हाल ही में रिलीज़ हुई शिकारा सुर्खियों में बनी हुई, परंतु गलत कारणों से। कहने को यह फिल्म कश्मीरी पंडितों की त्रासदी पर आधारित है, परंतु जिस तरह से इस फिल्म में कश्मीरी पंडितों के साथ हुए त्रासदी पर ज़रा भी ध्यान नहीं दिया गया, और उल्टे कश्मीर के कट्टरपंथियों को महिमामंडित करने का प्रयास किया गया है, उससे कई कश्मीरी पंडित क्रोधित हुए हैं और उन्होने सोशल मीडिया पर शिकारा को बॉयकॉट करने की मांग कर दी।
इसी बीच टाइम्स नाउ पर एक घटना को लेकर शिकारा के क्रू के कुछ सदस्य और कई अन्य कश्मीरी पंडितों के बीच काफी तीखी बहस हुई। दरअसल मुद्दा था शिकारा के एक प्राइवेट स्क्रीनिंग के दौरान एक कश्मीरी पंडित महिला के आक्रोश से भरे बयान पर, जहां उन्होने विधु विनोद चोपड़ा द्वारा कश्मीरी पंडितों के नरसंहार का उपहास उड़ाने की जमकर आलोचना की थी।
इस विषय पर जब चर्चित लेखक राहुल पंडिता [जो शिकारा की पटकथा के लेखक भी हैं] से जब पूछा गया कि आखिर शिकारा में आतंकियों का स्याह पक्ष क्यों नहीं दिखाया, तो उन्होने एक बेहद ही घटिया उत्तर देते हुए कहा, “एक परिपक्व और जिम्मेदार राइटर होने के नाते मैंने काफी धैर्य रखा और ऐसा कोई भी दृश्य नहीं लिखा, जिससे नफरत फैले और दो समुदायों के बीच हिंसा हो।”
As a responsible writer, journalist, I've shown remarkable restraint not to make the work lead to violence between 2 communities: @rahulpandita, Author tells Rahul Shivshankar on INDIA UPFRONT. | #ShikaraPeCharcha pic.twitter.com/ydIfsAMzvo
— TIMES NOW (@TimesNow) February 7, 2020
इससे पहले कि राहुल पंडिता के किसी भी बयान पर हम कोई भी प्रतिक्रिया डालें, आइये इनके बैकग्राउंड पर एक दृष्टि डालते हैं। राहुल पंडिता एक चर्चित लेखक हैं, जिन्होंने अपने समुदाय के साथ हुई त्रासदी पर एक बड़ी ही मार्मिक पुस्तक, ‘आवर मून हैस ब्लड क्लॉट्स’ लिखी है, जिसके कुछ अंशों पर ‘शिकारा’ भी आधारित है। इसके अलावा महोदय ने नक्सली गुटों पर एक पुस्तक ‘हेलो बस्तर’ भी लिखा है।
परंतु जिस तरह से राहुल पंडिता ने अपने ही समुदाय के साथ हुए त्रासदी को छुपाने का प्रयास किया, उससे स्पष्ट होता कि उनके लिए आज भी छद्म सेक्युलरिज़्म सर्वोपरि है, चाहे इसके लिए उन्हे अपने ही परिवार के दुख दर्द मिट्टी में क्यों न मिलाने पड़े। परंतु हम भूल रहे कि ये राहुल पंडिता है, जिनके लिए उनके समुदाय के साथ अन्याय बाद में आता है, और पहले आता है हिन्दुत्व के प्रति उसकी घृणा।
ये वही राहुल पंडिता है, जिनहे अनुच्छेद 370 का हटाया जाना केंद्र सरकार द्वारा उठाया गया एक अत्याचारी कदम लगता है, और जिनहे 2002 में हुए गुजराती दंगों में पलायन करने वाले उपद्रवी कश्मीरी पंडित जितने ही पीड़ित लगते हैं। सही ही कहा था एक ट्विटर यूजर ने, “जिसकी प्रोफाइल में ऐसे पोस्ट, वो कश्मीरी पंडितों के साथ भला क्या न्याय करेगा?” –
अब राहुल पंडिता को भी कहाँ तक दोष दें, जब एक प्राइवेट स्क्रीनिंग के दौरान निर्देशक विधु विनोद चोपड़ा ने ही एक कश्मीरी पंडित महिला की पीड़ा का भद्दा मज़ाक बनाया। जिस तरह से उसने उस महिला से वार्तालाप किया, उसे देख कोई भी व्यक्ति उबल पड़ेगा। इतना ही नहीं, जनाब तो ताली बजाने लगे और कहने लगे कि आपके लिए हम शिकारा 2 बनाएँगे।
विधु विनोद चोपड़ा द्वारा कश्मीरी पंडितों के नरसंहार पर उड़ाए गए मज़ाक को कैसे भूल सकते हैं। फिल्म के शुरुआती प्रोमोशन के दौरान ही इनहोने कहा था, “यह फिल्म हीलिंग के बारे में है, ये फिल्म साथ आने के बारे में है। यह फिल्म इस धारणा के बारे में है कि 30 साल से ज़्यादा हो चुके हैं, चलो माफ करें और आगे बढ़ें। यह कुछ ऐसा है कि जब दो दोस्तों के बीच एक छोटा झगड़ा होता है, और 30 साल बाद वे कहें कि छोड़ो इसे, एक दूसरे से माफी माँगकर गले मिलो।”
सच कहें तो राहुल पंडिता ने कश्मीरी पंडितों के साथ हुए नरसंहार का जिस तरह से शिकार में उपहास उड़ाया, उससे स्पष्ट पता चलता है कि यह लोग वास्तव में कश्मीरी पंडितों के कितने हितैषी है। जिस तरह से राहुल पंडिता ने वास्तविकता के साथ समझौता किया है, उसके लिए कोई भी आलोचना कम होगी, और इस बात में कोई संदेह नहीं है कि राहुल पंडिता कश्मीरी पंडितों के नाम पर कलंक है।