श्रीलंका, मालदीव और भारत: इन तीनों ने हिन्द महासागर में चीन को धूल चटाने की पूरी तैयारी कर ली है

महिंदा राजपक्षे

7 फरवरी से लेकर 11 फरवरी तक श्रीलंका के प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे भारत के दौरे पर रहने वाले हैं और उनके इस दौरे के बाद श्रीलंका और भारत के संबंध और मजबूत होने की उम्मीद है। जब से श्रीलंका में नई राजपक्षे सरकार बनी है, तभी से भारत सरकार ने श्रीलंका सरकार के साथ कई मौकों पर उच्च-स्तरीय वार्ता का आयोजन किया है। अब महिंदा राजपक्षे के दौरे के दौरान भारत, मालदीव और श्रीलंका पिछले पांच साल से बंद पड़ी तीनों देशों की NSA स्तर वार्ता को बहाल करने की दिशा में कदम उठा सकते हैं। वर्ष 2013 में जब मालदीव में अब्दुल्ला यामीन सरकार सत्ता में आई थी, तो यामीन सरकार के रवैये की वजह से NSA स्तर की यह वार्ता बंद कर दी गयी थी, अब मालदीव भी दोबारा इस वार्ता शुरू करने के पक्ष में है। दक्षिण एशिया में बढ़ रहे चीन के प्रभाव को कम करने की दिशा में यह अहम कदम साबित हो सकता है।

NSA स्तर वार्ता को बहाल करने के साथ-साथ महिंदा राजपक्षे के दौरे के दौरान दोनों देशों के बीच पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए एयरलिंक की स्थापना करने पर भी सहमति बन सकती है। महिंदा राजपक्षे भारत में अपना 5 दिवसीय लंबा दौरा ऐसे समय में कर रहे हैं जब चीनी नेवी लगातार भारत के इकनोमिक ज़ोन में घुसपैठ करने की कोशिश कर रही है। इसके अलावा मालदीव और हिन्द महासागर के अन्य देश भी चीन की तानाशाही के शिकार होते रहते हैं। अगर भारत-श्रीलंका और मालदीव NSA स्तर की वार्ता को बहाल करते हैं तो ना सिर्फ इससे दक्षिण एशिया में मैरिटाइम सुरक्षा को बढ़ावा मिलेगा बल्कि चीन को भी इससे एक कड़ा संदेश जाएगा।

श्रीलंका में पिछले वर्ष हुए ईस्टर बम धमाकों के बाद से ही आतंक के खिलाफ श्रीलंकाई सरकार का रुख बेहद सख्त है और उसे उम्मीद है कि आतंक के खिलाफ इस लड़ाई में उसे भारत का साथ मिलेगा। इसके अलावा आज ही भारत में मौजूद मालदीव के राजदूत ने भी कहा कि वे श्रीलंका और भारत के साथ त्रिपक्षीय वार्ता का समर्थन करते हैं। जिस प्रकार मालदीव और श्रीलंका भारत के साथ अपने रिश्तों को प्राथमिकता दे रहे हैं, उससे एक बात तो स्पष्ट है कि दक्षिण एशिया में चीन की कूटनीति का मुक़ाबला भारत ने बड़ी ही उन्नत रणनीति के साथ किया है।

अब्दुल्ला यामीन की सरकार के समय जहां मालदीव चीन के ही एक अन्य प्रांत की तरह बर्ताव कर रहा था, तो वहीं जब श्रीलंका में राजपक्षे बंधुओं की सरकार बनी थी, तो भी कहा जाने लगा था कि अब भारत के लिए नई मुश्किलें खड़ी हो सकती है। हालांकि, अब स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि इन दोनों ही चुनौतियों से भारत सरकार ने बखूबी मुक़ाबला किया और आज ये दोनों देश भारत सरकार के साथ अपने रिश्तों को मजबूत करने के प्रयास करने में लगे हैं।

Exit mobile version