कपिल मिश्रा हमारे वामपंथी मीडिया के लिए नए पंचिंग बैग बने हुए हैं। उनके द्वारा दिया गया एक भाषण मानो इन लिबरल पत्रकारों के लिए किसी सुनहरे अवसर से कम नहीं था, जो दिल्ली में उमड़ी हिंसा के लिए भी हिंदुओं को दोषी बनाना चाहते थे। उनके लिए दोषी वो शाहरुख नहीं जो दिल्ली पुलिस के जवान पर पिस्तौल ताने खड़ा था, परंतु वो कपिल मिश्रा है जिसका ‘अपराध’ था जाफराबाद में इकट्ठा हुए उपद्रवियों को हटवाने के लिए हुंकार भरना। जिस तरह से द वायर और न्यूज़लौंड्री जैसे पोर्टल्स ने कपिल मिश्रा को दिल्ली में हुए सीएए विरोधी दंगों के लिए दोषी ठहराने का प्रयास किया है, उससे साफ सिद्ध होता है कि कैसे यह एक ही संप्रदाय पर पूरे प्रकरण का दोष डालना चाहते हैं।
अब ज़रा कपिल मिश्रा और शर्जील इमाम की तुलना करते हैं, जो अभी वामपंथियों के लिए किसी आराध्य से कम नहीं है। कपिल मिश्रा पर वामपंथी ये आरोप लगा रहे हैं कि उन्होने अपने भड़काऊ बयानों से दिल्ली में हिंसा का तांडव रचाया है। परंतु सच क्या है? कपिल मिश्रा ने अपने बयान में कहा था कि वे केवल डोनाल्ड ट्रम्प के भारत दौरे तक ही शांत रहेंगे, और उसके बाद भी यदि जाफराबाद में डेरा जमाये उपद्रवी नहीं हटे, तो वे अपने तरीके से उन्हे हटाएँगे।
अब अगर इस भाषण से वामपंथियों को लगता है कि कपिल मिश्रा ने दिल्ली में हिन्दू आतंकवाद फैलाया है, तो उनसे बस ही एक सवाल – ये लेजेंडरी लॉजिक लाते कहाँ से हो भाई? सीएए विरोध के नाम पर हुआ उपद्रव तो ट्रम्प के भारत दौरे के पहले ही दिन से प्रारम्भ हो चुका था, परंतु कपिल मिश्रा को दोषी बनाकर मीडिया को लाईमलाइट भी मिलती, और अपने टार्गेट आडियन्स से ढेर सारा ‘प्यार’ और पैसा भी।
अब आते हैं शर्जील इमाम, जो वामपंथियों के लिए किसी संत आत्मा से कम नहीं है। जनाब ने एएमयू में लोगों को भड़काते हुए कहा था कि पूर्वोत्तर को भारत से पूरी तरह अलग कर देना चाहिए। परंतु वामपंथियों के लिए यह भाषण भड़काऊ नहीं, एक अल्पसंख्यक की भड़ास मात्र है। मतलब भड़ास में असम को भारत से अलग करना और पूर्वोत्तर से भारत को हमेशा के लिए दूर रखने की बात करना भी उचित है, नहीं? इसके अलावा जनाब ने कहा कि यदि इस प्रदर्शन में हिस्सा लेना है, तो गैर मुसलमानों को मुसलमानों के मानकों के अनुसार चलना होगा। मतलब चित भी मेरी और पट भी मेरी, और सिक्का तो मेरे बाप का हइए ही।
अब जब दोनों की राम कहानी हो चुकी है, तो आइये बात करते हैं द वायर और न्यूज़लौंडरी के इन दोनों व्यक्तियों पर प्रतिक्रिया की। जिस तरह से दोनों के साथ बर्ताव किया गया है, उससे स्पष्ट होता है कि वास्तव में इन पोर्टल्स को पत्रकारिता की कितनी चिंता है।
सर्वप्रथम तो कपिल मिश्रा पर इन पोर्टल्स की प्रतिक्रिया देखिए। द वायर ने बिना सबूत, बिना कार्रवाई कपिल मिश्रा को ठीक उसी तरह से पूर्वोत्तर दिल्ली में हुए दंगों के लिए दोषी ठहरा दिया, जैसे 2002 में गुजरात में हुए दंगों के आज भी कई वामपंथी नरेंद्र मोदी को दोषी ठहराने की जद्दोजहद में लगे रहते हैं।
