“विलेन मुसलमान नहीं होगा” जाने-अनजाने बॉलीवुड के हिन्दू-फोबिया को एक्सपोज कर गयी फ़राह खान

फराह खान: “मैं हूँ ना” से लेकर “मैं हिन्दूफोबिक हूँ ना” तक!

फराह खान

PC: Amar Ujala

फिल्म निर्देशक फराह खान एक बार फिर सुर्खियों में है, परंतु किसी फिल्म के लिए नहीं। इस बार फराह खान अपने एक बयान के कारण सुर्खियों में है, जिसने बॉलीवुड के हिन्दू विरोध की पोल खोल कर रख दी है। फराह खान ने फिल्म निर्देशक के तौर पर अपनी पहली फिल्म ‘मैं हूँ न’ के बारे में कुछ बातें साझा की, जहां उसने यह भी बताया कि कैसे उसने सुनिश्चित किया कि फिल्म में कोई मुस्लिम विलेन न हो।

एमेज़ोन के ऑडियो पोर्टल ‘औडिबल कलेक्टिव’ पर प्रसारित होने वाले पोडकास्ट ‘पिक्चर के पीछे’ पर बातचीत के दौरान फराह खान ने ये खुलासा किया। फराह के अनुसार, मैं हूं नाफिल्म बनाते समय मैंने यह बात सुनिश्चित की थी कि फिल्म का मुख्य विलेन मुसलमान न हो। जिस व्यक्ति को मैंने विलेन का दायां हाथ चुना उसका नाम खान था। इस व्यक्ति को अहसास होता है कि उसे पूरी जिंदगी गलत दिशा में चलने के लिए प्रेरित किया गया था और इस वजह से उसने अपने देश की जगह आतंकवाद को चुना”।

इतना ही नहीं, उन्होंने ये भी बताया कि कैसे एक मुस्लिम किरदार के जरिये उसकी देशभक्ति दिखाने की कोशिश की गयी है। फराह की मानें तो खान जो कि मुसलमान है वह फिल्म में मेजर राम प्रसाद शर्मा को जानकारी देकर खलनायक से नायक बन जाता है।

बता दें कि ‘मैं हूँ ना’ फराह खान द्वारा निर्देशित उनकी पहली फिल्म थी, जिसमें शाहरुख खान मुख्य भूमिका में थे, और सुनील शेट्टी नकारात्मक भूमिका में थे। फिल्म में शाहरुख खान (मेजर रामप्रसाद) ने एक आर्मी अफसर का रोल किया था जो भारत-पाकिस्तान के बीच शांति पूर्वक होने वाली द्विपक्षीय वार्ता को रोकने के सुनील शेट्टी के प्लान को फेल कर देते हैं।

फराह खान ने अपने पॉडकास्ट से बॉलीवुड के उस स्याह पहलू पर एक बार फिर प्रकाश डाला है, जिससे हम कभी न कभी परिचित हुए हैं। हालांकि, यह पहली बार नहीं है जब सेक्युलरिज़्म के नाम पर बॉलीवुड ने सनातन धर्म को धूमिल करने का प्रयास किया है। 1990 के अंत से ही बॉलीवुड की हिन्दू विरोधी मानसिकता उजागर होने लगी। महेश भट्ट द्वारा निर्देशित ‘जख्म’ में नायक की माँ को मुसलमान होने के बावजूद इस्लामी चरमपंथी ज़िंदा जला देते हैं, परंतु इसका दोष हिन्दू अतिवादियों पर मढ़ा जाता है।

2000 में आई कमल हसन की फिल्म ‘हे राम’ में पहली बार 1946 के डायरेक्ट एक्शन डे के पश्चात हुए हिंदुओं और सिखों के नरसंहार पर प्रकाश डाला गया था। परंतु इसमें भी कमल हसन ने अतुल कुलकर्णी के किरदार श्रीराम अभ्यंकर के जरिये हिंदुओं की नकारात्मक छवि को पेश किया था।

इतना ही नहीं, 2008 में हॉलीवुड फिल्म ‘ए फ्यू गुड मेन’ की अनाधिकारिक रीमेक ‘शौर्य’ में आर्मी अफसर रुद्र प्रताप सिंह का किरदार निभा रहे के के मेनन का किरदार भी कुछ ऐसा ही था। इस फिल्म में दिखाया गया कि कैसे हिन्दू समुदाय बेहद ही संकुचित विचारधारा वाला अतिवादी समूह है, जो नहीं चाहता कि देश में धर्मनिरपेक्षता बनी रहे, जबकि जावेद खान के किरदार के जरिये यह दिखाया गया कि कैसे किसी भी परिस्थिति में मुस्लिम कभी भी गलत नहीं होगा और कोई गलत काम नहीं करेगा। ऐसे में फराह खान द्वारा हिंदुओं को नकारात्मक रूप देना कोई नई बात नहीं है।

परंतु बॉलीवुड के इस निम्न स्तर की मानसिकता के विरुद्ध धीरे धीरे ही सही जनता में जागरूकता बढ़ी है। उदाहरण के तौर पर पिछले वर्ष सेक्यूलरिज़्म के नाम पर हिंदुओं को अपमानित करने वाली फिल्में जैसे ‘कलंक’, ‘व्हाइ चीट इंडिया’ जैसी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर औंधे मुंह गिरी, तो वेब सीरीज‘सेक्रेड गेम्स’ का प्रदर्शन पहले सीज़न के मुक़ाबले काफी फीका रहा।

ऐसे ही इस वर्ष ‘छपाक’ के फ्लॉप होने के कई कारणों में से एक यह भी था कि यह फिल्म एसिड अटैक पीड़िता पर कम, उलजुलूल तथ्य और जात पात तक पर फोकस था। कश्मीरी पंडितों की त्रासदी दिखाने के नाम पर जिस तरह ‘शिकारा’ ने उनका उपहास उड़ाने का प्रयास किया, उसका क्या हश्र हुआ हम सभी अच्छे से जानते हैं। 12 करोड़ के बजट में बनी यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर 10 करोड़ का आंकड़ा भी पार नहीं कर पायी। ऐसे में फराह खान के बयान ने एक बार फिर साबित किया है कि कैसे वामपंथियों से बॉलीवुड कला, योग्यता और प्रतिभा को ताक पर रख केवल अपने एजेंडे को बढ़ावा देने के लिए प्रयासरत रहता है।

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