‘IB Officer और मासूमों को हिंदुओं ने मारा’- BBC समेत कई पश्चिमी मीडिया ने फिर फैलाया फेक न्यूज

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इन दिनों सीएए विरोध के नाम पर जिस तरह से दंगाइयों को हिंसा फैलाने के लिए भड़काया जा रहा है, और दिल्ली को जंग के मैदान में बदला जा रहा है, उससे साफ है कि अपना राजनीतिक हित साधने के लिए कुछ लोग निर्दोषों की बलि चढ़ाने तक को तैयार हैं। परंतु अंतर्राष्ट्रीय मीडिया की मानें, तो इस दंगे में सबसे अधिक नुकसान जिस समुदाय को हुआ है, वही इसकी दोषी भी है। वॉल स्ट्रीट जर्नल के अनुसार, आईबी के कर्मचारी अंकित शर्मा की हत्या इस्लामी कट्टरपंथियों ने नहीं की है, बल्कि ‘जय श्री राम’ का नारा लगाने वाली हिंदुवादी भीड़ ने की है।

परंतु अंतर्राष्ट्रीय मीडिया इस दंगे में भी हिंदुओं को ही दंगाई बनाने पर तुला हुआ है। ‘भारत की सत्ताधारी पार्टी को दिल्ली की हिंसा के लिए लताड़ा गया’ शीर्षक से प्रकाशित वॉल स्ट्रीट जर्नल के एक लेख में मृतक अंकित शर्मा के भाई से बातचीत करने का दावा किया गया, जिसमें ये बताया गया कि कैसे हिंदुवादी भीड़ ‘जय श्री राम’ के नारे लगाते हुए अंकित को घसीटते हुए ले गए और फिर उसकी हत्या कर दी। वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट के एक extract के अनुसार, “वे तलवार, लाठी, चाकू और पत्थरों से लैस थे, वे ‘जय श्री राम’ के नारे लगा रहे थे, और कुछ तो हेलमेट भी पहने थे”।

इतना सफ़ेद झूठ बोलना तो कोई वॉल स्ट्रीट जर्नल से सीखे। अंकित शर्मा के भाई ने मीडिया को कई इंटरव्यू दिए, जिसमें उन्होंने हर बार आम आदमी पार्टी के पार्षद ताहिर हुसैन और उसके दंगाई समर्थकों का नाम लिया, पर एक बार भी उन्होंने दंगाइयों द्वारा ‘जय श्री राम’ का उल्लेख नहीं किया। मीडिया रिपोर्ट्स और बाद में पुलिस जांच पड़ताल में ये सिद्ध हुआ कि ताहिर हुसैन ने खजूरी खास क्षेत्र में दंगे भड़काए थे, और उसके घर से भारी मात्रा में पेट्रोल बम, तेजाब बम, पत्थर, ईंटे इत्यादि बरामद हुए थे।

राहुल पंडिता जैसे वामपंथी पत्रकार तक को स्वीकारना पड़ा कि अंकित शर्मा की हत्या में इस्लामी कट्टरपंथ का हाथ हो सकता है, परंतु वॉल स्ट्रीट जर्नल के लिए तो सिर्फ ‘एजेंडा ऊंचा रहे हमारा’ ही है।

लिहाजा, वॉल स्ट्रीट जर्नल के इस आपत्तिजनक लेख के लिए उसे भारतीय नागरिकों के आक्रोश का सामना करना पड़ा। अखिलेश मिश्रा नामक ट्विटर यूजर ने ट्वीट किया, “अजब है! WSJ कहती है कि अंकित शर्मा के भाई के अनुसार हिंदुवादी भीड़ ने अंकित की हत्या की है। जबकि भारतीय मीडिया पर अंकित इसके ठीक उलट कह रहे हैं कि ताहिर हुसैन और उसके गुंडों ने अंकित की हत्या की है। ऐसी फेक न्यूज़ अच्छे अच्छों को बौखलाने पर मजबूर कर दे”।

परंतु यह पक्षपात केवल वॉल स्ट्रीट जर्नल तक ही सीमित नहीं रही। यूएस कमेटी ऑन इंटरनेशनल रिलीजियस फ़्रीडम [USCIRF] ने भी दिल्ली के दंगों के लिए दिल्ली पुलिस और हिंदुओं को दोषी ठहराते हुए ट्वीट किया, “सरकार दंगों को रोकने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठा रही है और दिल्ली पुलिस खुद मुसलमानों पर हमला करने वालों का सहयोग कर रही है”।

हालांकि इस बयान के लिए विदेश मंत्रालय ने USCIRF को आड़े हाथों भी लिया है। इसे भ्रामक और भड़काऊ बताते हुए विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने कहा,मैंने यूएससीआईआरएफ, मीडिया के कुछ वर्गों और कुछ अन्य लोगों द्वारा की गई टिप्पणियों को देखा है। ये टिप्पणियां तथ्यात्मक तौर पर पूरी तरह गलत और गुमराह करने वाली हैं और मुद्दे का राजनीतिकरण करने के मकसद से की गयी हैं। हमारी कानून-व्यवस्था बनाये रखने वाली एजेंसियां प्रभावित इलाकों में हिंसा को रोकने और भरोसा एवं सामान्य स्थिति बहाल करने के लिए काम कर रही हैं।”

 

इसी प्रकार से भारतीय वामपंथियों के लिए रोजगार संगठन माने जाने वाले न्यूज पोर्टल वॉशिंग्टन पोस्ट ने भी दंगों के लिए हिंदुओं को दोषी ठहराने में कोई कसर नहीं छोड़ा। निष्पक्ष पत्रकारिता में वॉशिंग्टन पोस्ट वास्तव में कितना विश्वास करता है, यह आप इस लेख के शीर्षक से ही समझ सकते हैं।

अब बात अंतर्राष्ट्रीय मीडिया की चल रही है और बीबीसी के पक्षपाती कवरेज की बात न हो, ऐसा हो सकता है क्या? अक्सर भारत को नकारात्मक तरह से पेश करने वाली बीबीसी इस बार भी अपने पक्षपाती कवरेज से बाज़ नहीं आई, और एक ओर जहां वह भाजपा को एक तानाशाही सरकार की छवि देती नज़र आई, तो वहीं इसने पूर्वोत्तर दिल्ली में हुए दंगों का दोष भी हिंदुओं पर मढ़ दिया। विश्वास नहीं होता तो इन articles को देख लीजिए।

सच कहें तो अक्सर पश्चिमी मीडिया को भारत का उपहास उड़ाने का जिम्मा सौंपा गया है। अब ऐसे में यदि हमारे देश में एक शक्तिशाली प्रधानमंत्री की सशक्त सरकार हो, तो ये इन्हें प्रिय तो बिल्कुल नहीं लगेगा। ऐसे में किसी भी दुर्घटना पर इन इंटरनेशनल मीडिया पोर्टल्स के मुस्कान की चमक तो देखते ही बनती है, और शायद इसीलिए पश्चिमी मीडिया 2014 से ही भारत की ओर विशेष रूप से अपना ध्यान ज़्यादा केन्द्रित की हुई है। कभी-कभी तो भारत पश्चिमी मीडिया के लिए एक पंचिंग बैग भी बन जाता है। परंतु अब अंतर यह है कि अब हम भी उन्हें पलट कर जवाब देने लगे हैं, और वो भी एक जोशीले अंदाज़ में।

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