परंतु यही द वायर शर्जील इमाम के संबंध में कुछ इस प्रकार से लेख प्रकाशित करता है –
मतलब द वायर के लिए शर्जील इमाम का भाषण कुछ भी हो, पर देशद्रोह नहीं है। इस लेख के लेखक ने शर्जील के बचाव में बेशुमार दलीलें पेश की हैं, मानो ये शर्जील का निजी अधिवक्ता हो। लेखक अपूरवानन्द के अनुसार यह भाषण देशद्रोह नहीं, बल्कि केवल चक्का जाम के लिए आवाहन है। देश तोड़ने के आवाहन को चक्का जाम में परिवर्तित करना कोई द वायर से सीखे भैया
शर्जील इमाम को लगभग निर्दोष करार देने वाले द वायर ने जिन पैमानों पर उसे निर्दोष ठहराया है, उस हिसाब से कपिल मिश्रा भी किसी संत आत्मा से कम नहीं है। परंतु इसी द वायर के लिए कपिल मिश्रा इस दंगा का सबसे मुख्य कारण है –
परंतु ठहरिए, द वायर अपनी तरह का इकलौता न्यूज़ पोर्टल। उसकी एक सखी भी है, जिसका नाम है न्यूज़लौंडरी। शर्जील को बचाने की जद्दोजहद में न्यूज़लौंडरी ने एक कदम आगे बढ़ते हुए इस शीर्षक के साथ लेख छापा,
“कैसे भारतीय उदारवादी शर्जील इमाम को लेकर सजग नहीं है!” –
यूं तो ये लिख प्रमुख रूप से एविता दास द्वारा लिखा गया है, परंतु बाद में पता चलता है की इसमें एक लेखिका ने नहीं, बल्कि तीन लेखकों ने मिलाकर कचरा फैलाया है। जिस तरह ने न्यूज़लौंडरी ने अपने लेख में जातिवाद को बढ़ावा दिया है, उसे देख तो द वायर के लेखक भी कहेंगे, “चलो, इनसे गिरे हुए तो नहीं है हम लोग!”
लेख में जिन्ना और शर्जील के कृत्यों की तुलना भी की गई है, और ये बताने का प्रयास किया गया है की कैसे दोनों के मायनों में मुसलमानों को एक कोने में धकेल दिया गया, और इसलिए वे कट्टरवाद की ओर मुड़ गए थे। द वायर के लेख के अनुसार जिन्ना को हिन्दू बहुल Congress ने किनारे कर दिया था। यह लेख लेखक के भारत और हिंदुओं, विशेषकर ब्राह्मणों के खिलाफ नाराजगी को जगजाहिर करता है। इस लेख में कितना वैमनस्य है, इस बात का अंदाज़ा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि कैसे यह लेख शर्जील द्वारा गैर-मुस्लिम जप-नारा-ए-तकबीर, अल्लाह हू अकबर ’की मांग का बचाव करता है। इसके अलावा, लेखक शारजील के सामने [पूर्णतया नतमस्तक हो जाते हैं, मानो शर्जील न हुआ स्वयं कार्ल मार्क्स उनके सामने अवतरित हो गए।
द वायर और न्यूज़लौंडरी जैसे औसत पोर्टल आज दिल्ली में ‘हिंसा भड़काने’ के लिए कपिल मिश्रा के खिलाफ तुच्छ बयान देने की धृष्टता करते हैं। परंतु वे भूल रहे हैं कि उनही के तर्क के अनुसार यदि कपिल मिश्रा दोषी हैं, तो शर्जील पूर्णतया निर्दोष नहीं हो सकते हैं। इन पोर्टलों को अच्छी तरह से सलाह दी जाएगी कि वे अपनी हताशा को इस तरह से सार्वजनिक न करें, वरना वे हर बार उपहास के पात्र ही बनते रहेंगे।