गौतम गंभीर BJP पर दिनों दिन बेकार बोझ बनते जा रहे हैं, इस बोझ को ढोने की कोई ज़रूरत नहीं

क्रिकेट अच्छा खेलता था, लेकिन राजनीति में बहुत घटिया

गौतम गंभीर

पूर्व क्रिकेटर और पूर्वी दिल्ली से भाजपा के वर्तमान सांसद गौतम गंभीर एक बार फिर सुर्खियों में है, और इस बार गलत कारणों से। सीएए विरोध के नाम पर पूर्वोत्तर दिल्ली में उमड़ी हिंसा पर जब उनसे राय मांगी गयी, और पूछा गया कि क्या कपिल मिश्रा के विरुद्ध कार्रवाई की जाएगी, तो गौतम गंभीर ने कहा, कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह इंसान कौन है, चाहे वह कपिल मिश्रा हो या कोई भी, किसी भी पार्टी से संबंधित हो, अगर उसने कोई भड़काऊ भाषण दिया है तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए”

बता दें कि जाफराबाद में सीएए विरोधी उपद्रवियों द्वारा अवरोध उत्पन्न होने के बाद कपिल मिश्रा ने मौजपुर में सीएए समर्थकों के साथ एक रैली निकाली थी, जिसपर उपद्रवियों ने पत्थरबाजी भी की थी। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के भारत दौरे के बाद वापस जाने तक हम यहां से शांतिपूर्वक जा रहे हैं, लेकिन अगर तीन दिन में रास्ते खाली नहीं हुए, तो हम फिर सड़कों पर उतरेंगे। इसके बाद हम दिल्ली पुलिस की नहीं सुनेंगे। कपिल मिश्रा के बयान के बाद कथित रूप से हिंसा भड़काने का आरोप उनपर वामपंथी लगाते आ रहे हैं।

एक होते हैं बेवकूफ़, फिर आते हैं अपने बयानों और अपने करतबों से अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मारने वाले गौतम गंभीर। पिछले कुछ महीनों से अपनी पार्टी का कम, और विपक्ष का प्रतिनिधित्व करते ज़्यादा दिखाई दे रहे हैं। कभी वे प्रदूषण पर आयोजित संसदीय बैठक को छोड़ कर इंदौर में क्रिकेट स्टुडियो के कुछ आयोजकों के साथ जलेबी खाते नज़र आते हैं, तो कभी किसी व्यक्ति के झूठे आरोपों को सच मानकर सेक्युलरिज़्म पर ज्ञान देते फिरते हैं। विश्वास नहीं होता तो कुछ महीने पुराने इस घटना से संबन्धित महोदय के ट्वीट को देखिये –

इस ट्वीट में गौतम लिखते हैं, “गुरुग्राम में एक मुस्लिम आदमी को टोपी उतारने के लिए मजबूर किया और जय श्री राम के नारे लगवाए गए। यह दुर्भाग्यपूर्ण है। ये एक सेक्यूलर देश है, जहां जावेद अख्तर ने ‘ओ पालन हारे’ लिखा है और राकेश ओमप्रकाश मेहरा ने ‘अर्ज़ियाँ’ की रचना की है”।

परंतु गुरुग्राम पुलिस ने जल्द ही उस ‘पीड़ित’ के दावों की पोल खोल दी। पुलिस के अनुसार एफ़आईआर में उसने एक बार भी नारे लगवाने की बात नहीं की। कई सीसीटीवी रिकॉर्डिंग्स से यह भी सामने आया कि यह एक मामूली झड़प थी, जिसका सांप्रदायिकता से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं था। इस बात के सामने आने पर गौतम गंभीर की खूब फजीहत हुई थी, लेकिन लगता है कि उन्होंने कोई सबक नहीं लिया है।

ऐसे में भला जनता गौतम गंभीर के इस बेतुके बयान को कैसे हल्के में लेती? सोशल मीडिया पर कई यूजर्स ने जमकर गौतम गंभीर को लताड़ा। ‘मैथुन@बीइंगह्यूमर’ के नाम के यूजर ने ट्वीट कर कहा, “आज मैं धोनी का फ़ैन हो गया। ये दूरदृष्टि रखते हैं वे तभी पहले ही गौतम गंभीर को पहचान कर साइडलाइन कर दिया था”।

श्रीकांत नामक एक अन्य यूजर ने कई अन्य भड़काऊ बयानों का एक वीडियो पोस्ट करते हुए ट्वीट किया, “कोई इस गौतम गंभीर नामक बेवकूफ़ प्राणी को भेजो, जो मोदी के दम पर संसद में आया है”।

https://twitter.com/srikanthbjp_/status/1232203459744686080?s=20

पंचतंत्र में एक बड़ी प्रचलित कथा थी, एक राजा और एक बंदर की। उस बंदर से राजा इतना प्रेम करते थे कि उसे अपना अंगरक्षक बना लिया। परंतु बंदर तो बंदर, उसका स्वभाव कैसे बदले? राजा के ऊपर मंडरा रही एक मक्खी को हटाने के लिए उसने तलवार उठा ली, और राजा पर हमला कर दिया। इसका संदेश स्पष्ट था, ‘किसी मूर्ख को अपने सहायक के तौर पर न रखे। ’ यह बात गौतम गंभीर पर चरितार्थ होती है, जो अपने कृत्यों और बयानों से भाजपा की फजीहत करा रहे हैं और अनजाने में ही सही, पर वामपंथियों और सीएए विरोध के नाम पर उत्पात मचा रहे उपद्रवियों को अपना समर्थन दे रहे हैं।  भाजपा की मुश्किलें कम होने की बजाय इससे बढ़ रही हैं। ऐसे में भाजपा को भी ये सीख मिलती है कि वो गौतम गंभीर जैसे सितारों को पार्टी में शामिल न करे जिस भाजपा को फायदा हो न हो पर नुकसान अवश्य हो रहा है या यूं कहें ये पार्टी के लिए बोझ बन जाते हैं।

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