अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प भारत आ चुके हैं और उनके भारत दौरे से अमेरिका और भारत की दोस्ती को एक नया आयाम मिलेगा। रक्षा क्षेत्रों से लेकर कई महत्वपूर्ण विषयों पर दोनों देशों के बीच हस्ताक्षर होने की उम्मीद है। इन्हीं विषयों में से एक है न्युक्लियर रिएक्टर्स। ट्रम्प के इस दौरे के दौरान यूएस की एनर्जी कंपनी वेस्टिंगहाउस भारत में सरकार द्वारा संचालित कंपनी न्यूक्लियर पावर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया के साथ छह न्युक्लियर रिएक्टर्स बनाने को लेकर एक नए एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर कर सकती है। इस तरह से देखा जाए तो भारत और अमेरिका की दोस्ती एक मिल का पत्थर साबित होगी। अमेरिका और भारत की दोस्ती ने भारत को न्युक्लियर देश बनने से रोकने की सभी कोशिशों से आज न्युक्लियर रिएक्टर्स बनाने में मदद करने तक, एक लंबा सफर तय किया है।
इंडियन एक्स्प्रेस की रिपोर्ट के अनुसार इस एग्रीमेंट में आंध्र प्रदेश के कोव्वाडा में रिएक्टर्स के निर्माण के लिए लोकल कंस्ट्रक्टर के चयन, समयसीमा और साथ ही भारत के सिविल न्यूक्लियर लायबिलिटी कानून की चिंताओं पर बात हो सकती है। साल 2008 के सिविल न्यूक्लियर एनर्जी संधी के बाद से अमेरिका भारत को न्यूक्लियर रिएक्टर्स बेचने के बारे में विचार कर रहा है। पिछले वर्ष भी दोनों सरकारों ने घोषणा की थी कि वे छह रिएक्टरों की स्थापना के लिए प्रतिबद्ध हैं।
एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले सप्ताह भारत के लिए न्यूक्लियर एक्सपोर्ट्स को प्रमोट करने और सरकारी अधिकारियों से बातचीत करने के लिए यूएस एनर्जी एंड कॉमर्स डिपार्टमेंट, वेस्टिंगहाउस, यूएस-इंडिया रणनीतिक पार्टनरशिप फोरम और न्यूक्लियर एनर्जी इंस्टीट्यूट के प्रतिनिधि भारत आए थे।
बता दें कि वेस्टिंगहाउस और NPCIL आंध्र प्रदेश के कोव्वाडा में छह 1100 MW के रिएक्टर बनाने पर विचार कर रहे हैं। NPCIL ने इसके लिए बीते दिनों अमेरिका में वेस्टिंगहाउस का दौरा किया था।
भारत और अमेरिका की इस दोस्ती ने लंबा सफर तय किया है। वर्ष 1980 के दशक में स्थिति यह थी कि मौसम की जानकारी देने वाला सुपर कंप्यूटर तक भारत को बेचने में US काफी सोच विचार में था। यही नहीं वर्ष 1998 में अमेरिका ने भारत के पोखरण में परमाणु परीक्षण करने के बाद आर्थिक प्रतिबंध तक लगा दिया था। तब से लेकर आज स्वयं अमेरिका द्वारा न्यूक्लियर रिएक्टर्स लगाने में मदद करना दिखाता है कि भारत ने किस प्रकार से वैश्विक स्तर पर अपनी छवि को सुधारा है और एक महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर है।
भारत और अमेरिका के बीच वर्ष 2008 में परमाणु समझौता हुआ था लेकिन इस समझौते को कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा है। सीटीबीटी (Comprehensive Nuclear-Test-Ban Treaty) और एनपीटी (Non-Proliferation Treaty) का हस्तारक्षरकर्त्ता न होने के कारण भारत की परमाणु नीति सकारात्मक दिशा में आगे नहीं बढ़ पा रही थी।
यही नहीं अपनी सुरक्षा के लिए भारत की परमाणु हथियार की महत्वकांक्षा भी भारत-अमेरिका के बीच परमाणु समझौते में एक प्रमुख अवरोधक थीं। अक्सर यह देखा जाता है कि मजबूत देश आमतौर पर असैन्य परमाणु परियोजनाओं में सहयोग करने के लिए अनिच्छुक होते हैं क्योंकि नागरिक उद्देश्यों के लिए स्थापित परमाणु रिएक्टर “रक्षा परमाणु कार्यक्रम” के लिए raw materials के रूप में भी काम कर सकते हैं। सिविल न्यूक्लियर रिएक्टर्स से निकलने वाला By-product परमाणु हथियार बनाने में मदद कर सकता है।
इसी वजह से अमेरिका ने भारत के पहले परमाणु का भी विरोध किया था। जब इन्दिरा गांधी ने 1974 में परमाणु परीक्षण का फैसला किया था तभी US ने भारत को रोकने में अपनी सारी शक्तियाँ लगा दी थी। अमेरिका ने इसके लिए CIA के जासूसी से लेकर सैटेलाइट से भारत पर नजर रखने का हथकंडा अपनाया था।
आज हालत बादल चुके हैं और विश्व के सभी देशों को अब भारत पर पूरी तरह से भरोसा हो चुका है। अमेरिका का भारत में परमाणु रिएक्टर्स लगाने में मदद करना इसी भरोसे पर मुहर लगाता है। 2008 में अमेरिका-भारत असैन्य परमाणु संधि के बाद से भारत और अमेरिका के बीच इस संबंध में एक दूसरे के ऊपर भरोसा बढ़ता गया है। इसके बाद 25 जनवरी 2015 को दोनों देशों के प्रमुखों ने नई दिल्ली में घोषणा की कि दोनों देशों ने असैन्य परमाणु संधि पर प्रगति की राह में अड़ रहे दो सबसे विवादित मुद्दों पर समझौता कर लिया था। ये दोनों मुद्दे थे – भारतीय संसद द्वारा 2010 में पारित किया गया भारतीय परमाणु दायित्व कानून तथा दोनों देशों द्वारा 2008 में किए गए भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु संधि से जुड़ी ‘’प्रशासनिक व्यवस्थाएं।’’
अब पीएम मोदी और राष्ट्रपति ट्रम्प ने इस मुद्दे को एक नया आयाम दिया है। दोनों देश एक दूसरे के और बड़े साझेदार बन चुके हैं और एक दूसरे की मदद कर रहें हैं। भारत में वेस्टिंगहाउस का NPCIL के साथ मिल कर न्यूक्लियर रिएक्टर्स बनाने से विश्व में इन दोनों देशों की दोस्ती एक नए मुकाम पर पहुंच जाएगी।
एक समय था जब अमेरिका ने भारत के परमाणु शक्ति बनने के डर से उसे रोकने का हर संभव प्रयास किया। आज, दोनों देश सिविल न्यूक्लियर सेक्टर में साथ काम करने जा रहे हैं। अब अमेरिका को भारत पर पूरा भरोसा है।