हिन्दू नेता कमलेश तिवारी की हत्या के कुछ ही महीनों बाद एक अन्य हिन्दू नेता को भी मौत के घाट उतार दिया गया। विश्व हिन्दू महासभा के अध्यक्ष रंजीत बच्चन को अज्ञात बंदूकधारियों ने लखनऊ में गोलियों से भून दिया गया । क्राइम ब्रांच सहित उत्तर प्रदेश पुलिस की छह टीमों ने इस मामले की जांच पड़ताल शुरू कर दी है।
यह घटना लखनऊ के हजरतगंज क्षेत्र में ग्लोब पार्क के पास हुई। सीडीआरआई बिल्डिंग के पास मॉर्निंग वॉक के लिए निकले बच्चन को बाइक सवार बंदूकधारी सिर पर कई वार करते हुए वहाँ से भाग निकले। अपने भाई को बचाने के लिए बच्चन के भाई घायल हो गए, और उनका अभी अस्पताल में उपचार किया जा रहा है। हिन्दू महासभा से संबन्धित होने से पहले रणजीत बच्चन समाजवादी पार्टी के सदस्य हुआ करते थे, और उन्हे यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के साथ अक्सर देखा जाता था।
सेंट्रल लखनऊ के डीसीपी दिनेश सिंह के अनुसार, “मृतक की पहचान रणजीत बच्चन के तौर पर हुई है। वे मॉर्निंग वॉक पे निकले थे जब कुछ अज्ञात हमलावरों ने उन्हे गोली मार दी। एक पुलिस टीम का गठन हुआ है और जांच पड़ताल की जाएगी”। सुबह सुबह हुई इस गोलीबारी से हजरतगंज क्षेत्र में काफी तनाव है।
ऐसे ही कुछ महीनों पहले हिन्दू समाज पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व हिन्दू महासभा नेता कमलेश तिवारी को निर्ममता से मौत के घाट उतारा गया था। टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार कमलेश तिवारी को लखनऊ के नाका हिंडोला में स्थित उनके खुर्शीदबाग वाले मकान में मारा गया था। ये घटना तब हुई थी जब उनकी सुरक्षा में लगे पुलिस कांस्टेबल या तो ड्यूटी पर नहीं थे, या फिर सोये हुए थे।
पुलिस के अनुसार दो हमलावर पहले कमलेश तिवारी के घर में घुसे, फिर उनका गला रेता और उन्हे चाकू घोंपकर और कुछ गोलियां चलाकर वे बाहर निकल आए। हमलावर अपने नेता को उनकी समाजसेवा के लिए उपहार देने के बहाने आए थे।
जिस तरह उपद्रवियों ने सीएए के विरोध के नाम पर राज्य में आगजनी और हिंसा की थी, उससे स्पष्ट था कि उनकी विचारधारा कितनी विषैली है। कमलेश तिवारी और रंजीत बच्चन जैसे नेताओं की हत्या इस बात को सिद्ध करती है कि सीएए के विरोध पर हो रहे प्रदर्शनों ने कितना भयावह रूप धारण किया है। हिंसा भड़काने में सिमी, रिहाई मंच और पीएफ़आई के सदस्यों ने काफी अहम भूमिका निभाई है।
सीएए के विरोध के नाम पर हिंसा भड़काने वाले लोगों के विरुद्ध कार्रवाई करते हुए लखनऊ के एसएसपी कलानिधि नैथानी ने बताया कि किस प्रकार से पीएफ़आई के सदस्य शहर भर में सभाएं करा कर लोगों को भड़का रहा थे, और उनके विरुद्ध अकाट्य साक्ष्य मिले हैं। उनके अनुसार, “पीएफ़आई ने पर्चे, प्लाकार्ड और अन्य कई आपत्तिजनक वस्तुएँ बँटवाई, जिससे अराजकता का माहौल बन सके”। इस बात की पुष्टि करते हुए जनवरी में दिल्ली पुलिस ने तीन व्यक्तियों को गिरफ्तार किया, जो आईएसआईएस से प्रेरित होकर एनसीआर क्षेत्र और उत्तर प्रदेश में आतंकी हमले करना चाहते थे। दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल द्वारा हिरासत में लिए गए ये आतंकी एक हिन्दू नेता की हत्या में भी शामिल थे।
यूपी में जिस तरह से सीएए के विरोध के नाम पर हिंसक प्रदर्शन हुए हैं, उससे स्पष्ट होता है कि वे किस तरह से हिन्दू धर्म के विरुद्ध केन्द्रित हैं। इसमें भ्रामक खबरों और अफवाहों का भी बहुत बड़ा हाथ है, जिसे फैलाने में वामपंथी मीडिया ने कोई कसर नहीं छोड़ी है। कुरान की आयतें पढ़ लोगों को भड़काना इस बात को पूरी तरह सिद्ध भी करता है। लखनऊ में तो इस तरह के हिंसक प्रदर्शन सबसे ज़्यादा देखें गए हैं, और यहीं पर सबसे ज़्यादा दिनों तक सरकार को धारा 144 का उपयोग करना पड़ा था। हिंसक भीड़ ने आम जनता से लेकर, पुलिस कर्मचारियों और मीडिया तक पर हमले किए।
योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में यूपी पुलिस ने इन दंगाइयों को बेनकाब करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। परंतु जिस तरह से सीएए के विरोध के नाम पर हिन्दू संप्रदाय पर हमले किए जा रहे हैं और उनके राजनैतिक प्रतिनिधियों को मृत्युलोक भेजा है, उसपर भी पुलिस को अवश्य ध्यान देना चाहिए और इसे नियंत्रण में लाना चाहिए।