5 अगस्त को अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद अब जम्मू-कश्मीर का राजनीतिक नक्शा बदलने वाला है क्योंकी राज्य सरकार परिसीमन प्रक्रिया पर तेजी से काम कर रही है। दरअसल, जम्मू कश्मीर में जल्द ही उपचुनाव से पहले ही केंद्रीय चुनाव आयोग ने परिसीमन आयोग के लिए सुशील चंद्रा को अपना प्रतिनिधि घोषित किया है और अब इस दिशा में कार्य तेजी से होने की उम्मीद है। चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने यह फैसला परिसीमन आयोग के संबंध में विधायी मामलों के अनुरोध के बाद लिया है।
Consequent upon the request of Ministry of Legislative Affairs concerning Delimitation Commission, Chief Election Commissioner Sunil Arora has nominated Sushil Chandra as his nominee to the proposed delimitation commission for Jammu and Kashmir.
— ANI (@ANI) February 17, 2020
बता दें कि कि जम्मू कश्मीर राज्य का पुनर्गठन हुआ है और अब राज्य में विधानसभा के गठन से पहले परिसीमन का कार्य पूरा करने के प्रयास जारी हैं। परिसीमन प्रक्रिया के तहत देश की लोकसभा और राज्यसभा निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं को तय किया जाता है। भाजपा का यह शुरू से ही मानना रहा है कि जम्मू-कश्मीर विधानसभा में जम्मू की हिस्सेदारी बढ़नी चाहिए। माना जा रहा है कि नए सिरे से परिसीमन के बाद जम्मू के खाते में पहले से ज़्यादा सीटें आ सकती हैं। गृह मंत्रालय इसपर काफी समय से काम कर रहा है यदि परिसीमन की प्रक्रिया सफल होती है, तो इसका सीधा सीधा मतलब है कि हम आने वाले समय में जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री के तौर पर एक हिन्दू, विशेषकर एक कश्मीरी पंडित को भी देख सकते हैं।
जम्मू कश्मीर में आखिरी बार 1995 में परिसीमन किया गया था, जब गवर्नर जगमोहन के आदेश पर जम्मू-कश्मीर में 87 सीटों का गठन किया गया था इनमें से चार सीटें लद्दाख की थीं। इस तरह से जम्मू-कश्मीर विधानसभा लद्दाख को मिलाकर में कुल 111 सीटें थीं, लेकिन 24 सीटों को रिक्त रखा गया । राज्य के संविधान के सेक्शन 48 के मुताबिक इन 24 सीटों को पाक अधिकृत कश्मीर के लिए खाली छोड़ गया है और बाकी बची 87 सीटों पर ही चुनाव होता था।
संविधान के मुताबिक हर 10 साल के बाद निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन किया जाना चाहिए लेकिन सरकारें ज़रूरत के हिसाब से परिसीमन करती हैं। जम्मू-कश्मीर में सीटों का परिसीमन 2005 में किया जाना था लेकिन फारुक अब्दुल्ला सरकार ने 2002 में इस पर 2026 तक के लिए रोक लगा दी थी। अब्दुल्ला सरकार ने जम्मू-कश्मीर जनप्रतिनिधित्व कानून 1957 और जम्मू-कश्मीर के संविधान में बदलाव करते हुए यह फैसला लिया था।
वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक कश्मीर में राज्य की लगभग 55 प्रतिशत जनसंख्या रहती है जबकि जम्मू में राज्य की लगभग 43 प्रतिशत आबादी रहती है। बता दें कि अभी जिन 87 विधानसभा सीटों पर चुनाव होते थे, उनमें से 46 सीटें कश्मीर के हिस्से में आती हैं जबकि जम्मू के हिस्से में सिर्फ 37 सीटें आती हैं। इसके अलावा लद्दाख क्षेत्र में 4 विधानसभा सीटें आती है। चूंकि अब लद्दाख अलग हो चुका है तो कुल सीटें 83+ 24 = 107 हो गयी हैं। वहीं, परिसीमन राज्य में 7 सीटें बढ़ेंगी और इनकी संख्या मिलाकर 114 हो जाएँगी। जाहिर है कि परिसीमन के बाद राज्य की राजनीतिक समीकरणों में बड़ा बदलाव आएगा।
राज्य के मुस्लिमों के ठेकेदार बन चुके टुकड़े-टुकड़े गैंग के सदस्यों के लिए यह किसी बुरे सपने से कम नहीं होगा। यह टुकड़े-टुकड़े गैंग अपनी राजनीतिक शक्ति का इस्तेमाल कर शुरू से ही राज्य में अपना एजेंडा आगे बढ़ाते आया हैं। पहले ही राज्य में अनुच्छेद 370 के हटाए जाने से महबूबा मुफ़्ती और अब्दुल्ला जैसे राजनेताओं का राजनीतिक वर्चस्व लगभग खत्म हो गया है और अब परिसीमन से राज्य के लोगों को मुख्यधारा में आने का एक सुनहरा अवसर मिलेगा जिससे राष्ट्रवादी शक्तियां और भी ज्यादा मजबूत होंगी।