24 फरवरी को अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प भारत के दौरे पर आने वाले हैं। लेकिन उनके इस दौरे से पहले भारत-अमेरिकी सम्बन्धों के लिए एक बुरी खबर आई है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार ट्रम्प के दौरे के दौरान होने वाली भारत और अमेरिका के बीच ट्रेड डील की घोषणा टल सकती है। भारत और अमेरिकी अधिकारियों ने अब इस डील को बातचीत के दायरे से बाहर कर दिया है, यानि ट्रम्प के दौरे के दौरान अब इसपर कोई बात नहीं होगी।
द हिन्दू की रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका भारत में डेयरी उत्पाद और कृषि उत्पाद बेचने के लिए भारतीय बाज़ार तक और ज़्यादा आसान पहुंच की मांग कर रहा था और इसके साथ ही ई-कॉमर्स के लिए भी अमेरिका आसान नियमों की मांग कर रहा था, लेकिन भारत के लोगों के हितों को प्राथमिकता देते हुए पीयूष गोयल के नेतृत्व में भारत सरकार ने अमेरिका के सामने झुकना स्वीकार नहीं किया जिसके कारण यह ट्रेड डील फाइनल नहीं हो पायी।
अमेरिका ने इससे पहले अपनी मांगों को मनवाने के लिए भारत सरकार पर बहुत दबाव बनाया। एक तरफ तो अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि रॉबर्ट लाइट्ज़र ने अपने भारत दौरे को रद्द कर दिया, तो वहीं अमेरिका ने भारत को आर्थिक नुकसान पहुंचाने के लिए देश को विकसित घोषित कर दिया। ये सब पैंतरे अपनाने के बाद अमेरिका को लगा था कि वह भारत को अपनी मांगे मनवाने के लिए मजबूर कर देगा लेकिन भारत सरकार ने ऐसा नहीं किया। शायद इसीलिए ट्रम्प भारत को tough negotiator कहते हैं।
भारत में डेयरी और कृषि उत्पादों का सीधा संबंध किसानों से होता है। अगर इस क्षेत्र में विदेशी कंपनियों को सामान बेचने की खुली छूट दे दी जाती तो इसका सीधा भारतीय किसानों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता। अमेरिका इस डील के तहत भारत में अपने निर्यात को बढ़ा सकता था, और व्यापार संतुलन को और ज़्यादा बिगाड़ सकता था। यह दिखाता है कि भारत सरकार अब किसी भी देश के साथ कोई ट्रेड डील साइन करने से पहले अपने हितों की रक्षा करने को प्राथमिकता दे रही है। यही भारत सरकार ने RCEP के समय भी किया जब भारत ने इस डील पर साइन करने से साफ मना कर दिया था।
RCEP के तहत अभी दस सदस्य देशों यानी ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, फिलिपिंस, सिंगापुर, थाईलैंड, वियतनाम और छह एफटीए पार्टनर्स चीन, जापान, भारत, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के बीच एक मुक्त व्यापार समझौता प्रस्तावित था, और ये सभी देश चाहते थे कि भारत जल्द से जल्द इस डील पर साइन कर दे लेकिन भारत की ओर से पीएम मोदी ने यह साफ कर दिया था कि भारत किसी भी डील पर साइन करने से पहले अपने हितों को देखेगा और अभी उनकी अंतरात्मा इस डील पर साइन करने के लिए उन्हें इजाजत नहीं देती है। इसी के साथ भारत ने RCEP की बातचीत से अपने आप को बाहर कर लिया था।
इतिहास में भारत ने अन्य देशों के दबाव में आकर ऐसे कई बड़े फैसले लिए हैं, जिनका खामियाजा भारत को आज तक भुगतना पड़ रहा है। भारत ने ASEAN देशों के साथ पहले से FTA एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर किया हुआ है, उस समझौते को भी भारत रिव्यू करना चाहता है। इसके लिए भारत ने सभी ASEAN देशों को मना भी लिया है। आसियान ने माना है कि आर्थिक संबंधों को और मजबूत बनाने के लिए एफटीए को ज्यादा बिजनेस फ्रेंडली बनाने की जरूरत है।
बता दें कि भारत की कमजोर कूटनीति का ही नतीजा था कि UPA शासनकाल में भारत के हितों के विरुद्ध ASEAN देशों के साथ फ्री ट्रेड एग्रीमेंट कर लिया गया था। दरअसल, भारत ने वर्ष 2009 में ASEAN के साथ यह समझौता किया था लेकिन आज मोदी सरकार को इस समझौते पर पुनर्विचार करना पड़ रहा है, क्योंकि इस समझौते का सबसे अधिक फायदा भारत की बजाय अन्य ASEAN देश ही उठाते रहे। इसके अलावा केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल के नेतृत्व में ही भारत सरकार ने पहले RCEP और अब अमेरिका के साथ प्रस्तावित डील पर साइन करने से फिलहाल मना कर दिया है, जो दिखाता है कि अब नया भारत अपनी शर्तों पर ही किसी देश के साथ व्यापार करेगा।