मतलब रुला दिया! रूबिका लियाक़त ने 3 मिनट में NRC पर ज्ञान झाड़ रही स्वरा की बखिया उधेड़ दी

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इस दुनिया में कुछ भी हो सकता है, पर स्वरा भास्कर लॉजिकल बात करें, न बाबा न! दुनिया में सब कुछ बदल सकता है, आसमान से आग बरस सकती है, व्यक्ति पानी पर चल सकता है, सूर्य पूर्व दिशा के बजाए पश्चिम दिशा से उग सकता है, पर मजाल है कि कोई बैठक में स्वरा भास्कर शामिल हों, और वो कॉमन सेंस और लॉजिक का सम्मान करें। सीएए-एनआरसी के मुद्दे को एक बार फिर हवा देते हुए मोहतरमा ने न सिर्फ अपने आधे-अधूरे ज्ञान का परिचय दिया है, बल्कि ये भी सिद्ध किया, कि राहुल गांधी अपने तरह के इकलौते जीव-जन्तु नहीं हैं भईया!

एबीपी न्यूज़ द्वारा आयोजित एक कॉन्फ्रेंस में सीएए और एनआरसी पर चर्चा के लिए कई मोर्चों से अलग-अलग लोगों  को आमंत्रित किया गया था, जिसमें सीएए विरोधी गुट में सबसे मुखर रहने वाली स्वरा भास्कर, निर्देशक तिग्मांशु धूलिया और अभिनेता मुहम्मद जीशान अयूब शामिल थे। कॉन्फ्रेंस का संचालन एबीपी न्यूज की चर्चित पत्रकार रूबिका लियाकत कर रही थीं, और मुद्दा था कि क्या सीएए और एनआरसी के विरोध के पीछे कोई ठोस तर्क है?

इस पर स्वरा भास्कर से जब राय ली गयी, तो उन्होंने बड़ी उत्साह से सीएए और एनआरसी की भयावहता को दिखाते हुए कहा, “एनआरसी में इतने डरावने प्रोविज़न हैं, जिससे हर गरीब नागरिक जिसके पास कागजात नहीं हैं, उनकी नागरिकता और जान खतरे में है”। इस पर जब रूबिका ने पूछा कि एनआरसी का ड्राफ्ट कहाँ है, तो स्वरा जी कहती हैं, “आप सरकार से पूछिये, ये मेरा काम नहीं है”।

पता कुछ नहीं है, पर दीदी को ज्ञान ज़रूर देना है। सबसे पहले तो रूबिका लियाकत जी को 21 तोपों की सलामी, जो राहुल गांधी स्कूल ऑफ कॉमन सेन्स की इस गोल्ड मेडलिस्ट ग्रेजुएट की महान विचारों पर भी अपना संयम कायम रखा। उन्होंने अपना पक्ष यथावत रखते हुए पूछा कि स्वरा के पास ड्राफ्ट कहां है, जिस पर स्वरा बस गोलमोल उत्तर देती रहीं। जब जीशान और तिगमांशु से सवाल पूछा गया, तो वे भी बगलें झांकते दिखाई दिए।

पर भाई, ये तो बस शुरुआत थी। स्वरा भास्कर ने मानो प्रतिज्ञा की थी कि वे कॉमन सेंस और लॉजिक की बलि चढ़ाकर ही मानेंगी। जब रूबिका ने उन्हें घेरते हुए पूछा‘’जब 2010 में यूपीए के समय एनआरसी और एनपीआर को लेकर अहम फ़ैसले लिए गए थे, तब आपको दिक्कत क्यों नहीं हुई? 15 साल से बस यूं ही एक्टिविज़्म कर रही थीं?”, जिस पर स्वरा दीदी का कुछ यूं जवाब था, “2010 में मैं 15 साल की थी”।

अब जिसे भी स्वरा भास्कर के बारे में थोड़ा बहुत भी ज्ञान है, उसे ज्ञात होगा कि स्वरा भास्कर 1988 में पैदा हुई थी, और अभी वे 31 वर्ष की हैं। यदि वे 2010 में 15 वर्ष की होंगी, तो 10 वर्ष  में उनकी उम्र 16 वर्ष बढ़ी है। ऐसी मैथ्स पर हम सभी के मन मस्तिष्क से एक ही आवाज़ निकलती है – अरे भाई, मारो मुझे, मारो।

पर भाई ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब स्वरा भास्कर ने एक साथ कॉमन सेंस, लॉजिक और गणित की लंका लगाई हो। एनआरसी पर इससे पहले अपनी व्यथा व्यक्त करते हुए स्वरा भास्कर ने अपना ही पोपट बनाते हुए कहा, “डर तो लगेगा ही। मेरे पास तो कुछ है ही नहीं। मेरे पास कोई डिग्री नहीं है, मेरे पास बर्थ सर्टिफिकेट नहीं है, मेरे पास बाप-दादा के प्रॉपर्टी के कागज नहीं है। मेरा नाम एनआरसी से छूट गया तो?”

पर भईया बात यहीं पर रुके तो कोई बात हो। स्वरा भास्कर के अनुसार लॉं एंड ऑर्डर को संभालना पुलिस की ज़िम्मेदारी है, पर अगर पुलिस उपद्रवियों पर कड़ी कार्रवाई करती है, तो इन्हीं के अनुसार पुलिस को ऐसा नहीं करना चाहिए, वे निर्दोष बच्चों के विरुद्ध बदले की भावना से काम कर रहे हैं।

पर भाई, इसमें स्वरा जी की भी क्या गलती है? ‘वीरे दी वेडिंग’ के बाद से मोहतरमा को कोई ढंग का काम कहां मिला है। जिस भी फिल्म के लिए ऑडिशन देती हैं, भागा दी जाती हैं। जिन लोगों के लिए चुनाव प्रचार करने जाती हैं, सब बुरी तरह से हारते हैं। लिबरल कन्याओं के नेशनल क्रश कन्हैया कुमार को भी हरवाने में स्वरा दीदी का बहुत बड़ा रोल है। बेरोजगारी के चलते क्या क्या नहीं करना पड़ता स्वरा दीदी को!

बचपन में दादी माँ हमें एक कहानी सुनाया करती थीं कि एक व्यक्ति को इसलिए एक साम्राज्य ने तीस मार खान की पदवी दी थी, क्योंकि उसने तीस योद्धाओं को अकेले ही मार गिराया था। परंतु उसने तीस योद्धा नहीं, तीस मक्खियां अपने हाथ से मारी थी, और इसलिए उसका नाम तीस मार खान पड़ा। स्वरा भास्कर जैसे लोग यही तीस मार खान हैं, जिन्हें लाईमलाइट तो खूब मिल जाती है, पर इनके वास्तविक उपलब्धियों को बताने में कोई व्यक्ति भी अपना सिर खुजलाने पर मजबूर हो जाएगा।

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