हैं और उसे हारने का प्रयास करते हैं।
चुनाव किसी भी सीट के लिए हो, चाहे विधानसभा क्षेत्र हो या संसदीय क्षेत्र, एक पार्टी में कई दावेदार होते हैं और यह स्पष्ट है कि केवल एक को ही चुनाव में उतारा जा सकता है। जो दावेदार टिकट हासिल नहीं कर पाते हैं, उन्हें टिकट पाने वाले उम्मीदवार के लिए समर्थन और प्रचार करना चाहिए। लेकिन, ऐसा होता नहीं है।
अन्य दावेदार जो टिकट हासिल करने में सफल नहीं होते, वे बदला लेने के लिए अपनी ही पार्टी के उम्मीदवार को हारने की कोशिश करते हैं।
लोकसभा चुनाव के दौरान जनता, पार्टी और प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार को वोट देते हैं, क्योंकि उस समय राष्ट्रीय मुद्दे होते हैं। वर्ष 2014 और 2019 के आम चुनावों में भाजपा के कई उम्मीदवार पीएम मोदी के नाम पर जीते थे जिन्हें उनके निर्वाचन क्षेत्रों में कोई जानता भी नहीं था। स्थानीय लोगों द्वारा नापसंद किए जाने वाले कई उम्मीदवारों ने चुनाव जीता, क्योंकि लोग जानते थे कि यह पीएम मोदी हैं जो देश का नेतृत्व करने जा रहे हैं।
स्थानीय चुनावों और विधानसभा चुनावों में, स्थानीय नेताओं द्वारा समर्थन बहुत महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि लोग पार्टी या मुख्यमंत्री के चेहरे के बजाय उम्मीदवार को वोट देते हैं। दिल्ली विधानसभा 2020 जैसे चुनाव में स्थानीय उम्मीदवारों का समर्थन और भी महत्वपूर्ण है, जहां पर BJP ने मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित नहीं किया था। इस स्थिति में, जिन स्थानीय नेताओं को टिकट नहीं दिया गया, उनका समर्थन आवश्यक हो जाता है। BJP दिल्ली विधानसभा में यही हासिल करने में असफल रही और चुनाव हार गयी।