मध्य प्रदेश कांग्रेस में मुख्यमंत्री कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच जारी घमासान का तो सबको पता ही है, अब लगता है कि इस विवाद में कांग्रेस के केंद्रीय हाईकमान की भी एंट्री हो चुकी है जिसके बाद कांग्रेस में ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए मुश्किलें और बढ़ सकती हैं। दरअसल, अब की बार विवाद राज्यसभा की सीटों को लेकर हुआ है। 9 अप्रैल को राज्यसभा की तीन सीटें खाली होने वाली हैं जिनमें से दो सीटें कांग्रेस के पास जाएंगी, तो वहीं 1 सीट भाजपा के पास जाना तय है। पहले ये कयासें लगाई जा रही थी कि इन दो सीटों से राज्य के पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया राज्यसभा से सांसद चुने जा सकते हैं, लेकिन अब यह भी खबरें आ रही हैं कि खुद प्रियंका वाड्रा इनमें से एक सीट पर राज्यसभा से सांसद चुनी जाएंगी। ऐसे में अब सिंधिया या दिग्विजय में से किसी एक का पत्ता कटना तय माना जा रहा है। खबरों की माने तो सिंधिया को ही बलि का बकरा बनाया जा सकता है, और अगर ऐसा होता है, तो मध्य प्रदेश कांग्रेस में जल्द ही बगावत देखने को मिल सकती है।
मध्य प्रदेश कांग्रेस की सबसे बड़ी समस्या यह है कि यहाँ एक से ज़्यादा power centers मौजूद हैं। कांग्रेस का एक खेमा ऐसा है जो ज्योतिरादित्य सिंधिया को फॉलो करता है, तो वहीं सीएम कमलनाथ और दिग्विजय सिंह का अलग खेमा दिखाई देता है। यही कारण है कि पिछले कुछ महीनों से सिंधिया और कमलनाथ के बीच तल्खी बढ़ती दिखाई दे रही है। हाल ही में यह तल्खी तब उजागर हुई जब एक तरफ सिंधिया ने कमलनाथ के खिलाफ सड़क पर उतरने की धमकी दे डाली तो वहीं कमलनाथ ने भी उन्हें ऐसा करने की चेतावनी दे दी। सिंधिया के बागी तेवर तब भी देखने को मिले थे, जब सिंधिया ने बीते शनिवार को राज्य कांग्रेस की बैठक को समय से पहले ही छोड़ दिया। माना जा रहा था कि सिंधिया नाराज़ होकर बैठक से निकले थे। अब राज्यसभा से सांसद चुने जाने में अड़ंगा अड़ने से सिंधिया की नाराजगी और बढ़ सकती है।
कमलनाथ और दिग्विजय सिंह कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में गिने जाते हैं जो हमेशा से ही गांधी परिवार की चाटुकारिता करते आये हैं। ऐसे में दोनों ही गांधी परिवार के करीबी माने जाते हैं, वहीं ज्योतिरादित्य सिंधिया कई बार खुलकर पार्टी के हाइकमान के खिलाफ बोल चुके हैं। कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के मुद्दे पर उन्होंने पार्टी के हाइकमान के खिलाफ जाकर बयान दिया था। हालांकि, कांग्रेस पार्टी भी खुलकर सिंधिया के खिलाफ एक्शन नहीं ले सकती है क्योंकि वे गुना में बेहद लोकप्रिय हैं, जहां से वे लोकसभा सांसद भी रह चुके हैं। इतना ही नहीं, मध्य प्रदेश कांग्रेस में उनका अच्छा खासा प्रभाव है।
पिछले वर्ष से वे अपने इस प्रभाव को और ज़्यादा बढ़ाने पर काम कर रहे हैं। सिंधिया आमतौर पर ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में ही ज्यादा सक्रिय हुआ करते थे, मगर अब उनकी सक्रियता राज्य के अन्य हिस्सों में भी बढ़ने लगी है। इतना ही नहीं वह उन नेताओं से भी मेल-मुलाकात करने लगे हैं, जिनसे उनकी दूरी जगजाहिर रही है, जिनमें राज्य के सहकारिता मंत्री डॉ. गोविंद सिंह का नाम भी शामिल है। इन्हें दिग्विजय सिंह के करीबियों में गिना जाता है।
जिस तरह कमलनाथ और सिंधिया के बीच दूरियाँ बढ़ती जा रही हैं, ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि सिंधिया को किनारे करने की यह योजना कमलनाथ और दिग्विजय ने मिलकर ही बनाई होगी। दिग्विजय का तो वैसे भी राज्यसभा में सांसद चुना जाना तय है, अब ज्योतिरादित्य सिंधिया की जगह ये पार्टी प्रियंका वाड्रा को मैदान में उतारेंगे तो ज्योतिरादित्य सिंधिया कुछ भी नहीं कह सकेंगे। स्पष्ट है सिंधिया की बजाय प्रियंका वाड्रा के चुने जाने पर सिंधिया के समर्थक भी कोई आपत्ति नहीं जताएंगे और इस तरह सिंधिया को किनारे की कांग्रेस पार्टी की योजना भी सफल हो जाएगी। ऐसे में अपनी भड़ास निकालने के लिए सिंधिया कोई बड़ा पार्टी विरोधी कदम भी उठा सकते हैं और ऐसा भी हो सकता है कि वे अपने समर्थकों के साथ अपनी अलग पार्टी का गठन भी कर सकते हैं।