ममता बनर्जी शासित पश्चिम बंगाल में किस तरह से हिंदुओं और संविधान की धज्जियां उड़ाई जाती हैं उसका एक और नमूना कल यानि रविवार को देखने को मिला, जब 44वें अंतरराष्ट्रीय कोलकाता पुस्तक मेले के दौरान विश्व हिन्दू परिषद के कार्यकर्ताओं को ‘हनुमान चालीसा’ बांटने से रोका गया।
कहने को तो ममता बनर्जी रोज ही सेकुलरिजम और संविधान का रोना रोती रहती हैं लेकिन संविधान की धज्जियां उन्हीं की देख रेख में उड़ाई जाती है। दरअसल, रविवार को 44वें अंतरराष्ट्रीय कोलकाता पुस्तक मेले के दौरान पुलिस ने विहिप के कार्यकर्ताओं को हनुमान चालीसा बांटने से रोका, जिसके बाद दोनों पक्षों के बीच विवाद हो गया। बता दें कि रविवार को कोलकाता पुस्तक मेले का अंतिम दिन था। पुलिस ने अपने इस कार्रवाई पर सफाई देते हुए कहा कि उन्होंने धार्मिक किताब बांटने पर इसलिए ऐतराज जताया कि इससे आगुंतक भावावेश में आ सकते हैं जिससे कानून एवं व्यवस्था की स्थिति में समस्या उत्पन्न हो सकती है।
ये क्या बात हुई? हनुमान चालीसा बांटने से कानून एवं व्यवस्था को समस्या कैसे हो सकती है? ये तानाशाही सिर्फ ममता बनर्जी के इशारों पर काम करने वाली पश्चिम बंगाल की पुलिस ही कर सकती है। पुलिस के इस रुख से मामला बढ़ गया और विहिप के कार्यकर्ताओं ने विरोध प्रदर्शन करना शूरू कर दिया जिसके बाद पुलिस थोड़ी नरम हुई और फिर से हनुमान चालिसा बांटने दिया गया।
विहिप सदस्य स्वरूप चटर्जी ने पीटीआई से कहा कि, “शुरू में तनाव था, लेकिन जब हमने जानना चाहा कि हनुमान चालीसा क्यों नहीं वितरित की जा सकती है, जबकि अन्य संगठन कुरान और बाइबिल बांट सकते हैं। इसके बाद पुलिस ने अपना रुख नरम किया और हमने पुस्तक बांटना जारी किया।”
हालांकि यह पहला मौका नहीं है जब ममता बनर्जी के कार्यकाल में इस तरह से हिंदुओं के बर्ताव किया गया हो। जब से ममता बनर्जी सत्ता में आईं हैं तब से ही वे मुस्लिम तुष्टीकरण में लगी हुई हैं। वर्ष 2016 में पश्चिम बंगाल में हुए धूलागढ़ के दंगों के बाद से हिंदुओं के खिलाफ अत्याचार बढ़ते चले गए। हद तो तब हो गयी जब ममता बनर्जी ने इस दंगे के लिए आरएसएस और भाजपा पर ही आरोप मढ़ना शुरू कर दिया था। रही सही कसर बसीरहट में हुए दंगों ने पूरी कर दी।
ये वही ममता बनर्जी हैं जिन्होंने पिछले साल जब दुर्गा मूर्ति विसर्जन और मुहर्रम एक ही दिन पड़े थे तब दुर्गा मूर्ति विसर्जन पर रोक लगा दी थीं। ऐसा करके उन्होंने हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं को आहत किया था। ममता ने अपने फैसले के पीछे बेतुका कारण दिया और कहा था, “दोनों पर्व के चलते दो समुदायों में विवाद या झगड़ा न हो इसलिए ये फैसला लिया है।” इसी ममता सरकार ने हिन्दू जागरण मंच को हनुमान जयंती पर जुलूस निकालने पर भी रोक लगा दी थीं और जब 11 अप्रैल, 2017 को पश्चिम बंगाल में बीरभूम जिले के सिवड़ी में हनुमान जयंती पर जुलूस निकाला गया तो पुलिस द्वारा उन पर लाठीचार्ज करवाया गया था।
उसके बाद 2018 में रामनवमी के उत्सव पर खलल डालकर जिस तरह ममता सरकार ने अल्पसंख्यकों के तुष्टीकरण के लिए बेतुका प्रयास किया वह किसी से छुपा नहीं है। ये वही ममता बनर्जी हैं जिन्होंने तारकेश्वर विकास बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में एक मुस्लिम को बैठा चुकी हैं।
अब इस तरह से हनुमान चालीसा के वितरण पर रोक लगाकर ममता बनर्जी ने जाहिर कर दिया है कि वह किस तरह की राजनीति करती हैं। सच कहें तो ममता बनर्जी के अंदर हिंदुओं के लिए सिर्फ नफरत रही है और समय समय पर उनकी राजनीति से ये नफरत सामने भी आई है।