मिशनरीज ऑफ चैरिटी का नाम तो आपने सुना ही होगा!! नाम सुनकर यह अंदाजा तो लगाया ही जा सकता है कि यह किसी ईसाई मिशनरी से जुड़ा संस्थान है। मिशनरीज ऑफ चैरिटी की स्थापना मदर टेरेसा ने की थी। आज-कल यह संस्था फिर से चर्चा में है और वह भी गलत कारणों से।
मदर टेरेसा द्वारा स्थापित इस ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ के आश्रम में बच्चों की खरीद फरोख्त की घटना पर सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड सरकार से जवाब मांगा है। राष्ट्रीय बाल संरक्षण अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने कोर्ट में याचिका दायर कर बताया है कि इस घटना पर झारखंड सरकार का रवैया लापरवाही भरा है। इसकी जांच में सरकारी अधिकारी आयोग का सहयोग नहीं दे रहे हैं।
बता दें कि National Commission for Protection of Child Rights यानि NCPCR ने संविधान के अनुच्छेद 23 के तहत सुप्रीम कोर्ट का रुख किया और चैरिटी के नाम पर होने वाले मानव तस्करी की जांच के लिए SIT के गठन की मांग की थी। बता दें कि NCPCR ने अपनी याचिका में सुप्रीम कोर्ट को यह बताया था कि संविधान के अनुच्छेद 23 के तहत मानव तस्करी से बचाया जाना लोगों का मौलिक अधिकार है और इसका पालन करना सरकार की जिम्मेदारी है।
NCPCR के अनुसार मदर टेरेसा का संगठन कई ‘चिल्ड्रेन होम’ चलाता है, जहाँ से इन बच्चों को कथित तौर पर बेचा जा रहा है। इस मामले में झारखंड सरकार को आगाह किया गया था लेकिन जांच को रोकने के प्रयास होते रहे।
NCPCR ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि 2018 में मिशनरीज ऑफ चैरिटी की 2 सिस्टर बच्चों को बेचने के मामले में गिरफ्तार हुई थीं और आयोग ने इससे जुड़ी खबरों पर संज्ञान भी लिया था। उस दौरान NCPCR ने राँची स्थित एक ऐसे ही शेल्टर होम का दौरा किया था, जहाँ बड़ी गड़बड़ियाँ पाई गई थीं।
NCPCR ने 8 सितंबर, 2018 को मिशनरीज ऑफ चैरिटी से संचालित संस्थानों के बारे में जानकारी मांगी थी जिसमें इस संस्थान ने 78 बाल देखभाल संस्थानों का विवरण दिया था। जबकि यह मिशनरीज ऑफ चैरिटी 80 ऐसे संस्थान को संचालित करता है। इस बारे में झारखंड पुलिस व प्रशासन को सारी जानकारी दे दी गई थी।
वहीं एक अन्य मीडिया रिपोर्ट से भी खुलासा हुआ कि मिशनरीज ऑफ चैरिटी से बच्चों को बेचे जाने का धंधा काफी समय से चल रहा है। इसी कारण NCPCR जानना चाहता है कि इस मानव तस्करी के तार कहां तक जुड़े हैं? जो बच्चे मिशनरीज ऑफ चैरिटी से गायब हुए, वो कहां है?
इन खुलासों में यह भी बात सामने आई है कि ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ के कई आश्रमों में 2015 से 2018 के बीच 450 गर्भवती महिलाएं भर्ती हुई थीं, लेकिन वहां सिर्फ 170 नवजात शिशुओं का रिकॉर्ड मिला। बाकी 280 शिशुओं के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली। पुलिस की तरफ से की गई शुरुआती जांच में 2 ननों और संस्था के संचालक की तरफ से 4 नवजात बच्चों को बेचे जाने की पुष्टि हुई थी।
इस घटना से देश के इलाकों में चल रहे ईसाई धर्मांतरण और मानव तस्करी के स्तर का पता चलता है कि कैसे चैरिटी के नाम पर बच्चों को अवैध तरीके से बेचा जा रहा है। ये मिशनरीज न सिर्फ झारखंड जैसे राज्यों की संस्कृति का नाश कर रहे हैं बल्कि इनके फंड से नक्सलियों का भी वित्तपोषण होता है। नक्सलियों और मिशनरीज की साँठ-गांठ किसी से छुपी नहीं है। नक्सलियों द्वारा किए जाने वाले हमलों से मिशनरीज लाभान्वित होते हैं। हमले की बाद राहत शिविर स्थापित कर इसी की आड़ में धर्मांतरण किया जाता है।
तथ्य यह है कि मौजूदा झारखंड सरकार की टालमटोल से ही ऐसे मिशनरीज पर लगाम नहीं लगाया जा सका है। अब जब NCPCR ने इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंचा है तब इस मामले में कोर्ट की निगरानी में SIT जांच की संभावनाएं है। जांच के बाद कि इन मिशनरीज का बच्चों की खरीद फरोख्त से लेकर नक्सलियों तक की साँठ-गांठ का खुलासा होगा और चैरिटी के नाम पर चल रहे इन धंधों पर लगाम लगाया जा सकेगा।