हिंदुस्तान यूनीलीवर लिमिटिड, वर्ष 1933 में स्थापित हुई यह कंपनी आज़ाद भारत से भी 14 वर्ष पुरानी है। शायद ही भारत में कोई ऐसा घर हो, जहां कभी HUL का उत्पाद न पहुंचा हो। 20 से ज्यादा श्रेणियों में 35 से ज़्यादा ब्रांड्स के साथ HUL भारतीय बाज़ार का राजा है। आज के consumer oriented बाज़ार में सभी कंपनियों के लिए यह ज़रूरी हो गया है कि वे अपने सभी ग्राहकों के साथ एक सकारात्मक संवाद स्थापित करें। कंपनियां जो भी बनाती है, जो भी करती हैं या जो भी वे बेचती हैं, उससे ग्राहकों और उस कंपनी के बीच का रिश्ता तय होता है। अब देखते हैं कि HUL इन मापदण्डों पर कहाँ खड़ा है।
अगर बाते करें फेयर एंड लवली, डव, लक्स, लिरिल और लाइफबॉय जैसे ब्राण्ड्स की, तो इनके विज्ञापनों से आप अच्छी तरह परिचित होंगे ही। इन विज्ञापनों के जरिये भी कंपनी आप के साथ संवाद करने की कोशिश करती है। HUL देश में विज्ञापनों पर खर्च करने वाली सबसे बड़ी कंपनियों में से एक है। लेकिन समस्या यह है कि एचयूएल देश में सबसे असंवेदनशील विज्ञापन बनाने के लिए बदनाम है। HUL देश में सबसे ज़्यादा महिला-विरोधी, हिन्दू-विरोधी, नस्लभेदी विज्ञापनों के लिए जाना जाता है।
वित्तीय वर्ष 2019 में HUL के कुल खर्चे 29 हज़ार करोड़ रुपए से ज़्यादा थे, जिसमें से 3500 करोड़ रुपये तो केवल विज्ञापनों पर खर्च किए गए थे। यानि कंपनी के कुल बजट का 10 प्रतिशत हिस्सा तो केवल एड्स पर खर्च किया जाता है, जबकि दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी अमेज़न भी भारत में विज्ञापन पर केवल 900 करोड़ ही खर्च करती है। और एड्स पर खर्च करने के मामले में वह HUL के बाद दूसरी सबसे बड़ी कंपनी है।
HUL का विज्ञापन बजट भारत की सबसे बड़ी कंपनी निजी reliance industries के विज्ञापन बजट के मुक़ाबले लगभग 5 गुना ज़्यादा है। इसके अलावा मारुति सुज़ुकी के विज्ञापन बजट से HUL का विज्ञापन बजट लगभग 2500 करोड़ रुपये ज़्यादा है। वर्ष 2019 में भारत की सभी कंपनियों ने discount को बढ़ाने के लिए एड्स पर खर्च करने वाले पैसे को कम किया, लेकिन इस दौरान HUL ने अपने विज्ञापन बजट में वृद्धि की। वर्ष 2019 के तीसरे क्वार्टर में एचयूएल के विज्ञापन बजट में 8 प्रतिशत की वृद्धि देखी गयी थी।
हालांकि, समय-समय पर एचयूएलपर नस्लभेदी, रंगभेदी और हिन्दू-विरोधी विज्ञापनों को बढ़ावा देने का आरोप लगता रहता है। फेयर एंड लवली एड को कौन अनदेखा कर सकता है जिसके जरिये HUL सालों से रंगभेद को बढ़ावा देता आया है।
इसके अलावा पिछले वर्ष कुम्भ मेले से जुड़े HUL के विज्ञापन में भी हमें हिंदू विरोध देखने को मिला था। हिंदुस्तान-यूनीलीवर ने अपने अधिकारिक ट्विटर हैंडल पर एक पोस्ट शेयर किया था जिसमें कुंभ मेले का जिक्र था। ये पोस्ट हिंदू विरोधी था जिसका मकसद कुंभ मेले को लेकर लोगों तक गलत संदेश भेजने का लग रहा था। इस पोस्ट में लिखा था, “कुंभ मेला एक ऐसी जगह है जहां लोग अपने बुजुर्ग अभिभावकों को छोड़ कर आते हैं। क्या ये दुखद नहीं है कि हम अपने बुजुर्गों की परवाह नहीं करते? रेड लेबल हमे ऐसे लोगों को प्रोत्साहित करता है कि वो ऐसे लोगों का हाथ थामें जिन्होंने हमें बनाया है। देखें ये दिल को छू लेने वाली वीडियो। एक कड़वा और आंखें खोल देने वाली सच्चाई।” ये पोस्ट इस कंपनी ने अपनी चाय “रेड-लेबल” के लिए के प्रचार के लिए लिखी थी जिसमें एक वीडियो भी शेयर किया गया था। इस वीडियो में एक व्यक्ति अपनो को इस तरह भीड़ में छोड़ आता है, जिसे देखकर ऐसा लगता है कि ये भारतीय समाज के लिए आम बात हो! इस वीडियो में कुंभ मेले को वो स्थान करार दिया था जहां “बुजुर्ग लोगों को छोड़ दिया जाता’ है।
इसके अलावा हिंदुस्तान यूनिलीवर ने गणेश महोत्सव के मौके पर अपने चाय के मशहूर ब्रांड ‘रेड लेबल’ के लिए एक विज्ञापन जारी किया था और इस विज्ञापन के जरिये हिंदुस्तान यूनिलीवर ने हिंदुओं को मुस्लिमों के साथ भेदभाव करने वाला बताया था। विज्ञापन के अनुसार गणेश महोत्सव के लिए भगवान गणेश की मूर्ति खरीदने एक शख्स एक दुकान पर जाता है और मूर्ति बनाने वाले शख्स को मुस्लिम देखकर वह असहज महसूस करता है। इसके बाद मुस्लिम मूर्तिकार उसे कहता है कि उसका हैरान होना बनता है लेकिन वह हिंदुओं के भगवानों की मूर्ति बनाकर भी अपनी इबादत ही कर रहा होता है। इतना सुनकर वह शख्स मूर्तिकार से प्रभावित हो जाता है और उससे मूर्ति लेने के लिए तैयार हो जाता है।
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इतना ही नहीं, पिछले वर्ष HUL ने होली पर भी एक विवादित विज्ञापन को जारी किया था। अपने ब्रांड का प्रचार करने के लिए होली से पहले सर्फ एक्सेल ने एक वीडियो एड जारी किया था, जिसमें एक बच्ची दूसरे धर्म के बच्चे को रंगों से बचाकर उसके धार्मिक स्थल तक ले जाती है, इसके बदले में वह बच्चा, उसे धन्यवाद कहता है। तब भी HUL का बहुत विरोध देखने को मिला था।
एचयूएल भारत की सबसे बड़ी FMCG कंपनियों में से एक है जिसका सालाना रिवेन्यू 34 हज़ार करोड़ रुपये है। HUL अपने बड़े बजट विज्ञापन के साथ बड़ी संख्या तक लोगों तक पहुंच पाता है, ऐसे में इन ब्रांड की एड्स भारतीय समाज में गलत संदेश पहुंचाती है। समाज में इस तरह गलत संदेश जाने से रोकने के लिए भारत सरकार को कड़े कदम उठाने ही चाहिए।