दिल्ली में हुए चुनावों में भाजपा को बड़ी शिकस्त झेलने को मिली। आम आदमी पार्टी को जहां दिल्ली की 62 सीटों पर जीत हासिल हुई, तो वहीं भाजपा को उम्मीद से बेहद कम सीटें ही मिल पाई हैं। इतना तो तय है कि भाजपा को दिल्ली के चुनाव से बड़ी सीख मिली है।
भाजपा का वोट शेयर वर्ष 2015 में 32 प्रतिशत के मुक़ाबले इस वर्ष 38 प्रतिशत तक पहुँच गया। हालांकि, फिर भी इन नतीजों से भाजपा को बहुत कुछ सीखने को मिलेगा। ऐसा बिलकुल नहीं है कि इन चुनावों में भाजपा की विचारधारा को मात मिली, जैसे की कुछ मीडिया संस्थान दावा कर रहे हैं। असल में इन चुनावों में भाजपा ने चुनाव प्रचार को आखिरी वक्त में जाकर तीव्र किया, जबकि पार्टी को शुरू से ही ऐसा करना चाहिए था। अब उम्मीद है कि भाजपा अगले साल पश्चिम बंगाल में होने वाले चुनावों में पूरे दम-खम के साथ उतरेगी।
गौर किया जाये तो भाजपा ने अपने सभी दिग्गजों को चुनावी प्रचार के आखिरी हफ्ते में मैदान में उतारा। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से लेकर यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ तक, सभी आखिरी हफ्ते में ही चुनावी मैदान में नज़र आए। अब अगर भाजपा शुरू से ही तीव्र चुनाव प्रचार करती, तो शायद भाजपा के बेहद कम मार्जिन से हारने वाले प्रत्याशी इस चुनाव में बाज़ी मारने में कामयाब हो पाते। हालांकि, पश्चिम बंगाल में भाजपा से इसकी उम्मीद नहीं है कि वे वहां भी यही गलती दोहराएंगे।
अगले साल पश्चिम बंगाल में होने वाले चुनाव भाजपा के लिए सबसे अहम साबित होने वाले हैं। बिहार में भी इसी वर्ष चुनाव होने वाले हैं जहां पर भाजपा JDU के नीतीश कुमार के साथ मिलकर चुनाव लड़ने वाली है और बिहार में भाजपा की राह आसान रहने वाली है, लेकिन बंगाल के लिए भाजपा को पहले से ही कमर कसने की जरूरत है।
भाजपा पिछले कुछ समय से पश्चिम बंगाल पर कुछ ज़्यादा ही फोकस कर रही है। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा ने बड़े ही प्रभावी तरीके से राज्य में प्रचार किया। अमित शाह और पीएम मोदी ने बंगाल में कई रैलियाँ की, जिसका परिणाम यह हुआ कि राज्य में भाजपा की लोकसभा सीटों का आंकड़ा 2 से सीधा 18 पर पहुंच गया। वहीं ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस को वर्ष 2014 में 34 सीटों के मुक़ाबले पिछले वर्ष सिर्फ 22 सीटें ही मिली थीं।
तब भाजपा को ममता बनर्जी के हिन्दू-विरोध, पाखंड, नफरत की राजनीति का राजनीतिक लाभ मिला था और साथ ही पीएम मोदी की लोकप्रियता ने कमाल किया था। अब अगर बीजेपी बंगाल में जीत नहीं पाई, तो पार्टी के बारे में लोगों में नकारात्मक धारणा बन जाएगी और इसे CAA और NRC पर लोगों की राय के रूप में देखा जाएगा। इसके अलावा दुनियाभर में फैला लेफ्ट लिबरल गैंग भी पीएम मोदी का विरोध करने में कोई कसर नहीं छोड़ेगा।
कांग्रेस का अब किसी भी राज्य में कोई वजूद नहीं रह गया है और उसने राज्यों में विपक्षी पार्टियों के साथ मिलकर भाजपा को हराने को ही अपना लक्ष्य समझ लिया है। ऐसा ही हमें दिल्ली में देखने को मिला। कांग्रेस ने AAP को चुनाव जीतने के लिए फ्रीहैंड दे दिया, और इस बात की उम्मीद है कि बंगाल मे भी कांग्रेस ऐसे ही TMC को आसानी से जीतने दे सकती है, ताकि भाजपा को हराया जा सके। ऐसे में भाजपा को बंगाल में त्रिकोणीय मुक़ाबले होने की उम्मीद नहीं करनी चाहिए। यही कारण है कि भाजपा को चुनावों में अति-तीव्र चुनाव प्रचार करने की ज़रूरत है और उम्मीद है हमें ऐसा ही देखने को मिलेगा।