कुछ दिनों पहले मुंबई पुलिस ने Tata Institute of Social Sciences (TISS) के छात्र फहद अहमद को पूछताछ के लिए बुलाया था। मामला था शर्जील इमाम के समर्थन में मुंबई के आजाद मैदान में हुई नारेबाजी का। इस मामले में उर्वशी चुड़ावाल समेत 50 लोगों पर राजद्रोह का केस दर्ज किया गया था।
मुंबई का Tata Institute of Social Sciences (TISS) संसथान केंद्र सरकार द्वारा फंड किया जाता है। इन दिनों यहाँ जिस तरह की गतिविधियाँ देखने को मिल रही है उसे देखकर तो यही लग रहा है कि ये संस्थान आने वाले समय में दूसरा JNU बनने की राह पर है। यानि दूसरे शब्दों में कहे तो TISS मुंबई वामपंथियों का एक गढ़ बन चुका है जहां समय-समय पर देश विरोधी ताकतों को बढ़ावा मिलता है। जब से केंद्र की सत्ता में मोदी सरकार आई है तब से ही ऐसी ताकतों ने TISS जैसी संस्थानों में अपने अभियानों को तेज़ कर दिया है।
TISS की स्थापना 1936 में Sir Dorabji Tata Graduate School of Social Work के नाम से हुई थी। इसके बाद वर्ष 1944 में इसका नाम बदल कर Tata Institute of Social Sciences (TISS) कर दिया गया। वर्ष 1964 में इसे Deemed University का दर्जा मिला और अब इस संस्थान को केंद्रीय HRD मंत्रालय और टाटा ट्रस्ट दोनों से फंड मिलता है। धीरे-धीरे हैदराबाद और गुवाहाटी जैसे कई शहरों में इसके ब्रांच खुल गए।
जब से मोदी सरकार सत्ता में आई है तब से ही TISS के राजनीतिक कार्यकर्ता JNU के साथ ताल से ताल मिला रहे हैं और वे भी JNSU के इशारों पर ही काम कर रहे हैं। हाल के वर्षों में जिस तरह की घटनाएँ इस संस्थान में हुई हैं और जिस तरह के नारे लग रहे हैं उससे तो यही कहा जा सकता है कि TISS JNU के चचेरे भाई की तरह ही बर्ताव कर रहा है। बात चाहे academic output की हो या छात्रों की संख्या की हो या फिर political activities की सभी में यह संस्थान JNU की राह पर जाता दिखाई दे रहा है। आज-कल मीडिया ने भी इस संस्थान को JNU की तरह ही अपने सिर-आँखों पर बैठा लिया है।
इतिहास देखा जाए तो दिल्ली शुरू से ही नौकरशाही, शिक्षा, Political activism, Media activism और Civil Society activism का केंद्र रहा है। मुंबई इन सभी activism से दूर रहा है, हालांकि लेफ्ट लिबरल गैंग ने दिल्ली की तरह ही इस शहर को भी अपने पशोपेश में लेने की कोशिश की है लेकिन कभी सफल नहीं हो पाएँ हैं। अब Tata Institute of Social Sciences (TISS) के छात्रों को देख कर यह लग रहा है कि वे अपने एक्टिविज़्म से JNU के लेवल तक पहुंचने की कोशिश कर रहा है। जिस तरह के नारे इस संस्थान में लगाए जा रहे हैं और फिर छात्रों द्वारा उनका defend करना दिखाता है कि वे अब JNU की राह पर ही चल रहे हैं। मुम्बई के आज़ाद मैदान में एलजीबीटी प्राइड परेड के दौरान देशद्रोह के आरोपी शर्जील इमाम के समर्थन में नारेबाजी की गयी थी। उर्वशी चुड़ावाल समेत 50 लोगों को “शारजील तेरे सपनो को हम मंज़िल तक पहूंचायेंगे” जैसे नारे लगाने के लिए देशद्रोह का मामला दर्ज किया गया था।
बता दें कि शर्जील इमाम ने कहा था कि देश के पूर्वोत्तर भाग में चिकन नेक पर हमला कर पूर्वोतर को देश से अलग कर देना चाहिए। TISS में नारे लगने के बाद मुंबई पुलिस ने उर्वशी चूड़ावाला पर देशद्रोह का मामला दर्ज किया था। पुलिस उपायुक्त प्रणय अशोक ने बताया कि चूड़ावाला के अलावा 50 अन्य पर भी भारतीय दंड संहिता की धारा– 124 ए (देशद्रोह), 153 बी (राष्ट्रीय अखंडता के प्रति पूर्वाग्रहपूर्ण बयान), 505 (लोगों को उकसाने के लिए दिया गया बयान), 34 (साझा इरादा) के तहत मामला दर्ज किया गया है।
यही नहीं भाजपा नेता किरीट सोमैया ने मुंबई पुलिस को सबूत दिए हैं और दावा किया है कि मुंबई में हो रहे प्रदर्शनों के पीछे एक ग्रुप है जिसकी जमीन मुंबई के टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस में तैयार हो रही है।
किरीट सोमैया के मुताबिक उन्होंने आजाद मैदान पुलिस थाने को ऐसे सबूत मुहैया कराए जिससे यह साबित होता है कि यह नारे सुनियोजित तरीके से लगाए गए हैं। किरीट सोमैया ने आरोप लगाया कि टीआईएसएस (Tata Institute of Social Sciences) में अर्बन नक्सल का एक ग्रुप तैयार हो रहा है।
किरीट सोमैया के मुताबिक पिछले 30 दिनों में मुंबई में जो भी विरोध प्रदर्शन हुए हैं उनमें टीआईएसएस का यही ग्रुप शामिल रहा है। किरीट सोमैया ने बताया उन्होंने पुलिस को अगस्त क्रांति मैदान, गेटवे ऑफ इंडिया ,आजाद मैदान और वानखेड़े क्रिकेट स्टेडियम में भारत और ऑस्ट्रेलिया वनडे मैच के दौरान हुए प्रोटेस्ट के दौरान जो कुछ कॉमन लोग हैं जिनके कुछ फोटो और वीडियो पुलिस को दिए गए हैं और पुलिस से आग्रह किया है इन पर कार्रवाई की जाए।
इन सभी घटनाओं को देख कर यह कहा जा सकता है कि Tata Institute of Social Sciences छात्र संघ JNU छात्र संघ की नकल कर रहा है और वो JNU के चचेरे भाई बनना चाहते हैं। मुंबई में की जा रही यह राष्ट्र-विरोधी गतिविधियां मुंबई शहर और देश की भावना के खिलाफ हैं। मुंबई में तो कांग्रेस जैसे वामपंथी दल भी राष्ट्रवादी रुख अपनाते देखे जा सकते हैं क्योंकि उन्हें मुंबई में बसने वाले देशप्रेम के बारे में पता है। ऐसे में TISS में की जा रही यह कोशिश आने वाले समय में भी नाकाम ही रहेगी क्योंकि यह शहर देशविरोधी भावनाओं को नहीं बल्कि राष्ट्रवादी भावना को बढ़ावा देता है।