छत्तीसगढ़ में 90 विधानसभा सीटों में से 69 सीटों पर जीत हासिल कर बेशक वर्ष 2018 में भूपेश बघेल ने अपनी लोकप्रियता से सबको अचंभित कर दिया हो, लेकिन छत्तीसगढ़ की जनता पिछले एक साल से ज़्यादा के समय में बघेल सरकार से पूरी तरह त्रस्त हो चुकी है। आसान भाषा में कहा जाये तो उनका पाप का घड़ा अब लगभग भर चुका है और लोगों में उनके खिलाफ जमकर गुस्सा भरा है। उन्होंने अपने चुनाव प्रचार में जो वादे किए थे, उन्हें पूरा करने में अब छत्तीसगढ़ सरकार के पसीने छूट रहे हैं।
ऐसा ही एक वादा भूपेश बघेल ने राज्य के बेरोजगारों से किया था। घोषणा पत्र में कांग्रेस ने वादा किया था कि सरकार में आते ही कांग्रेस बेरोजगारों को 2500 रुपये बेरोजगारी भत्ता हर महीने देगी, लेकिन अब तक सरकार ने इस वादे को पूरा करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया है। छत्तीसगढ़ में करीब 23 लाख रजिस्टर्ड बेरोजगार हैं। बेरोजगारों से 2500 रुपये प्रति महीने भत्ते का वादा करके सत्ता में आई कांग्रेस से अब युवा बेरोजगारी भत्ते की आस लगा रहे हैं और इसके साथ ही उनकी मांगे पूरी ना करने की परिस्थिति में सरकार के खिलाफ बड़ा प्रदर्शन करने की बात भी की जा रही है। एक अनुमानित हिसाब के अनुसार यदि सरकार वादा पूरा करती है तो सरकार को करीब 6 अरब रुपये का भार हर महीने पड़ेगा, जिससे सरकार का बजट पूरी तरह चरमरा जाएगा, लेकिन कांग्रेस ने वादा करते वक्त यह बिलकुल नहीं सोचा था।
इसके अलावा छत्तीसगढ़ में आपातकाल के दौरान जेल गए लोगों को पिछले 12 सालों से मिलने वाली सम्मान निधि बंद किए जाने के राज्य सरकार के फ़ैसले पर भी सरकार को काफी विरोध झेलने को मिल रहा है। राज्य के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने इस पर कहा कि आपातकाल में जेल गए लोग कोई स्वतंत्रता संग्राम सेनानी नहीं थे, इसलिए उन्हें दी जाने वाली पेंशन बंद करना सही है। दूसरी ओर विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने सरकार के इस फ़ैसले की आलोचना की। उन्होंने कहा, “कांग्रेस सरकार का यह फ़ैसला लोकतंत्र की हत्या है और सरकार को इस मसले पर पुनर्विचार करते हुए अपने फ़ैसले को वापस लेना चाहिए।” सरकार के इस फैसले से जिन लाभार्थियों पर प्रभाव पड़ेगा, वे इस मामले को कोर्ट में ले जाने पर भी विचार कर रहे हैं।
और सिर्फ इतना ही नहीं, दिन रात किसानों की दुहाई देने वाली कांग्रेस पार्टी के राज में किसानों की ही सबसे ज़्यादा दुर्गति हुई है। कांग्रेस ने किसानों से वादा किया था कि किसानों से धान 2500 रुपये प्रति क्विंटल की दर से खरीदा जाएगा, लेकिन सरकार इस वर्ष भी अपने इस वादे को पूरा करने से भागती दिखाई दी। पिछले वर्ष नवंबर में भूपेश बघेल ने अपने वादे से मुकरते हुए विधानसभा में कहा था कि छत्तीसगढ़ सरकार अब किसानों से संग्रहण केंद्रों पर निर्धारित समर्थन मूल्य कॉमन धान के लिए 1,815 रुपये और ग्रेड-ए धान 1,835 रुपये प्रति क्विंटल की दर से खरीदी करेगी। किसानों के साथ सिर्फ यही अन्याय ही नहीं किया गया बल्कि धान खरीद सीज़न को भी 15 नवंबर की बजाय 1 दिसंबर से शुरू किया गया और यह घोषणा कर डाली कि सरकार MSP के तहत किसान से सिर्फ 8 क्विंटल धान ही खरीदेगी, जबकि कांग्रेस ने किसान से MSP के तहत 15 क्विंटल धान खरीदने का वादा किया था। किसानों ने छत्तीसगढ़ सरकार के इस रवैये के खिलाफ जमकर विरोध प्रदर्शन किए जो कि अब भी जारी हैं।
अपने एक अन्य विवादित फैसले में राज्य सरकार NIA एक्ट के खिलाफ भी सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा चुकी है। भूपेश सरकार की सुप्रीम कोर्ट से मांग है कि कानून को असंवैधानिक घोषित किया जाए। छत्तीसगढ़ सरकार का तर्क है कि ये कानून केन्द्र सरकार को मनमाना अधिकार देता है, साथ ही राज्य पुलिस के जांच करने के संवैधानिक अधिकार को प्रभावित करता है।
एनआईए कानून संविधान के तहत राज्य को दिए गए अधिकारों का हनन करता है। इसीलिए हमने इसे चुनौती देने का निर्णय लिया। https://t.co/h1l474xtzh
— Bhupesh Baghel (@bhupeshbaghel) January 15, 2020
छत्तीसगढ़ एक नक्सल प्रभावित क्षेत्र रहा है जहां नक्सलियों से निपटने के लिए केंद्र सरकार को सही तथ्यों के साथ-साथ तेज जांच चाहिए होती है। ऐसे में NIA एक्ट के खिलाफ जाकर भूपेश बघेल सरकार ने सीधे तौर पर इन नक्सलियों की मदद करने का काम किया, जिसको लेकर विरोधी BJP ने सरकार की कड़ी आलोचना की।
छत्तीसगढ़ राज्य में आरक्षण को लेकर भी बड़ा बवाल जारी था। असल में राज्य सरकार ने पिछले साल अध्यादेश जारी कर प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग को मिलने वाले आरक्षण को 14 प्रतिशत से बढ़ाकर 27 प्रतिशत कर दिया था। इससे पहले भी अनुसूचित जाति वर्ग का आरक्षण 12 से बढ़ाकर 13 फीसदी कर दिया गया था। कुल मिलाकर अनुसूचित जनजाति को 32 प्रतिशत, अनुसूचित जाति को 13 प्रतिशत तथा अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण प्रदान किया गया था। इससे एसटी, एससी व ओबीसी को मिलाकर कुल आरक्षण 82 प्रतिशत से अधिक हो गया था जिसके खिलाफ युवाओं ने अपना विरोध जताया था और उग्र प्रदर्शन करने तक की धमकी दे डाली थी। हालांकि, अब बिलासपुर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के इस फैसले को निराकृत कर दिया है और अब राज्य में पहले की तरह 58 प्रतिशत आरक्षण ही लागू होगा।
ये सब उदाहरण इस बात को साबित करने के लिए काफी है कि भूपेश बघेल सरकार को सही से चलाने में असफल साबित हो रहे हैं। सरकार में आने की लालसा के कारण वे हवाई वादे-पर-वादे करते गए, लेकिन इस बात का ख्याल उन्हें कभी आया ही नहीं कि अपने वादों को वो पूरा कैसे करेंगे। सरकार बनने के लगभग 2 सालों के बाद अब हाल यह है कि समाज का हर धड़ा सरकार से तंग आ चुका है और सभी लोग सड़कों पर उतरकर विरोध प्रदर्शन करने पर मजबूर हैं।